चलो
लगायें
ध्यान...
चलनें
को ही
समझें
समाधी,
कहनें
की ज़रूरत
को ही
मौन समझें |
देह का
निवाला ही
उपवास सही,
चाय के
प्याले को
प्राण समझें |
मानें
देह को
पूजा की
थाली,
जलायें
करुणा की
लौ
तड़प का
तेल जलायें |
उडनें दें
हर दिशा
समर्पण की
सुगंध,
दिनचर्या को
अनुष्ठान
जीवनयापन को
हवन समझें |