खुले बाल मेरे
फड़फड़ा रहे
ठण्डी चीखती हवाओं में
इस आसमानी चोटी पर
जैसे लहराता
उतावले जीवन का
दृढ़ ध्वज ।
आँखें हैं बंद
चेहरा है खुला
पूरा ।
धरती के ऊपर से
गुज़रते
उड़ते
पंजों में से उसके
मैं जो फिसल गिरा था कभी
गहरे जंगल में,
भटक
निराश
हताश
उदास हो
चढ़ आया हूँ
इस शिखर पर
इंतज़ार में उसी के॰॰॰॰॰
वो आए
ले जाये मुझे दबोच
अपने खोये शिकार की तरह।
फड़फड़ा रहे
ठण्डी चीखती हवाओं में
इस आसमानी चोटी पर
जैसे लहराता
उतावले जीवन का
दृढ़ ध्वज ।
आँखें हैं बंद
चेहरा है खुला
पूरा ।
धरती के ऊपर से
गुज़रते
उड़ते
पंजों में से उसके
मैं जो फिसल गिरा था कभी
गहरे जंगल में,
भटक
निराश
हताश
उदास हो
चढ़ आया हूँ
इस शिखर पर
इंतज़ार में उसी के॰॰॰॰॰
वो आए
ले जाये मुझे दबोच
अपने खोये शिकार की तरह।