Thursday, September 19, 2013

गुबार

निकला न
दिल से
गुबार
अगरचे सीने में
आग कम न थी

चिंगारियाँ
न उठतीं
रह रह कर
इस कदर,
बस आँख
नम न थी ।

सब्र

न हो जिगर-ए-ज़िंदगी,
हौसला-ए-मौत भी न हो,

ऐतबार-ए-एहतमाद ना रहे,
सब्र-ए-एहतराम ही सही।

Wednesday, September 18, 2013

तकदीर

तकदीर में हो
तदबीर
तो तदबीर हो जाये

न हो तदबीर की
तकदीर
तो क्या करें ?

सागर

हैरान था
जब सुनता था
कहते थे वो
जाम को सागर,

हूँ अब
मुतमइन
जब
तैर आया हूँ
साहिल-ए-सहर
डूब कर
रात भर।

Saturday, September 7, 2013

बेचैनी

इस कदर
आँख से टपकनें
की बेचैनी?
ज़रा सम्भल,

रगों में
पहले
वो कर ले
जो तेरा काम है ।

Friday, September 6, 2013

तूफ़ान और मैं

तूफ़ान भी गुज़र गया,
और मैं भी,

मैं भी गुज़र गया
और तूफ़ान भी

राज़

कुछ देर और
जो बिताओगे
खुशनसीबी के साथ,

कहीं कबूल
न कर लो
अपनी बदनसीबी के राज़ 

पीर

पीर पैगंबर
मनाने का
फ़कत बहाना था

असल में
अंदर का
फ़कीर था
घबराया हुआ ।

क्यों

नज़रें क्यों ढूँढती हैं 
उन्हें 
जिनसे चुराते थे,

क्या ले गये हैं 
वो 
जिसे हम बचाते थे!

ताक़ीद

रोको,
पकड़ो,
कर देखो ताक़ीद
एक बार और,

ना जाये,
ना ले जाये
दिल,
हसीन कातिल की ओर।

Sunday, September 1, 2013

दीवार

ताश के पत्तों
सी
क्यों गिरी
नफ़रत
की दीवार?

प्यार का
बस
ख़्याल ही तो था,
और क्या था?

नाम

सड़क का,
न मील का
पत्थर बन पाया,

ठोकर ही मार देते,
त्वारीख़-ए-सफ़र में
नाम तो आता ।