Sunday, August 31, 2014

ज़रूरी

ज़रूरी
नहीं
कि
दीवार पर
टंगा है
तो
देखना
लाज़मी है,

फंदा
हो सामने
तो
झूलना
क्या
ज़रूरी है!

हसरत

हम
जिन सा
बनने को
ताउम्र
तरसते रहे,

वो
हमसा
बनने की
हसरत
लिए
चल बसे।

नई

ख़राब हो
तो
खरीदूँ
नई,

डरना
क्या
छोड़ा,
ज़िंदगी नें
बिगड़ना
छोड़ दिया।

इजाज़त

पंख
भी थे,
आसमान
भी,
परिंदों को
न मिली
इजाज़त
माँ बाप से
उड़ जाने की,

फ़र्माबरदार
ताउम्र
रहे
छतों पर
रेंगते,
बीनते
फेंके
दाने।

सुकून

बायें भी
दुकाने,
दायें भी,

बाज़ार में
आया हूँ
छुट्टी के दिन
सुकून
खरीदने!

Saturday, August 30, 2014

प्याला

दुनिया
तू
जब बदलेगी
बदल जाऊँगा
मैं भी,

हो रहा है
अभी
चाय का प्याला
ठण्डा,
सुकून से
पीने दे।

जी

बड़ा
जी है
सो लूँ
दिन भर
जी भर कर,

दीवानी
दुनिया
मोयेगी नींद में
रात को
तो
जी लूँगा।

मायूस

जिस
गुज़रे
वक्त
को याद कर
होते हो
मायूस,
निकलकर
देखो
बाहर,
गुज़र
रहा है अभी,
गुज़रा नहीं है।

प्रस्ताव

कह
दिया है
बीसियों बार
कि
शादी शुदा
हूँ मैं,

मत
भरो
मेरी
अख़बार
प्रणय प्रस्तावों से
बीचों बीच।

शम्मा

यहाँ है
गर
सुबह,
कहीं तो
शाम होगी,

ऐ शम्मा
कहीं तो
अब भी
तू
जल्वागाह
होगी।

दुनिया

क्या करूँ
इस
दुनिया का
जो
तुमने
पैरों में मेरे
बिछाई है,

तुम्हारी
ख़ुशी
मेरे हमनफ़स
गर
इसी ने
चुराई है!

जेब

खर्चता जा
ज़िन्दगी
जो
तेरी
जेब में है,

कौन
जाने
तू
किस किस
बाज़ार के
नसीब में है!

कसम

चमकते
चाँद
के मुँह को
देखकर
कर लो
आज
कसम पूरी,

किसी
रोज़
ले चलूँगा
दरवाज़े
से
पिछले,
मिलवाऊँगा
उससे।

इरादा

रात
की
मासूम
तसल्ली पर
सो
गया
मैं,

वर्ना
पता था
मुझको
सुबह
का
इरादा!

खेल

देखती है जब
चाँद सितारों को
खेलते
एक दूसरे से
यूँ बेफ़िक्र
रात के नभ में,

सोचती है
धरती
क्यों आई थी
ज़मीन पर
ब्याह कर!

स्वाँग

पल भर को
जो सताता है
चाँद
कर
तारे को
रात में
छोड़ जाने का
स्वाँग,

दौड़
पीछे
भागता है
टिमटिमाता तारा,
मार कर
छलाँग।

ज़मीन

कस के
रखना
पकड़े
पानी
और
हवा को,
ऐ घूमती धरती!

छिटके,
तो
गिरने को,
फिर
और
ज़मीन
नहीं है!

झूठ

लफ़्ज़
तो सही
लिए हैं चुन
दीमाग़ ने
आपके,

आवाज़
की
लरज़
भी
कर सको
क़ाबू
तो झूठ छिपे।

इम्तेहान

ओ सूरज
चमकते रहना,

ओ चोटियों की बर्फ़
पिघलते रहना,

ओ झरनों
तुम बहना
निरंतर,

ओ नदिया
बाँध
तुम
भरती
रहना,

बाँध!
तुम
बनाना बिजली
रात भर
बिन रुके,

कल है
मेरा
इम्तेहान,
करनी है
तैयारी,
बल्ब
तुम
जलते रहना।

Friday, August 29, 2014

इजाज़त

मंज़िल
चुनने
की इजाज़त
है
आपको,
चुन लीजिए,

फिर
न दीजिएगा
रास्तों
को इल्ज़ाम
मेहरबानी
करके।

सिजदा

सिजदे में
आपका
सर था
आप न थे,

आप थे
शायद
खड़े
तख़्त के दायें
इंतज़ार में
सिले के।

उम्मीद

बुझी
कार की
हैडलाईटों में भी
जब
पड़ी
रौशनी
तो
चमक
उठीं,

मुर्दा
दिल
में तो
ख़ैर
उम्मीद
होती
ही है।

बेचैन

या तो
ले आओ
आँधी,
बुझा कर
ख़त्म
करो,

यूँ

रह रह कर
मारो
फूँक
आग को
बेचैन करो।

बच

अब
भूल जा
ज़िन्दगी
कि
मार देगी
मुझे,

जहाँ
मिटा
सकती थी
मुझको
बच
निकला हूँ
मैं।

बात

हर
बात पे
कुछ
कहने का
करता है
दिल,

मेरी
बात
सुनने को
हर बात
बेताब
क्यों हैं!

ख़ामोशी

उनके
इल्ज़ाम पर
कुछ
लम्हे
जो हमने
इज़हार ए हैरानगी
न किया,

सही
न गई
दुनिया से
ख़ामोशी,
मुंसिफ़                    (judge)
हो गई।

आर पार

जिस
मसले
को
आपने
आर पार का
बना दिया,

ज़रा सा
करते
ज़ब्त,               (tolerate)
तो
क्या
करार आता!

रास्ता

ये
वो
रास्ता
तो नहीं
जहाँ से
आए थे,

खैरमकदम         ( स्वागतम)
लिखा था
बड़ा बड़ा,
हर किसी ने
फूल
बरसाये
थे!

भँवर

इतनी
बर्कत थी
कि
रहमत
भूल
गए,

डर के
भंवर में फँसे,
और
इबादत में
डूब
गए।

Thursday, August 28, 2014

मुक्ति

लिख लूँ
अधूरी
नज़म,
उसे
मुक्ति
दे दूँ,

शायद
मिल जाए
किसी को
सबब,
उठाए
अपनी
कलम,
मुझे लिख दे।

सेहरा

नाकामी
तेरी
कामयाबी का
कुछ तो सेहरा
मेरे
सर बंधे,

मेरे
कंधे
के बिना
क्या उठता
जनाज़ा
मेरा।

साया

खो
गया है
कहीं
मेरा
वजूद,
आपसे
ज़रूर
मिलवाता,

फ़िलहाल
मिल लीजे
मेरे साये से,
पैरों में है।

इतिहास

देखते हो
इतिहास को
आज
मुड़कर
पीछे,

देखते जो
पीछे से
आज
की ओर
तो
कुछ
और
दिखता।

दाँव

तुम्हीं ने
रोक
लिया
ख़ुद को,

तक़दीर
के
तुमपे
दाँव थे
कई।

नाम

चार्ल्स,
तुम भी तो
गए थे
चाँद पर,
फिर
किताबों में
तुम्हारा
क्यों
नाम नहीं है?

इतना भी
शुक्र है,
धीरे धीरे
संभल कर
घूमता है
चाँद,
हैं
अभी तक
उसपर
तुम्हारे
क़दमों
के निशान,
चलो
कहीं तो
छपे हैं!

Tuesday, August 26, 2014

दिल से

दिल से
लिखता
रहा हूँ
कवितायें,

आपसे
गर
लूँगा
ये
बे ईमान
एहसान,
तो
किस
मुँह से
लिखूँगा!

गेंद

हैण्ड
ग्रेनेड
था मैं,
ख़ुद को
गेंद
समझता
रहा,

उस्ताद ने
पिन
निकाली
तो
मुझे
समझ आया।

कस्टमर केयर

ख़ुदा
आपका
कस्टमर केयर का
रिकॉर्ड
बड़ा ही
ख़राब है,
एक तो
हमेशा से
मोनोपोली
है
आपकी,
सब हैं
प्रताड़ित,

उस पर
सवालों
शिकायतों
की
खिड़की है
बंद,
कतार में
पसीने से
तर बतर
सवाली हैं।

गाँठ

ढीली
छोड़ी
जो
डोर,
गाँठ खुल गई,

ज़ोर
की
ज़िद में
फंसी
थी
कहीं।

बचा आसमान

तरक्की की
फ्लाइट चढ़ते,
जवानी के
एअरपोर्ट पर,
ज़िन्दगी
की
कतार से,
ऐसे
निकाला
तुमने मुझे
जैसे मैं
कोई
स्मगलर था,

खड़ा रखा
फिर
मुझे,
बरसों,
नियती के
इन्टैरोगेशन रूम में,

पूछे
वो वो
सवाल
जो मुझसे
वाबस्ता
न थे,

कहते हो
अब
कि
'जाओ
बेकसूर हो
तुम',

अब
ये तो कहो
किस कतार लगूँ,
कौन सी
है उड़ान
इंतज़ार में मेरे,
किस
बचे
आसमान में उड़ूँ !

दाना

आज
खोल
ट्विटर की
चिड़िया की
चोंच,
लाया हूँ
निकाल वापिस
ज़िन्दगी
अपनी
जो
बना दाना
मैंने ही
कभी
थी रख दी
आगे उसके,
चुग गई थी जिसे
वो
बिना शुक्रिया,
अभी
चबा रही थी।

व्यर्थ

व्यर्थ
किया
हमने
आपका
इंतज़ार,

आप तो
आ कर भी
नहीं
पहुँचे।

खलल

भर
दीजिये
वजूद
का पेट
ताकि
जीवन
का
दीमाग
काम करे,
बहुत
डालता है
खलल
वर्ना
बीच बीच में।

Monday, August 25, 2014

तार

धूप
की ओर
करके
देखते हो
हर नोट,
ढूँढ़ते हो
असलियत की
तार,

वो
तार
कहाँ है
जो
डाली थी
तुममे,
भरोसा था
किया।

दोनों

अंगों
में है
फ़र्क,
अलबत्ता
इंसान हैं
दोनों,

एक
ऐसे बना है,
एक
वैसे।

गिला

मिले
फ़ुर्सत
ख़ुद से
तो आपसे
मिलूँ,

अभी तो
गिला है
ख़ुद ही से,
दिनों
मिलता
नहीं हूँ मैं।

पिता

अपने
लिखे
किरदारों का
कैसा
पिता हूँ
मैं!

मैंने
सृजा है
इनको
या
इनसे
बना हूँ
मैं!

बेख़बर

सड़क
किनारे
बैठा
वो खा रहा था
दुनिया का
बचा खुचा,
दुनिया से
छुपा,
रख
दुनिया की ही
अख़बार पर,
उसी की
ख़बरों से
बेख़बर।

झीलें

होंगी
जब भी
सभी
झीलें
कभी खाली,
खाली
न मिलेंगी,

होंगी
उन्हीं से
भरी
जिनसे
दुनिया
भर कर
भी है
खाली।

सबक

आ तुजुर्बे
पकड़ मेरा हाथ,
सिखा मुझे
वही
जिसका
स्नातक हूँ मैं,

मेरे
खून में है तू,
ललकार
मुझे,
कर
पूरा
वो
सबक
जो
पढ़ कर भी
अधूरा है।

Saturday, August 23, 2014

गलती

पत्नी
सोचती है
बोलते बोलते,
पूछती नहीं
बताती है,
यहीं तो समझनें में
होती है गलती,
उम्र भर सताती है,

सुनने की बात पर
बोल पड़ते हैं पति,
सहमती सहानुभूति
की जगह
देते हैं जब
सलाह,
सलाखों पे चढ़ते हैं
रोस्ट होते हैं।

वृन्दावन

ये
क्यूँ
ले आये हो
नवजात को
वृन्दावन?

घर तो लाते,
ब्याह तक तो रुकते,

पिलाएगा कौन
इसे
दूध यहाँ पर,
इसकी छाती
में
दूध
सूखने
तक तो रुकते।

त्यागते
निकालते
घर से
पति के जी चुकने के बाद,
बेटों के
मुँह मोड़ने
तक तो रुकते।

काग़ज़

शुक्र है
कागज़ के हैं
नोट,
खर्च
सकता हूँ
इन्हें
बेझिझक,
खरीदने
ज़िन्दगी के
पॉपकॉर्न,
कहीं
अशर्फ़ियों से
होते
तो
तकलीफ़
होती।

Friday, August 22, 2014

गोटा

पहन लो
तुम
गोटा,
सजा
लो
ख़ुद को,

पूछना
मगर उसको
तुम्हें
समझता
क्या है!

बुद्धू

अच्छा
बनाया
बेवकूफ़
तुझे
धरती पर
भेज कर,

बुद्धू!
तू
अब भी
मसरूफ़ है
ढूँढने
में
मकसद!

वक्त

वक्त के
साथ
बदलने में
आपने
बड़ा वक्त
लगा दिया,
वक्त के पास
वक्त था कम
कब का
गुज़र गया।

कोयला

कहाँ से
बदलूँ
तेरी ज़िन्दगी,
कहाँ से
हस्तक्षेप करूँ!

गिड़गिड़ा मत
साफ़ साफ़ बता,

उठा अपनी
ज़िम्मेदारी
का
कोयला,
कहीं
लकीर तो
लगा।

तोहफ़े

वक्त
बच्चों में
छिपे
बूढ़ों को
ढूँढ़
निकालता रहा,

मिट्टी
बदल बदल
उन्हें
नया
बनाती रही,

तोहफ़ों
में
क्या था,
कुदरत को
पता था,

फिर भी
रोमांचित हो
खोलती रही,
हैरानगी
जताती रही।

अभी

होने
तो दे!

आने
तो दे!

बिगड़ने
तो दे!

विचलित
खौफज़दा
मानव!
डर लेना,

पर
उसे
जी भर के
अभी
डराने तो दे!

Thursday, August 21, 2014

खुश

जिस
गुलदस्ते
को चुरा
हम
खुश थे
बहुत,

फ़िज़ाँ
लाई थी
देने
पूरा
बाग़
उसका।

ऑस्कर

चले
मेरा
बस
तो
दे दूँ
ख़ुद को
ऑस्कर
अभिनय का,

बेहतरीन
निभा
रहा हूँ
किरदार
अपनी
ज़िन्दगी का।

समझ

कुछ कुछ
तो
आ गई है
समझ,
तेरी
रमज,

मेरे
उत्सव
के लिए
काफ़ी है।

निशान

कल रात
मिला था
ख़ुदा,
निशान तो हैं,

कौन
बनकर
मिला था,
याद नहीं।

सच झूठ

उनके
सच
और
झूठ में
ज़्यादा
फ़रक
न था,

झूठ
सच्चा सा लगा,
सच
झूठा सा था।

मान

तूने
रख लिया
मेरा
मान,
मैं
तेरा
ख़ुदा
हो गया,

क्या थी
तुझे
कसम
मुझे याद नहीं।

मजबूरी

ज़रूरत पड़ी
तो
बदल गए,

बदली
की
मजबूरी से
कोई
सरोकार न था।

सच

नहीं था
मुश्किल
सच बोलना,

भीतर
रोकने वाले से
बस था
निपटना।

बाग

जा
क़ुबूल है
तेरा
वो बाग
जिससे
तू
फूल
लाया है,

काँटों की
छोड़,
तुझे
परखने को
इन्हें
मैंने ही
बिछाया है।

बाल्टी

हो गई है
तेरे
पसीने की
बाल्टी
खाली,

चल उठा
खुद को
घर ले जा,

भरना
रात भर
फिर
इसे
सपनों  की
चाँदनी से,

कल सारा दिन
फिर
मेरे सूरज
को
भरना।

हल

बीघों में
थे
जो
खेत
गाँव में,
तीसरी मंज़िल
के फ्लैट
की
बालकोनी
के
गमले में
सिमट गए हैं,

बेच आया हूँ
ज़मीनें,
अब
हर सुबह
गमले में
नज़रों के
चलाता हूँ
हल,

किसान का बेटा हूँ,
पीछे छोड़
गाँव
शहर आया हूँ।

चोर

चोर
आ घुसे हैं
तेरे घर
तुझे
पता भी है?

बाहर
बालकोनी
में
बैठे हैं
तेरे
गमलों में
सुबह के
कबूतर बनकर,
बिन पूछे
दाना चुगते हैं।

देख

कहता था
कि
आएगा वक्त
तो
देखूँगा,
ये भी तो
कोई वक्त है
अब भी तो
देख के
दिखा।

लिफ़्ट

20 रूपये ही
गालिबन
बचे होंगे
उसके
लिफ़्ट लेकर,

उतरते वक्त
इतनी बड़ी
मुस्कुराहट
वाली
धन्यवाद देकर
2000 की
लिफ़्ट
करा गया।

Wednesday, August 20, 2014

कैलोरीज़

कहते हैं
देता है खर्च
उर्जा
कैलोरीज़ हज़ारों
घंटों में चंद
खिलाड़ी
शतरंज का,

कर देती हो
खर्च
तुम
उर्जा कितनी,
सोचते
क्या क्या,
सुबह से शाम
बैठेे
अकेले
दिन सारा,
ओ गृहणी!

Tuesday, August 19, 2014

दुलारी

हर घंटे
उसे ढूँढ़ते
पिता,

मिनट मिनट
को
तकती
माँ,

और
उछलती
घूमती,
माँ पिता
के
साए तले,
उनकी
दुलारी
सेकंड
की
सुई।

सम्मान

करने
दीजिए
मुझे
आपकी
भावनाओं
का सम्मान,
मेरे
जज़बात
देख
रहे हैं,
सुन
रहे हैं।

Monday, August 18, 2014

मनसूबे

हाँ
मनसूबे हैं
तेरे,
सुन लिया!

बादलों
के भी
कुछ
अरमान हैं,
सुनने दे।

अक्स

मेरे
अक्स में
मेरा
ख़ुदा
न ढूँढ़,

मिला है
मुझे,
चुना
नहीं हैं।

गाँठ

ये जो
तुम्हारी
नाभी में
एक
गाँठ है,

इसमें
दबी
बंधी
छिपी
सूखी
कहीं
आज भी
तुम्हारे
जनम
की
दास्तान है।

वाकई

गौर से
देखा है
आपको,

कुछ भी
नहीं है
वाकई
पास
आपके,
सिवाय
उसके
जिस पर
सही ही
इतराते हैं
आप!

असर

गंदे नाले
के पास
हम
ताउम्र
जीते रहे,

उस पर
हमारा,
लिल्लाह!
कोई
असर
न हुआ!

पाप

ये तो
घोर
नाइंसाफ़ी है,
पाप है!

कैसे
कर सकते हैं
आप
गरीबों की
क़ुरबानी
निरस्त,
लूट कर
उनसे लूटा पैसा
राजकुमार से!

Sunday, August 17, 2014

बेहोश

ज़िन्दगी
मौत
की
तरह
डरा मत,

हमें
बेहोश
रहने दे,
जगा
मत।

होड़

नहीं जानता
वो
कौन सी
बसें थीं
जिन्होनें
राहगीरों को
कुचला,

बस
इतना
देख पाया
कि
दोनों के
पिछले शीशों पर
क्रमशः
चाँद और स्वास्तिक
बने थे,
एक दूसरे से
आगे
निकलने की
होड़ में थीं।

जुस्तजू

जुस्तजू
गुज़र जा
तंग
न कर,

अपनी
हक़ीकत
देख,

मेरी
मजबूरियाँ
समझ।

बिन बताये

गलती से
ही,

सही
जी गया मैं,

ज़िन्दगी
बिन
बताये
आई।

कल

लो
आ गया
वो
कल
जिसके
इंतज़ार में
तुम थे
बावले,

अब बताओ
क्या था
इरादा,

या कह दूँ
उसे
कल ही की
तरह

कल आना!

मोड़

मोड़
जोड़ जोड़ कर
बन
गया
ज़िन्दगी का
रास्ता,

और
कोई
मोड़
इसमें
नहीं आया।

Saturday, August 16, 2014

मुबारकबाद

अखबार
में
आज
आज़ादी की
जिस जिस से
मुबारकबाद है मिली,

बस
उन्हीं
सौ पचास
से
बाक़ी
है
अभी।

अधूरी

आपके
इतिहास की
अधूरी
क्रांतियाँ
कहाँ हैं,

क्रांतिकारियों
के
चूल्हे
जलाती
नारियाँ
कहाँ हैं!

एक और

एक
और
कविता,
फिर
सही,

दिल का
ग़ुबार,
फिर
सही।

वापिस

उनके
मर जाने की
बद्दुआ
हमने
वापिस ले ली,

वो
गुमान से बच गये,
हम
गलतफ़हमी से।

चारपाइयाँ

कहाँ हैं
वो
ज़मींदार
बुलाओ
उनको,

खाते हैं
हवेलियों की
चारपाइयों पर
आज
सभी,
जिन्हें मनाही थी,

कहो उनसे,
मिट्टी से जगाओ,
दिखाओ उनको।

छुपा

लगी है
शताब्दी एक
मिटाने में
समाज से
सामंतवाद,

एक और
लगेगी अभी
निकालने में
घरों से
जहाँ
जा छुपा था,

दीमागों से
निकालने में
अभी वक्त
लगेगा।

इजाज़त

भेड़ों
को कब था
इनकार
उससे
जो
ज़रूरी था
करना,

बस चाहती थीं
एक बार
कोई
कर के दिखा दे,

डंडा
तो
हिलाये
आँखों के सामने,

रखे
गद्दी कुत्ता
एक
अगल बगल,
इजाज़त
तो दे।

शोषण

निकल
गया
वो
अपने हाथ से
पढ़ लिख कर,

फिर
उसने
अपने आप का
कभी
शोषण
न किया।

वक्त

नहीं होतीं
घड़ी की
सब
सुइयाँ
बताने को
वक्त,
कुछ
अपना
वक्त
ज़माने को
दिखाने की
होती हैं।

हवाले

कर
तो
रहे हो
हवाले
ख़ुद को
रास्ते के,

रास्ते ने
छोड़ दिया
रास्ते में
तो
कहाँ
जाओगे।

घड़ी

कोई कोई
घड़ी
बनती ही है
किसी
कलाई
ख़ास
के लिए,

पकड़ ही
लेती है
जिसे
कस कर,
सम्भालने
उम्र भर
के लिए।

सफ़र

मचल कर
शायद
ले रही हो
करवट
वो
काग़ज़ की
टिकट
किसी मिट्टी में,
जिस पर
लिखा था कभी
वो शेर
जो अभी
याद आया,

शेर
को तो है
बखूबी याद
वो
सफ़र
जो
उसने
करवाया!

चूक

बड़ी
ज़हानत से
पड़ता है
करना
अदा,
जल्लाद को
अपना
फ़र्ज़,

ज़रा सी
हो चूक
सम्भालने में
ख़ुद को
तो
ख़ुद ही
झूल
जाये।

असर

आ ही
गई
दुनिया
मुझ तक
बाज़ार बनकर,

मेरी
बेरुख़ी
का
बदज़ात पर
क्या
असर हुआ!

Friday, August 15, 2014

परसों

कल
की
छोड़,
परसों
की
सोच,

आज
का
क्या है,
किसी की भी
सुनता है।

कह देते

इतनी
बड़ी
चट्टान
गिराने की
ज़रूरत क्या थी,

कह देते,
कर देता
बंद,
चाय की
खोखली
बस स्टैंड के पास,

पतीली
स्टोव
कप
और
चटाई के नीचे रखे
छुट्टे
तो
उठाने
देते।

बंधुआ

अपने
सब
बंधुआ
को
छोड़
तो दूँ,

मेरी
आदतें
पहले
अपने
बंधुआ
को
तो
छोड़ें।

बुखार

काश
अब
ये बुखार
न उतरे,

तपता रहे
बदन
ताउम्र,

रग रग में
रहे दौड़ता
वतनपरस्ती
का
गरम खून।

क्राँति

क्राँति मैदान में
आ गई
यकदम
जो
मूसलाधार
बारिश,
भाग कर
शामियानों
में घुस गई
भीड़,

आज भी
वहीँ
सीना तान
डटे
खड़े
मुस्कुराते
भीगते
रहे
क्रांतिकारियों
के
बुत।

भरोसा

कर ही देंगे
समाप्त,
वक्त से पहले,
यदि कहते हैं आप,
भरोसा है हमें,

पर करेंगे भी क्या
बचाकर वक्त
तीसरे
विश्व युद्ध
के बाद!

वक्त

हो गया है
होना
शुरू
तबाह
ब्रह्माण्ड
एक
कोने से,
इधर
आ रहा है,

चूँकि
पहुँचने में हैं
अभी
कुछ
प्रकाश वर्ष
और,
उलझ सकते हैं
आप भी
भूमंडलीय
मसलों से
कुछ और।

किशोर

मेरे ही
कमरे में
हैं
किशोर,

गा रहे हैं
सुन रहा हूँ मैं,

पहले
कब
मिला था
उनसे,
जो
मिलने का
अब
सवाल है,

ज़िन्दा हैं
मेरी
दुनिया में,
कम
इतना क्या
कमाल है!

जब

अक
जायेगा
जब
तू
मेरे दोस्त,
पक
जायेगा।

जिम्मेवारी

मेरे दोस्त
तेरी
ठुड्डी
पर
जो
टूथब्रश
सी
दाढ़ी है,
इसके
संरक्षण की
जिम्मेवारी
भी
अब
तुम्हारी है।

Thursday, August 14, 2014

छुट्टी

फिर
देते हैं
आप को
यौम ए आज़ादी
पर
छुट्टी,

फिर मिला
है
आपको
मौका
दिन भर
सोचने का
ठण्डे दीमाग से
आज़ादी
का
मतलब।

अनदेखा

टीवी पर
राष्ट्रगान
सुनकर
एक बार
जो
वो
खड़ा
हो ही गया,
फिर न मातृभूमि
को
कभी
कहीं
अनदेखा
कर
सका।

आप

मौजूद
तो थे
आपके ही
अन्दर
वो आप
जो
आप हो सकते थे,

किसी को
बुलाया
न गया,
किसी को
आने
न दिया।

अंगूर

हाथ से
छूटते
भगवान की
तिजोरी
भली है,

पर
यक़ीनन
थे
बड़े मीठे
वो
अंगूर
जो
नहीं
मिले हैं।

स्पाइडरमैन

कौन से
कीड़े ने
काटा है
आपको
जो
आप
स्पाइडरमैन
बने हैं,

सच्चाई की
लड़ाई
लड़ने को
असरदार
तरीके
और
बड़े हैं।

पंक्चर

कार
टायर पंक्चर
लगाने वाले से
मैंने
पूछ ही लिया

"आप
ज़मीर का
पंक्चर भी
लगाते हैं?"

उसने भी
उधार न रखा
और
तपाक बोला
"साब!
नीयत की टयूब
वालों
का तो
लगाता हूँ,
ट्यूबलेस का
अभी
औज़ार नहीं है।

पैसे

रख
अपने पास
अपने कमाये पैसे
मेरे बच्चे!

पकड़ इन्हें
मुट्ठी में,
कर महसूस
इनकी गर्माइश,

तड़प
इसे पाने को,
इसके गुम जाने पे
रो,

एहसास कर
इसकी नज़दीकी
से आए आत्मविश्वास का,

पहचान इसके
होने का
सुकून,
न होने का
दर्द,

सुन
ध्यान से
इसक वादे,
वादाखिलाफ़ियों
के सदमों
को
जी,

परख
इसकी ताकत,
इसकी
बेबसी को झेल,
चढ़ने दे
इसका
नशा,
फिर
उसके उतरने का
तुजुर्बा ले,

होने दे
ख़ुद को
उत्तेजित
इसकी खुशबू से,
कर समर्पित
ख़ुद को,
फिर
इससे वापिस ले,

डूब के
उभर
इस सागर
से,
इसके
आसमान में
उड़,

रख
अपने पास
अपने कमाये पैसे
मेरे बच्चे,
मुझे
न दे।

Wednesday, August 13, 2014

काम

ख़ुदा
बुलाता है
तुझे
जा
चला जा,

उसी का
कोई
काम है
ज़रूरी
तुम्हीं से
चलता
चला जा।

मय

करूँगा
रात को
तुमसे बात
जब
सिर्फ़
मय पीयोगे,

दिन के
तमाम
नशों में
क्या
मेरी बात
सुनोगे!

एम बी ऐ

गल्ले
पर
बैठे
भैयाजी
के बेटे को
अभी तो
हफ़्ता ही
हुआ था,
व्यापार का
डिप्लोमा
हो गया,

पूरा
यकीन था
भैयाजी को,
एक
महीने में
कर लेगा
एम बी ऐ
उनका
होनहार
बेटा,
व्यापार को
बढ़ाएगा।

वैक्यूम

नहीं
पढ़
पाता हूँ
आध-एक
सफ़े से ज़्यादा
किताब को,
शब्दों
का वैक्यूम
उठाता है
विचारों का
ऐसा
बवंडर
कि
खुल जाते हैं
दीमाग की
बुकशेल्फ़
पर
अनलिखी
किताबों के
सभी पन्ने
एक साथ!

गाँठें

ग़ज़ल
की
तर
आवाज़
जो बहकर
उतर जाने दी
रोम रोम
के रास्ते
ज़हन में,
फिसलने
लगीं
उलझनों की
कसी
रेशमी रस्सियाँ,
गाँठें सब
खुलने लगीं।

अकेला

मोहल्ले
के
बच्चों
को
बरसों से
डराता था
जो
कुछ
ज़्यादा ही,
गले के
क्षय रोग
से
आज
मर गया,
छोड़
भौंकने
मालिक को
अकेला।

तल्ख़ी

ज़रा सा
जो
ऊँचे
तल्ख़
सुर में
मोबाइल से
कहा
मैंने,
वौइस् रिकग्निशन एप
ने भी
मेरी
कमांड
न मानी।

एहसान

एहसान
न कर

दोस्त,
तू
कीमत
बता दे,
सस्ते में
ख़रीद लूँ,
कहीं
लुट
न जाऊँ मैं।

आह

नहीं है
तेरे पास
जिसकी
वाह
का
वक्त,

कैसे
पुकार
लेता है
उसे
अपनी
आह
के
वक्त!

कर्ज़

जिस
कर्ज़ को
न उतार पाने
के दर्द से
हम
ताउम्र
उस
गली
न गए,

कोई
कब का
कर चुका था
वो गली
हमारे नाम
अता कर
सब
कर्ज़।

शक

आवाज़ ही
सुनी है
हमेशा,
कभी
देखा
क्यों
नहीं?

मुझे
शक
है
पूरा,
ऐ बशर,
ज़रा
देख तो,
कहीं
ख़ुदा
तेरे अन्दर
तो नहीं!

हुस्न

बख्शा
नहीं था
ख़ुदा ने
हुस्न
जो
आपको
मिला है,

आप
आप
बने
हैं
इत्तेफ़ाकन
जब
ये आपको
मिला है,

अब
कहें
आप
कुछ
तारीफ़ में
अपनी,
क्या
क्या
आपको
ख़ुद से
मिला है!

Tuesday, August 12, 2014

झिझक

झिझक मत
मेरे बच्चे,
छुट्टियाँ क्या
खुशियाँ
सेहत
परिवार
नींद
आज़ादी भी,
जो कहेगा
वो सब
कर दूँगा
अपने
प्यारे
के लिए
एनकैश,
बस
कह
तो
सही,
झिझक
मत।

इल्तेजा

ऐन
मौके
पर
बदल
दूँगी
तेरी
तस्वीर,
तकदीर
हूँ
तेरी,
इल्तेजा
नहीं हूँ।

पार

लगा
तो
दीजिये
भगवन
पार
मेरी
नइया,
बस
खेने दीजिये
मुझे
ऐसे ही
इसी तरफ़,
किनारा ही
कृपया
इधर,
मेरे सामने
ले आइये।

कैद

ज़हनी
जंगल
के
माहौल ने
डस
लिया,
हालात के
साँपों में
कहाँ
इतना
ज़हर था,
चारों
ओर से
खुले थे
मुक्ति
के दरवाज़े,
मैं ही
कहीं
अन्दर से
बंद था।

दस्तक

माज़ी
की आवाज़ें
आती हैं
आज भी
जब जब
देनें
दस्तक
मुस्तकबिल के
दरवाज़े,
इसी डर से
नहीं
खोलता
वो
कि
कहीं
बीत
न जाए।

कविता

अभी
अंदाज़ा
हैं
चार
पाँच
साँसें
बाक़ी,
चलो
कह दूँ
एक और
कविता
छोटी
कहानी
वाली।

डर

खड़ा हूँ
उस कल
की
छत पर
जिससे
बीता आज
डरता था,

ऊपर खड़ा
मुंडेर से
हिलाता हूँ
हाथ
ज़ोर ज़ोर से
नीचे खड़े
अतीत को,
बताने
कि कुछ नहीं है
ऊपर
जिससे
वो
डरता था।

लाइब्रेरी

जेल है
या
लाइब्रेरी!
बंद हैं
सैकड़ों
जीवंत
उपन्यास,
जिन्हें
पढ़नें
को है
मनाही
बाहर वालों को।

मंज़र

आधी रात
जंगल में से
गाड़ी चलाते
डर दबाने
ज़ोर ज़ोर से
जो
मैंने
स्टीरियो पर
गाने
बजाए,
पीछे
रियर व्यू मिरर में
भूतों पिशाचों
का
खुशी में
नाचनें का
देखा
जो मंज़र,
उतर ही
गया
रोक
गाड़ी
और
उनमें
जा मिला।

जूठा

तुझे
समझकर
डाला है
मैंने
मुहँ में
चावल दाल
का
एक एक
दाना,

मेरे
मालिक
कहीं
मैंने
तुझे
जूठा
तो नहीं
कर दिया?

उम्र

मत
पूछो
उम्र
मेरी,
अभी
जन्मा
नहीं हूँ
मैं,

अभी तो
हूँ
छटपटाता
छूटनें
पिछले
जन्म से,
मुक्त
नहीं हूँ
मैं।

Monday, August 11, 2014

टिफ़िन

वो
सामने,
जाती है,
दफ़्तर,
बाबुओं
की फ़ौज,
उठाये
टिफ़िन,

या हैं
टिफ़िन,
जाते
लगाने
हाज़री,
खींचते
हैंडल से,
अपने अपने
बाबू।

Sunday, August 10, 2014

महादान

आपका
बहा है
इस सरकारी
ईमारत
के
निर्माण में
खून
पसीना
तो
कुछ
मेरा भी तो
योगदान है,

इसके
हर
बिल
के
भुक्तान में
प्रतिशत
दो प्रतिशत
मेरा भी तो
महादान है।

गुम

बे
शुमार
लोगों
में
तू भी तो
शुमार है,

सब के सब
हैं
गर
अपनी अपनी
होश
में
गुम
तुझे भी तो
ख़ुद ही का
ख़ुमार है।

जवाब

कैसे
करूँ
शिकवा
कि
मुझे
सही
जवाब
न मिले,

मैंने
किये
ही
कहाँ थे
सही
सवाल!

एक वक्त

बहुत
शुक्रिया
आपका
कि
रखते हैं
देर रात तक
खुली
आप
जंक फ़ूड की
अपनी
दूकान,

सुबह
देर से
खोलते हैं
इसीलिए,
मानवता
एक वक्त तो
घर का
खाती है।

इरादा

कैसे कह दूँ
क़िस्मत
को
कि
बता
तेरा
इरादा
क्या है,

कहीं
बता
ही
दिया
उसने
तो क्या
करूँगा !