Tuesday, December 30, 2014

विदा

बहुत देर तक
तेज़ तेज़
भागी
नीचे
रनवे पर
ऊपर उठते
हवाई जहाज़ की
परछाई,

फिर
थककर
करके क़ुबूल
आसमान का हुक़्म
छोड़ दिया पीछा
उसका
उसने
कहके
अल्ला
हाफ़िज़।

आई कार्ड

एक हफ़्ते से
जिसे
मिलता रहा
ख़ुलूस से,
दिल ओ हाथ
मिलाता रहा,
आज
रुख़सत के दिन
आई कार्ड देखा
तो मुसलमान
निकला,

काश
पहने होता
मैं भी
अपनी पहचान,
था मैं भी
उसका
खैरख्वाह
हक़ीक़त में,
उसे भी कोई
शुबा न रहता।

Monday, December 29, 2014

बिस्कुट

खा ले
चार बिस्कुट
डुबो कर
चाय में,
नाश्ता फिर सही,

कर
दबा कर
मज़दूरी
रात तक,
सुबह
फिर सही।

पीछे

भीड़ में
किस किस की
तस्वीर में
पीछे
मैं था,
कहाँ कहाँ
पहुँचूँगा,
क्या क्या
देखूँगा
सोचूँगा
कब तक
एलबम्स में
छुपकर
मुझे
बिन बताये
बिन इजाज़त
बिन एहसास!

Sunday, December 28, 2014

खुशियाँ

दो चार सौ
औरतों लड़कियों की
खुशियाँ
चुपचाप
ख़रीद
था वो
ले जा रहा
लोकल ट्रेन से
बाँद्रा,

अगले दिन
की
बिक्री
के लिए
थीं
वो तीन
पोटलियाँ
चूड़ियों की।

रेल

रेलगाड़ी को देखने
तरसते थे
बच्चे मेरे,

और
एक ये बच्चे हैं
देखते हैं
दिन में
सौ रेलें
पटड़ी
के साथ वाले
कपड़े के घर की
छेद वाली
खिड़कियों से।

बाक़ी सवाल

आज पता चला
क्यों और कैसे बढ़ती है
हिंदोस्तान की आबादी

मुम्बई की लोकल ट्रेनें
लाती हैं लोगों को भर भर के,
कहाँ से लाती हैं
बाक़ी बस सवाल ये है

पता

शीशे में
देखा,

बुर्का तो
अपना दिखा,

उस में
मैं ही थी
ये
पता न चला...

ज़्यादा

कमज़ोर को
ईश्वर
कुछ और भी
कम,

मज़बूत को
ईश्वर
एक भी
ज़्यादा...

इरादे

गुफाओं में
खोद
लगा लिए
वो दरबार
जो बाहर
लगने न दिए,

पत्थरों से
कहाँ रुके
वो इरादे
जो हवाओं
में थे।

तो

उलझने
के लिए
आया था
तो
क्यों आया?

सुलझनें
के लिए
आया था गर
तो
सुलझता
क्यों नहीं?

जब तक

अम्पलीफिकेशन
मल्टीप्लीकेशन
परोजेक्शन
मग्निफिकेशन
इंडोर्समेंट
जब तक
नहीं होता,

इंसान
इंसान रहता है
कोई
कंप्लीकेशन
टेंशन
नहीं

होता।

अलार्म

आज़ान की
रिंगटोन का
लगा
पाँच दफ़ा
अलार्म,
इन्सां की
जारी है
अभी तक
पुरज़ोर कोशिश
न भूलने की
उसको
जो
भूला नहीं
कभी
किसी को
बिना अलार्म
बिना रिंगटोन...

कोई

कहते हैं सब
इन गुफाओं में
अब
कोई नहीं रहता,

ये
क्यों नहीं कहते
कि कोई
उन्हें
देख
नहीं सकता...

अपॉइंटमेंट

जहाँ जहाँ
दर्ज है
तेरी
अपॉइंटमेंट
तू
पहुँचेगा ही,

सवाल
तेरा
नहीं है,
उसका है...

पिकनिक

जिसे
समझता है तू
पिकनिक की जगह,
कहीं हो न तू
उसी सतूप के खण्डरों का
कोई श्रापित
जो
अभी
जकड़ा है
यहीं!

Saturday, December 27, 2014

लम्हे

मत कर
ज़ाया
लम्हों को
इस तरह,

तेरी तरह
गिनती के हैं ये,
अरमानों से
अनगिनत
नहीं हैं...

बाज़ार

ले
बाज़ार को
उतनी ही
संजीदगी से
जितना
ज़िन्दगी
तुझे लेती है,

मरा जाता है तू
कमाई मौत करती है..

यकीन

कहता है
इंशा अल्लाह
तो यकीन कर,

छोड़ दे
अपनी
हर कशमकश,
तस्लीम कर...

मन्ज़िल

कर भी लेता
ख़ुदकुशी
वो कूद कर
आसमाँ की
किसी
मंज़िल से,

गर देखता
कोई
उसे
ज़मीन से,
किसी को
फ़ुर्सत होती...

एहसास

कहाँ मिलते हैं
अब
ऐसे
फ़कीर,

जिन्हें
कुछ देकर भी
अपनी
फ़कीरी का
एहसास
होता है...

देखो
राज्यपाल हूँ मैं
इतना तो
बनता है
हक़
मेरा,

बस अ की
मात्रा ही तो है,
जोड़ने दो
इसे,
मेरे
राज भवन की
तख़्ती के
"राज" में....

Friday, December 26, 2014

रेल

भागती है
सरपट
बाहर की ज़मीं
या नीचे की पटरी
या सारी ये रेल,
भूल जा,

तेरी सीट है जब
तेरे वजूद के नीचे,
सुकून से बैठ,
यूँ
खून न जला।

नज़र

वो रुख
ऊँचा था
उस अट्टालिका से
मेरे ज़हन में,

करीब था
मेरी नज़र के,
चाहे
ऊँचा
जितना भी था...

माँ

कह तो दूँ
ऐ धरती
तुझे माँ,

पान जो
चबाता हूँ
मुँह में मैं,
उसका
करूँ मैं
क्या!

दीपक

दीपक
तुझे
देखता हूँ जब
इस करीब से,
पुतलियों की
बंद खिड़कियों से
ठिठुरती
रूह को
आती है
ग़ज़ब
गर्माइश,
तेरी
इसी दीवाली को
बीनता है दिन
बरस
मेरा।

स्वर्ग

सौवें माले को
स्वर्ग समझ
चढ़ तो
जाते हैं वो
हर शाम
बच बचा कर,

हर सुबह
नफ़रत के
नर्क में
सवर्ग बटोरने,
मगर,
उतरना पड़ता है
उन्हें...

निन्यानवें

आज भी
सौ में निन्यानवें ने
अख़बार नहीं ली,
आज भी
सौ में से निन्यानवें को
चूँकि
उसमें
जगह न मिली।

तोहफ़ा

गरीब का बच्चा
इसी में खुश था,
सांता
नहीं लाया कुछ उसके लिए
तो नहीं लाया,
पर
बाँटने के बाद
सभ्यता के बच्चों को
क्रिस्टमस के तोहफ़े,
कम से कम
अपनी
गिरी टोपी तो
उसके लिए
पड़ी वहीं
छोड़ गया।

ज़माना

आसाँ नहीं है
पुराने ज़माने को
गिराना,
बामुश्किल
ठान के
उठा है
नया दौर
बनके।

काश

काश
भेज पाता
हवाओं की
ठंडक
सरसराहट
भी तुम्हें
तस्वीरों में भर,

तुम्हारी
ज़ुल्फ़ें भी
छेड़ती
दिल बहलाने
के साथ...

करिश्मा

मुझको
बना
ख़ुद को
देखने दिया,

जाने
क्या था
मन में,
क्यों
उसने
ये करिश्मा
किया!

किनारे

कहना तो चाहता है
बहुत कुछ
ये सागर
मुझसे,
भेजता भी है
मेरी ओर
हरें
भर भर के,
मेरे ही किनारे
हैं ज़मीन से जुड़े
आसमाँ से बंधे...

छुपके

आसमाँ
तू तो कहता था
ऊपर है तू,
नीचे है ज़मीं,

फिर क्यूँ
मिलाया
तूने
छुपके
ज़मीं से हाथ
दूर
क्षितिज पर
आज फिर
सूरज डूबते...

छत

चाँद भी
आज
पाँच सितारा
होटलों
की छत पर है

ग़रीबों
की
धारावियों में
आज भी
अमावस होगी....

आँखें

दो
छोटी सी
आँखों में
समाया

थोड़ा सा
अरब सागर
कुछ मुंबई
और सारा मरीन ड्राइव....

होतीं तुम्हारी
तो
समा जाते
यकीनन
दो जहाँ भी...

यक़ीन और ऐतबार

कौए को
घायल चूहे के
मरने
तक का
सब्र
न था,

अपनी
मेहनत पर
यकीन था,
क़िस्मत पर
ऐतबार
न था।

बकरी

नहीं भागी थी
वो बकरी
सुन कर
फ्रूट वाली की
मराठी में
गालियाँ,
वो तो
बड़ी
मीठी थीं,

वो तो
थी भागी
देख
हाथ में उसके
खामोश
अंधी
लाठी...

Wednesday, December 24, 2014

चिमनी

एक आस से
आये थे
छत पर
कबूतर,
देर तक बैठे
फिर उड़ गए,

चिमनी में
धुआँ तो था,
चूल्हे में
आग
क्यों न थी?

फ़ीयट

सड़कों पर
आज भी
फ़ीयट ही फ़ीयट,

गुज़रा ज़माना है
कि
गुज़रता नहीं...

पर्दा

नई जगह
नींद में
यक ब यक
क्रिस्टमस की सुबह
सुनीं जो
तेरी आज़ान
तो एक बार तो लगा
मैं तेरे पास
पहुँच गया,

होश की आँख खोल
पलकों का पर्दा उठाया
तो पाया
मैं था
अभी भी
वहीं,
तू
आया था।

क्रिस्टमस

क्रिस्टमस की
छुट्टी है
परिंदों
आज कहाँ जाते हो,

खुले आसमान से
उतरो
गिरजे में
चलो...

Tuesday, December 23, 2014

बुलावा

सागर तट
से
पर्वत शिखर
पर
जाने में
लग जाते
चूँकि
उसे
चंद
दस हज़ार बरस
शायद,

बुलवा भेजा
मुझे,
सदियों से
भीगते
उस पत्थर नें,

मेरे हाथों से
उठवा
जेब में
ख़ुद को
डलवाया
उसनें।

Monday, December 15, 2014

बाक़ी

कोई
अपना
कल भी
आज ही
जी लेने को
है बेताब,

किसी का
परसों भी
अभी
बीतने को
है
बाक़ी।

Sunday, December 14, 2014

जान

रात को
ठण्ड से
मरने में
वक़्त था
अभी,

बेच कर
दान में मिला
कम्बल,
भूख से
जान
बचाई
उसने।

Thursday, December 11, 2014

चोरी

लाखों
अख़बारों में छपी
अपनी
तस्वीर की
आँखों से
ढूँढ़ती है
अपने चोर को
गुमशुदा
भगवान्
रघुनाथ की
मूर्ति,
और
असल मूर्ति
की आँखें हैं
मुंदी
जैसे
कुछ
हुआ ही नहीं।

हालात

दुनिया
तू
अपने नशे
न करे
तो तुझसे
जिया जाए
भी तो
कैसे!

तेरी हक़ीक़त
के हालात,
तू जाने है,
पता हो कर भी
तुझे
पता नहीं।

Wednesday, December 10, 2014

जल्दी

आपको
जल्दी है
ज़िन्दगी में,
आप
चलें,

मुझे
ज़रा
फुरसत है,
मैं
आता हूँ।

Tuesday, December 9, 2014

सामान

जिस का
हूँ
सामान
उसी की
फ़िकर हूँ,
सफ़र में
है वो,
ख़ुद मैं
कहाँ हूँ!

तआलुक्कात

उस ख़ुदा से
मेरे
तआलुक्कात
जब
ख़ुशग़वार
न रहे,

टाँग लिया
मैंने
ख़ुद का ख़ुदा
हर
दर ओ दीवार पर
अपने।

Monday, December 8, 2014

जी

चल छोड़
मेरा पीछा
ज़रा
जी के
दिखा,

ख़ुदा ख़ुदा
न कर
ख़ुदा के लिए।

Sunday, December 7, 2014

हुनर

यही सोच
अब मैं
कुछ
माँगने वालों को
इनकार
नहीं करता,
न हो
शायद
उनमे
ज़माने की जानिब
पैसा कमाने का
हुनर ।

बता

वक़्त तो
गुज़र ही
जायेगा,
उसे
आता नहीं
रुकना,

तुझे
आता है
रुकना,
तू
बता,
कैसे
गुज़ारेगा।

Saturday, December 6, 2014

पूरनमासी

बैठा हूँ
कब से
किनारे
दिल के,
गिनते
पूरनमासी को दिन,

शायद
उठ पड़ें
यादों के ठहरे समंदर में
भावनाओं की
लहरें|

चाँद

चाँद
उस पहाड़ पर
भी था,
और
इस पहाड़
पर भी,

पर
वैसे नहीं
जैसे
मैं
वहाँ भी था
और हूँ
यहाँ भी|

बस

एक बस
रुक गुज़री थी
उस स्टॉप से,
मैंने देखा,

सम्मोहित कर
निगल गई
दस बीस
सवारियाँ,

कहाँ
जाकर
उगले अब उन्हें,
सोच में हैं
रास्ते!

अनहोनी

बड़ा
मुश्किल था
अनहोनी का
होना,

उसका डर
यूँहीं
उसे
आसान
समझे था!

मजबूर

शहीद
होने को
तैयार थी
एक पूरी
नस्ल,

क्या वजह
शहादत
भुलाने को
ज़माने
मजबूर हैं?

निशां

अपने
मददगार
के निशां
वो दिन रात
उठाये था
अपनी ही
देह पर,

कुर्ता
जो पहना था
उसने,
नाप
किसी और का था।

सिपाही

ज़रूर बनता
वो भी
मज़हब का
सिपाही,

बस एक
मजबूरी थी
उसकी,
भूख से
जंग में था।

Friday, December 5, 2014

डर

उसको
डर था
अपनी ऊँचाइयों
के दब जाने का,

इसीलिए
उसने
ऊँचाइयों को
गहराइयों में
दबाकर
रखा।

पेड़

वो
पेड़
सूख कर भी
वहीं रहा
गिरा नहीं,

बिखेरता रहा
नसीहत के फूल
तजुर्बे के फल
इरादों की जड़ों पर
एक तने पर खड़ा।

कथा

कौमी अख़बार
के पहले पन्ने
की बाईं ओर
के चार उंगली
के कॉलम में
छपवाने
अपने चले जाने
की ख़बर,
ताउम्र
जीता रहा
तीसरे पन्ने
के विज्ञापनों
के ऊपर,

रह गया
बनके
बायोग्राफ़ी,
अपनी
आत्मकथा न
पढ़ पाया।

कोशिश

मत कर
हद से ज़्यादा
कोशिश
उस बात की
जो
होना नहीं चाहती,
उसे भी तो
आज़मा के देख
एक बार
जो
हो जाने को है
तरसती।

Thursday, December 4, 2014

फ़ना

कर
तो दूँ
फ़ना
उसे,
कहने पर
तेरे,

दुआयें
मगर
उसने जो की हैं,
उनका क्या?

ज़लज़ला

तितली के
पंख हिलाने
से भी गर
दुनिया का कोई
तूफ़ान
कहीं
उठता या थमता है,

हार न मान,
कुछ भी कर,
एक ज़लज़ला
तेरी भी राह
तकता है।

कीमत

किसी नें
तीन रूपये
न लौटा
ज़मीर
बेच दिया,

किसी ने
दो रूपये भी
कर के वापिस
रहन
छुड़वा लिया,

ज़मीर,
हैरान हूँ मैं,
अपनी
कीमत
तो बता।

हक़

ख़ुदा
तेरे
हर इंसान को
जीने का
हक़ है
क्योंकि
वो तेरा है,

हाँ,
गर
तू नहीं है,
तो बात
कुछ
और है।

ट्रंक

क्यूँ
लगाया है
ताला
फ़ौजी भाई
आपने
अपने ट्रंक पर?

कीमती
किस्से बहादुरी के,
जंग, ज़िन्दगी और मौत के,
वतन की इज्ज़त
और
अमन की गारंटी,

सभी
जब उठाये हो
खुले में
सामने
अपने
कमाये
जिस्म पर?

तोहमत

बुत परस्ती
की तोहमत से
संगतराश
को क्या?

जब भी
हुई
तलब,
एक ख़ुदा
तराशा
उसने!

Wednesday, December 3, 2014

जिस्म

उसकी
कलम से
निकलते हैं
जिस्म
कितने!

इतने
जिस्मों के लिए
इतनी रूहें
कहाँ से
लाता होगा!

उधर

परिहा
तो मैं
आज भी हूँ
जब
तुमसा हूँ,

तुम तो
कहते थे
कि मैं
इधर नहीं हूँ
क्यों जो
उधर हूँ!

पहेली

ताश
के पत्तों
सी गिरी
हर वो शै
जिसे
बूझा
हमनें,

दुनिया की
हर पहेली
बुलबुला
निकली।

Tuesday, December 2, 2014

सामने

इतने
सामने
नहीं है
मन्ज़िल
कि यूँ
मिल जायेगी,

हज़ारों
मिलकर भी
छोड़ोगे
तो
अपनी
पाओगे।

सराय

ज़िन्दगी
की
हर सराय है
मेरे
जल पान
विश्राम
के लिए,

वक़्त ही वक़्त है
मंज़िल के पास
मुझ तक
पहुँचने
के लिए।

तरीका

अपने
तरीके से
बहलाना है
ख़ुदा
तो
इजाज़त है
तुम्हें,

पर
ये तो
न कहो
कि
तुम्हारा
ख़ुदा
जुदा है!

बात

न ब्याह
मुझको
मेरी माई,
मेरी
बात
सुन,

सम्हालने दे
ताउम्र
यूहीं
तेरे न हुए
बेटे की तरह
तेरी
ये दुकान,
स्वावलम्बी
आज़ाद
खुश
रहने दे।

नशा

धरती को
नशा था
कि
उसे ही
देखता है
लुकता छिपता
घूमता
सूरज,

सूरज की
बारहा
ज़िम्मेदारियाँ
बहुत थीं।

Monday, December 1, 2014

कुछ और

यकीन
कम कर,
शक़
कुछ और,

दिखते को
तस्लीम कर,
खोज
कुछ
और।

उम्मीद

मेरी
फ़ानियत
की न
कायनात को
सज़ा देना,

उसे ज़िंदा,
मेरी उम्मीद
बरकरार
रखना।