Saturday, November 17, 2012

तिनके की रीढ़


एक तिनके से
बनना है
एक बड़ा
भरपूर
चाँद सा चमकीला
ज्ञानशील और मादक मानव
का घर।

ठहरो
मिट्टी के ब्रह्मा
जाँचो तुम धीर
उस नाज़ुक की आशा
और उस आशा को बाँधे
एक तिनके की रीढ़।

Sunday, November 11, 2012

सफ़र


की-बोर्ड
के उबड़ खाबड़
पथरीले
रास्तों पर
उंगलियों के
नंगे पैरौं से
लड़खडाते सम्भलते
तय करके
लम्बा सफ़र
आज खड़ा हूँ
शब्दों के ऊँचे पहाड़ पर
चुपचाप
बगैर झंडा
ख़ुद ही लहराते
ठण्डी हवाओं में
अकेले ।

आज भी हैं 
नंगे
पैर उंगलियों के॰॰॰॰
थका नहीं हूँ अभी
ज़रा भी
न है जूतों की तलाश
उंगलियों को॰॰॰॰

बस ढूंढता हूँ
अगली दिशा
अगली आवाज़॰॰॰॰

की-बोर्ड
के ऊबड़ खाबड़
पथरीले
रास्ते
अब बन चुके हैं
दस नन्हे नंगे पाँवों
के नृत्य की थाप
जीवन के उत्सव की॰॰॰॰

घोड़े


बीती रात
थका हारा
मैं घर लौटा
बिस्तर पर गिरा
और सब कुछ भूल
घोड़े बेच
सो गया ।

सारी रात
अकेला
न जाने
किस किस बाग
आसमान
और नदी
चलता
उड़ता
तैरता रहा ।

सुबह आँख खुली
तो देखा
चिंता के
आंगन में
सारे घोड़े
वापिस आ
बंधे थे
न जाने
पीठ पर
क्या क्या लादे ।

रात वाले
बागों की खुशबू
आसमान का विस्तार
नदी का बहाव
अभी पलकों पर
ओस की तरह
ताज़ा था ।

मैं उठा
नहाया
तैयार हुआ
और पहली बार
घोड़ों को
पीछे बंधा छोड़
अकेला आगे निकल गया ।