Thursday, July 31, 2014

भ्रम

तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,

मुझसे है
तू,
भ्रम
देता है।

पोशाक

तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,

खिलौना
हूँ तेरा,
क्या क्या
पोशाक
देता है।

घबराहट

तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,

वरना
घबराता है
जी
जो
करने की
सोचता है।

महक

तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,

मुझ
महकते
फूल
में
रंग
तुझ ही
का है।

नाम

तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,

बनाता है
तस्वीर
अपनी,
नाम मेरा
कहता है।

ज़िद

तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,

कौन
मानता है
मेरी ज़िद
इस तरह
जैसे
तू
मानता है।

रंग

तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,

शफ़्फ़ाक
गोरा है
तू,
होश
मेरे
फ़ाख्ता
हैं।

ख़ुदा

तुझे
ख़ुदा
न कहूँ
तो
क्या कहूँ,

तेरी ही तो
मर्ज़ी से
यहाँ हूँ,
जहाँ हूँ।

ख़बर

आपके
मसले को
परसों की
खबर
की मानिंद
दुनिया
भूल
गई है,

गर
पहुँच
रही हो
आप तक
मेरी आवाज़,
तो
ऐ खुदखुशी वालो
लौट आओ।

हसरतें

मासूम
वालिदायन नें
इस कदर
देखी
औलाद में
अपनी
नाकाम
हसरतों की
तस्वीर,

उसे
वही
बना कर
वो बना दिया
जो वो
चाहता
नहीं था।

सलाम

देखा
जो मैंने
कि
उसने
मुझे
उसे
देखते
नहीं देखा,

अपना
सलाम
किसी
बेहतर शख्स़
के लिए
मैंने
बचा लिया ।

दिल

बढ़
रहे हैं
बहुत
कोलेस्टरोल से
ट्रैफिक के थक्के,
धमनियों सी
सड़कों में,

आपके
शहर को
दिल
के दौरे
का
ख़तरा है।

इतिहास

ये तो
है
हुक्मरानों
युद्धों
संधियों
का
इतिहास,
हमारा
कहाँ
है,

उसी को
लाओ
ढूँढ़कर,
उसी से
लेंगे
सबक,
वही
पढ़ेंगे।

विषय

बगल में ही
तो थे
प्रॉस्पेक्टस
की
सूची में
कॉमर्स
और
कंप्यूटर
के विषय,
इतनी
दूर दूर की
दुनिया में
निकाल ले जायेंगे
दोस्तों ने
सोचा न था।

ईनाम

10 लाख
का
ईनाम
जो दिया है
आपने
प्रतियोगिता में
इस तस्वीर को,

कितना दोगे,
चाहे जो बेचना,
गरीब,
यही
तस्वीर वाली
कुटिया,
साक्षात,
सारी,
आपको,
समेत ख़ुद के?

चारा

गाय
को खिलाने
के लिए
सुबह
से
ढूँढ़,
काट,
चारे का
पहाड़,
सर पर
लाद,
ला तो
रही हो
अम्मा,

ये तो
बताओ
सुबह से
आपने भी
कुछ
खाया है
कि
अभी तक
भूखी हो?

Wednesday, July 30, 2014

पैदल

चल
उतर
वर्तमान
अब
पीठ से,
थक
गया हूँ
मैं,

भविष्य
से
मेरा
करार है,
पैदल
चलेगा
वो।

४०

किसी को
४०० करोड़
तलाक
में
मिले,
किसी से
पति नें
देहाड़ी के
४० भी
ले लिए।

दुआ

हिरोशिमा
परमाणु
बम
गिराने वाले
की,
अगली
सदी में,
आज
मौत
हुई है,

लम्बी
हो
आयु
उसकी,
क़ुबूल
मरने वालों
की
दुआ
हुई है।

पिंजरा

चलो
बनायें
एक
पिंजरा,
उसमे
रहें
हम,

जब तक
उससे
बाहर
न सोचें,
घर
कहें
हम ।

Tuesday, July 29, 2014

हवाई जहाज़

रोज़मर्रा
की
उलझनों
समस्याओं
के
बादलों
से ऊपर
उड़ाऊँ
अपने जीवन
का
हवाई जहाज़,
मौसमी
बिजलियाँ
कड़कें
तो
नीचे कड़कें ।

इत्मिनान

असामाजिक
उत्पाती
बंदरों
को
पता था

विधि का
भौंकता
खुंखार
कुत्ता
बंधा था

शालीनता से
अनदेखा कर
मसरूफ़ रह
गुज़र गये

सभ्यता
को
सुरक्षा का
इत्मिनान रहा

बारिश

छत पर,
बालकोनी में,
सड़कों
गलियों
मैदानों,
ढूँढ़ती है
बारिश
तुम्हें
न जाने
कहाँ कहाँ,

और तुम हो
छिपे
रजाई में
ऊँघते
यहाँ!!

चलो
उठो
आओ बाहर,
ज़रा भीगो,
सूँघो
मिट्टी की
महक,
अन्दर से
खिलो।

हसरतें

बारिश
की
बूंदें
जब गिरते गिरते
ज़मीन से टकरा
टुकड़े हो
ज़ोर से उछलती हैं,

यूँ लगता है
अभी
हसरत थी
जाने की
और आगे
उनकी,
जो बीच में ही
टूटी है,

सम्भालती हैं
फिर भी
खुद को,
नन्ही नदी बन
जहाँ रास्ता मिले
बह निकलती हैं।

इंजीनियर

इतनी
कम
आर पी एम
पर भी
क्या शानदार
सम्भाले हो
भाप बादल बारिश
नदी सागर भाप
का जीवन चक्र!

क्या
हॉर्स पॉवर है
तुम्हारे
इस जीवित इंजन की,
सारी
धरती
के जीवन को
चलाते हो,

वल्लाह,
क्या कमाल
थर्मल
इंजीनियर हो!

Monday, July 28, 2014

चिड़िया

चिड़िया
से
फंस गए हो
काँच की
चारदीवारी में
तुम्हें पता नहीं,

आज़ाद भी हो
हमेशा के लिए
और फिर भी नहीं,

हो रहे हो
ज़ख्मी
टकरा टकराकर
ज़ोर ज़ोर से,
बार बार,
निकल भागने की
छटपटाहट में,

बेचारे हो
बच्चे,
तुम्हारे
पंखों के
हाथ में
कुछ भी नहीं,

करे
रहम ख़ुदा,

कुछ
जगाये तुम्हें
करिश्मे की
तरह,

कुछ
दिखाये तुम्हें
निकल जाने का
रास्ता
जो
वहीँ हैं करीब
खुला।

झरना

जिस
पानी का
झरने पे
वापिस
चढ़ना
था मुश्किल,

वो
पानी-पानी
को ही
पकड़ पकड़
छूता है
पहाड़ को
जहाँ से
आया था।

बॉन फायर

जहाँ जहाँ
कोई
अर्थ
मिला
पड़ा,

लगाकर
टेंट,
जलाकर
बॉन फायर,
रात
वहीँ
बिताता
रहा,

एक
उम्र
गुज़र
गई
ज़िन्दगी
जीने में।

सज़ा

वो
गाय
की
जुगाली,
वो
तुम्हारा
बबल गम
खाना,

वो
उसके
दूध की
बरकत,
वो
तुम्हारा
धरती
पर
थूकना,

हाय!
उसकी
सज़ा,
तौबा
तुम्हारी
क़िस्मत!

बातें

कर लो
मुझसे
बातें
ज़माने
के
लोगों,

तुम्हारी
फुर्सत
का
मुझसे
शायद
इंतज़ार
न हो।

अखबार

दस मिनट
में
ख़त्म
हो गई
अखबार,

ये
क्या है
मेरे
ज़हन में
जो
ढूँढ़
रहा हूँ!

ईद

कल
ईद है
पर
मनाऊँगा
परसों,

दिल से
मनाने
की
हसरत है,
रिवायतन
नहीं।

सूली

वो इत्तेफ़ाकन था
कि उस दिन
शुक्रवार था
और
मास की तेरहवीं थी
जब ईसा को
मिली थी सूली,

वरना
कौन देखता है
दिन या वार
चढ़ाने
भीतर या बाहर का
यीशू
सूली पर
आज!

ज़ुबान

उनके
मुँह
में भी
ज़ुबान
निकली,

जिनकी
ज़ुबान
का मुहँ
किसी ने
देखा
न था।

अहम्

पुल्लिंग
छाते
का रंग
यद्यपि
जनाना था,
बारिश
से
बचना था
ज़रूरी,

अहम्
के
लिंग
का
विवाद
बचकाना था।

कानफरेंस

अगर
इसे
कहते हैं
कानफरेंस
तो
शेख जी
ऐसी
हमारे गाँव
की चौपाल पर
दिन में
चार होती हैं,

बस
मुनादी
ही नहीं
होती,
बाकि
रिवायतें
ऐसी ही
रौबदार
होती हैं।

तारीख़

फिर
रुकी है
तारीख़
इंतज़ार में
आपके,
तकती है
मुँह,

फिर
कीजिए
मजबूरी में
कोई
मासूम
गलती,
मेहरबानी
करके।

Sunday, July 27, 2014

बात

बात को
तभी
बढ़ाया जाए
जब
उसके
ख़त्म होने के
इम्कानात
इस तरह
ज़्यादा हों,

वर्ना
सुलगनें
दी जाए
अगरबत्ती की तरह,
माहौल महकने दें।

वीज़ा

वीज़ा की
मयाद
गर
इतनी
बढ़
जाये
कि
जीवन
हो जाये,

वैसा ही
हो
जायेगा
किसी का
भी
रुख़
प्रवास के प्रति
जैसा
धरती पर
आपका है।

स्वर्ग

स्वर्ग का
सीढ़ियों
से क्या,
नीचे
भी है
और
ऊपर
भी,

स्वर्ग का
होने से
क्या,
है भी है
और
नहीं भी,

सोच
और
तृष्णा
का विषय है,
सवाल भी है
और
जवाब भी।

तरखान

खाली हाथ हूँ
कोई बात नहीं है,
नहीं कोई औज़ार मेरे पास
मलाल नहीं है,

शब्दों
के तीखेपन से ही
घड़ लूँगा
जज़बातों की लकड़ी,
भाषा की बाँसुरी
बना लूँगा।

खेल आँख मिचोनी
सम्भावनाओं की
सुरंगों के मुहाने पर
छटपटाहट की
उँगलियों से,
हौसलों की साँसों से
सही धुन
बजा लूँगा,

तरखान हूँ
आवाज़ों का
वर्णों का ही
रेती रंदा
बना लूँगा,

खाली हाथ हूँ
कोई बात नहीं है,
नहीं कोई औज़ार मेरे पास
मलाल नहीं है।

Saturday, July 26, 2014

नहला धुला

नहला
धुला,
तैयार कर,
भेज था
चूम कर,
माँ ने,
सुबह सुबह,
उजले मुहँ सा
सूरज,

दिन भर,
किस किस
आस्मां
भटक,
धूल फाँक,
किस
पश्चिम
के
समन्दर में
हाय
जा डूबा।

ऊँचाई

आसमानी
मंज़िल
पर ही
सही,
अब तो
बस करो,
बस जाओ,

क्या
गिर कर
ही
नापोगे
ऊँचाई
अपनी।

नुकसान

खुली
खिड़की
से जो
भिगो दिए
बारिश नें
ओशो की
किताब के पन्ने,

सूखने पर
फूल गए,

नादान
दुकानदार नें
करोड़ों
का खज़ाना
कौड़ियों
में बेच
नुकसान
बचा लिया।

ज़हानत

ज्यों ज्यों
बच्चे
और बड़े
शख्स
बनते गए,

अंग्रेज़ी में
तबकों
को
दबाने की ज़हानत
रहे निखारते,

माँ बोली
की
वर्णमाला
भूलते गए।

प्रबंध

नर्क
में
स्वर्ग
के एहसास
का
इंतज़ाम
मुश्किल था
नामुमकिन
नहीं,

प्रबंधक
का
जादू था,
प्रबंध
हो
गया।

महफ़िल

है
आपकी
हर
महफ़िल
अधूरी,

मौजूद हैं
जहाँ
बिजली
के
हज़ार सूरज,
पर
शम्मा
को
दावत नहीं।

वक्त

अब
देखता है
अपलक
काँच की
टूटी
खिड़की के
पीछे से,

जब
चलता था
तो
खुद को
वक्त
कहता था।

फव्वारा

उठते
फूटते हो
मिट्टी के
फव्वारे
की तरह,
फलते
फूलते
बरसते हो,
बाग ए फिरदौस
के पेड़ हो,
उसके
बच्चे।

सिग्नल

आते
तो
हैं
दिन रात
सोते जागते
हर वक्त
कितने ही
सिग्नल
तुम तक,

तुम्हारे
मस्तिष्क का
रेडियो ही
न हो
ट्यून
तो
किसका
कुसूर!

हाज़री

तुझे
तो
दिख गया है,
दे गया है
सुनाई,
जानता हूँ,

मेरे
अहम्
के
पड़ोस
में भी तो
सब जाने
कि मैं
तेरी
हाज़री
में हूँ।

पोस्टमॉर्टेम

सड़कों
के
कुपोषण
की
जाँच में
मृत ज़मीरों
का
जब
हुआ
पोस्टमॉर्टेम,
तारकोल
रोड़ी
के
टुकड़े
मत पूछो
किस किस के
पेट
से
निकले

मस्जिद

था
अंधा
गूँगा
बहरा,

कहता
सुनता
कैसे
नमाज़,
देखता
कैसे
नमाज़ियों का
सिजदा,

थे
ले जाते
जब
अब्बू
पकड़ उंगली
मस्जिद में,

बस इतना
था
पता,

बैठता था
सामने
कहीं
कोई,
अपने बच्चों
को
मिलता था।

ड्राइवर

तू
चला,
मैं
पीछे
बैठता
हूँ,

ख़ुदा
हो
ज़िन्दगी का
ड्राइवर
तो
और क्या
चाहिए।

सिला

रात
के
जुमले पर
सुबह का
शेर!

किस
युग का
सिला
कब
मिला!

इंतज़ार

जिसके
आने
के
इंतज़ार में
उतावले
हो
इतने,
कभी
उस के
गुज़रे
भी
बरसों
बीत
जाएंगे।

खुशहाली

तारों
में से
आनी थी
जो जो
खुशहाली,
जब तक
थी
बिजली

गई,

सड़क
के
रास्ते
आनी थीं
जो,
ट्रैफिक
में
फंस
कर
रह
गईं।

Friday, July 25, 2014

कशमकश

ले तो लेते
गोद
किसी आश्रम
से
बच्चा
वो
बेऔलाद दम्पति,
मगर
कशमकश थी,

कैसे
बना देते,
किसी
अजनबी को
वारिस,
गाढ़ी
काली
कमाई का।

करीब

गा
कर
सुनाता
जो
आपके
करीब होता,

गुनगुनाहट
छुपा
रहा हूँ
इसमें
काश
तुम तक
पहुंचे।

अमन

करवा
तो दें
सारी दुनिया
का
धर्म
परिवर्तन,
आप सा
महान
बना दें,

आशंकित हैं,
क्या है
गारंटी,
अमन से रहेंगे
जनाब,
ज़हानत
से
कोई
नया
मसला

बना देंगे

वहम

सिर्फ़
वहम था
मन का
उनको
कि
फ़ायदे
में
हैं,

ख़ुद को
खा
रहे थे,
दावत
नहीं
थी।

आसान

खफ़ा हूँ
उन
कपड़ों से
जिनकी
इस्त्री
मुश्किल
है,

कपड़ों
की
स्त्री
तो
आसान
बनाई
होती।

छतरी

बुज़ुर्गों
की
बच्चों पर
छतरी
बाकमाल,

सायों
की
धूप,
मुश्किलों
की
बारिश
की
क्या
मजाल!

अंग्रेज़

अंग्रेज़ी
बोल
कर
दबाते
हो,

वो तो
निकल
गया
हिंदी में
अनसुना
करके,

अब
पीछे
किस
अंग्रेज़ को
मन ही मन
सुनाते हो।

छोड़ो

मँहगे
ब्रांडेड
सुंदर
मज़बूत
भारी
टिकाऊ
हैं
यकीनन
तुम्हारे
ताले,

मगर
छोड़ो,

चाबियाँ
ढूँढो
जो
ढूँढ़ने
आए हो।

जीत

जीत
को
हराने का
मेरा
कोई
इरादा
नहीं
था,

बीच से
हट
गया,
उसे
जीतने
दिया।

वायरस

ख़ुदा
तेरे
इंसान
नाम के
वायरस
का
एक्सपेरिमेंट
बिगड़
गया है,
महदूद रख
इसे
धरती तक
फैलने
से
रोक।

होंठ

चूमते
तो
होंठ हैं
जब
कोई
प्यारा
अपने
प्यारे को
प्यार
करता है,

असल में
रूहें हैं
जो
ज़ंजीरें तोड़
चाहती हैं
मिलना।

इंद्र धनुष

न स्टैण्डर्ड
न हाई डैफ़िनिशन
मन का पटल,

तैरती
तस्वीरों
की
कशिश
बेमिसाल
मगर।

न स्टीरियोफ़ोनिक
न डॉल्बी
ज़हन की
आवाज़ें,
माज़ी की
पुकार
मधुर
मगर,

न रंगीन
न श्याम श्वेत
अतीत
की
यादें,
आँसुओं
के
इन्द्रधनुष
आर पार
मगर।

दाने

देखे
न गए
जो
ख़्वाब
हौंसलों से,
क्षमायाचक
पलकों
नें
झपक कर
उड़ा दिए,

बैठे रहे,
फिर
भी,
ताउम्र,
वो सारे,
आँखों
की
मुंडेर,
बीनते
इजाज़त
के
दाने।

गलियाँ

दुनिया की
जिन
गलियों
में
मैं
नहीं
हूँ,

वो
गलियाँ
मेरी
दुनिया
में
नहीं
हैं।

नया

साँप
की
तरह
अब
खाल
उतार
देने का
दिल
करता है,

नया हो,
फिर से
पुराना बन,
आगे
बढ़
जाने का
दिल
करता है।

नींद

सफ़ेद
पन्नों
की चादरों पर
जिल्द
की
रजाई ओढ़,
कैसे
बेफ़िक्री से
थका
इतिहास
सोता है,

वर्तमान की
नींद
उड़ी है,

हवा
में
बिखरे
कागज़
भाग भाग
पकड़ता है,
बिना
अंकों के
तरतीब
ढूँढ़ता है।

Thursday, July 24, 2014

आसमान

उतर आओ
ज़मीन पर
ये
गलत
आसमान है,

पाताल
का है
प्रतिबिम्ब,
सम्मोहन की
धुंध
से
ढका है।

रूह

बड़ा दिल करता है
कभी कभी
करूँ बंद
टीवी,
और आँखें भी,
कुछ न देखूँ।

बस सुनूँ
आधी रात के
सन्नाटे में,

रेडियो...

निकल जाने दूँ
जिस्म से रूह,
उड़ जाने दूँ उसे,
पकड़
रेडियो की तरंगें,
दूर देश,

वहाँ तक
जहाँ से
आती थीं वो।

बैठनें दूँ उसे
उसी आवाज़ के सामने,
देखते
उसे
एकटक
अपलक
घंटों...

हवा

चलो
उचक कर
रोमांच
की
एडियाँ,
तोड़ें
हवा से
कुछ
गाने,

आओ
रेडियो
सुनें।

सिज़लर

आतिशबाज़ी
करता
पहुँचा,
तिड़ तिड़ाता,
अपनी ही फैलाई
धुंध को
चीरता,
सिज़लर,
जो
मेरी टेबल तक,

बिना
केक
के ही,
अकेले,
मैंने ख़ुद को
हैप्पी बर्थडे
कह लिया।

कलम

कौन कौन सी
छिपी हैं
कवितायेँ
इस कलम की
स्याही में,
ऐसे नहीं
बतायेगी,

कुछ
बीत गुज़रेगी
इस पर
तो
लिख
सुनायेगी ।

दूध

कामधेनु
दूध
की
थैली में
जिस
गाय का
दूध,

उसी
गाय
के
उदर में
उसी
दूध
की
थैलियाँ,

हाय,
सनातन
युग
की
ये कैसी
मजबूरियाँ !

घंटी

शुक्र है
नानी
की कहानियों
वाले
बेइंसाफ़ी
के
बड़े बड़े
घंटे
अब
नहीं
होते,

रहते
दिन भर
बजते।

कैसे
सुनती
उनकी
भयानक
निराशाजनक
आवाज़ में
मुझे
मेरे
स्कूल की
घंटी!

Wednesday, July 23, 2014

सरप्राइज़

सरप्राइज़
रखा है
तुम्हारे
लिए,
चुपचाप
आ जा,

ढककर
छुपा
रखा है
मुश्किलों की
चादर में,

शोर
न कर,

ले जा।

मौके

दूँगा
तुझे
मौके
मेरे बच्चे,
फ़िक्र न
कर,

हर
मौका
संभालता जा
चुपचाप,
किसी से
ज़िक्र
न कर।

खेल

बायें
हाथ का
खेल थी
ज़िन्दगी,
हार गए,

खेलने
की शै थी,
समझने
बैठ
गए।

स्नातकी

तुम्हारे
मुक्त विश्वविद्यालय
से
कर
रहा हूँ
स्नातकी,
यद्यपि
मान्यताप्राप्त
नहीं,

बंदगी
ही
तो
करनी है,
नौकरी
नहीं।

पलक और आँख

रास्ते पर आज
इत्तेफ़ाकन
तुम्हारा बनाया
धरती सा
पत्ता
और उस पर तैरती
तुम्हारी बनाई
कायनात सी
ओस
की पारदर्शी बूँद देखी,

गर थे
वो
दोनों
पलक
और
आँख
तुम्हारे,

तो
या ख़ुदा
आज
तुम्हें
देख
लिया।

मर्ज़ी

यही
है
तेरी
मर्ज़ी
तो
जा
कर ले,

यूँ
घुट घुट
के
न मर
मेरे साथ,
क़िस्मत!
तू
अपनी
कर ले।

रोटी

गूँध
दिया है
ज़िन्दगी
तूने
मुझे
आटे
की तरह,
तंदूर में
उल्टा
टाँगा है,
अब
मक्खन
तो
लगा
मेरे
पके
वजूद पे,
कोई
भात
तो
चखा।

Tuesday, July 22, 2014

अणु

अणुओं से
बने
परमाणु हो,
कब
समझोगे,

ब्रह्मांडीय
लेबोरेटरी के
एक्सपेरिमेंट हो,
कब
समझोगे!

हुस्न

आपके
हुस्न से
हमें
क्या,

कुछ
पका
कर
खिलाओ
तो
बात
बने।

टी शर्ट

आधी
बाज़ू
की
टी शर्ट
पहनकर
कमाल
हो गया,

बाज़ुओं
से
ज़्यादा
गिर
गए
बरस,
मैं
फिर से
नौजवान
हो
गया।

Monday, July 21, 2014

बादल

कहीं
गीली
कहीं
सूखी
है
सड़क,

आज
फिर
चलते चलते
रोया है
बादल।

मेहरबान

लिखवाता जा
जब तक
मेहरबान है,

यही
दिखा कर
मना लूँगा
जब
रूठेगा।

रस

फूलों
का
झगड़ा
है
रंगो बू का,
तू
बीच
में
न आ,

चूमती
जा
सबको
तितली
की तरह,

रस
बटोरती
जा।

ज़मीन

संभाल
के
रखी
है
तुम्हारे
लिए
ज़मीन,
फ़िक्र

करो,

जब भी
कहोगे
दफ़नाने को
दफ़ना
देंगे।

क़यामत

न डर
क़यामत
नहीं
है
वो,

बस
अकेला है
बेचारा,
क़यामत
से
डरता
है।

राज़

मेरी
देह
को
देख कर
करते
हो
तारीफ़,

आग
में
मिलोगे
तो
राज़
बताऊँगा।

आसमान

आसमान
गिरने
के डर से
भागते
हो
क्यों?

वालिद
सा है
तुम्हारे
सर पे
वो,

उसी
को
ढूँढोगे
इक
दिन
जो
उठ जाएगा।

डर


डर,
हो
जाने दे,
जो चाहता है,
होना,

शायद
कब से,
है
इंतज़ार में
वही,
जिसके
होने का
तेरे वजूद को
कब से
इंतज़ार है।

काम

शायर
को
तर्जुमान
का
काम

मिला,
कहा गया
था जो

कहा,
दिल
में
जो
थी
बात उनके,
कह दी,

ऐसे
कि
असर न गया।

नींद

मैं
और
मेरी नींद
जागते
हैं
अभी,

होश
तू
सो जा,
अभी
सपने
हैं
कई।

सलाम

एक
सलाम
और
आपको
फिर से
कर लूँ,

झुक
जाने दूँ
आँसुओं
के बोझ से
दिल,

अलविदा
कह
दूँ

उजाला

दुनिया
सोई
तो
खिलीं
कलाम
की
कलियाँ,

ये
कौन से
सूरज
हैं,
जो डूब
कर
उजाला
करते है!

सूखे ज़ख्म

गिन कर
कविताएँ
लिखे
कौन,

सम्भल कर
जज़्बात
छेड़े
कौन,

करता है
जी
तो
कुरेदता
हूँ
सूखे
ज़ख्म,
मीठे
दर्द
से
मुट्ठियाँ
भरता
हूँ।

वादा

हीरे
सी सुबह,

सोने
सी दोपहर,

चाँदी
सी शाम,

राख
सी रात,

फिर
जल,
बुझ
गया
एक और
दिन का
झूठा
वादा।

ऊन

उलझ
गई है
ऊन सी
ज़िन्दगी,
कैसे
सुलझाऊँ,

कैसे
बुनू
एक
अदद
स्वैटर,
ठिठुरते
अस्तित्व
को
गरमाऊँ।

गुब्बारे

फुला फुला
देह के
गुब्बारे
भर
साँसों
की
हवा
उड़ाते हो,

फिर
बच्चों सा
फोड़ते हो
सबको,
घुसा
मर्ज़ी के
नाखून।

पापा
से कहो,
खिलौने
ला दें,
इंसानों
जीवों को
बड़ी
तकलीफ़
होती है।

Sunday, July 20, 2014

एसाइलम

पागलों
की
बस्ती
में
मुझे
नहीं
रहना,

किसी
सभ्यता
का
एसाइलम
हो जाए
मंज़ूर
तो
चलूँ।

व्यापारी

आप तो
व्यापारी थे
पक्के,
आप
कैसे
चल बसे?

कर लेते
इस हिसाब
में भी
हेर फेर,

इहाँ उहाँ
कुछ
दे दिला
अभी
जी लेते!

कान

कुत्तों
को भी
देखा है
करते
इस्तेमाल
कानों को
रडार की तरह,

क्यों
कर रखे हैं
दोनों
तुमने बंद,
बिन्दे
रान्झों
की तरह।

सम्मोहन

इतनी
सी
बात
पर
सम्मोहित हो!

क्या है
इसमें
इससे
ज़्यादा
जिस पर
मोहित हो?

व्यापार

ताउम्र
चूसकर
खून,
प्याऊ
लगवाना,
अच्छा
व्यापार है,

पिछले
की
शुद्धि,
अगले
का
प्रचार है।

साथ साथ

आज भी
बैठते हैं
बाऊजी बीजी
साथ साथ
दुकान में
सुबह से
शाम तक,
रखे
चारों
चौकस
आँखें
दुकान,सामान,
ग्राहकों और
गल्ले पर,
पहने
हार,
टंगे टंगे
दीवार पर।

भीख

आत्मतुष्टि
की
भीख
दे
संतुष्ट
हो
गये,

कल
अहं
का
पेट
था भरा,
थे
बढ़ गए।

बाक़ी

पूछे
जो
कोई
तो
क्या
बतायें
कितनी
घड़ियाँ
और
हैं
बाक़ी,

एक
कलाई
पर
है,
दस ग्यारह
दराज़ में।

Saturday, July 19, 2014

खालीपन

दम
खींच
लेती हैं
पुरानी
तसवीरें
आँखों
के रास्ते,

भरे
सीने
में भी
कुछ
पल
को
खालीपन
रहता है।

दरार

ज़ोर से
जितनी
दबाई
थीं
जो
भावनायें,

उतनी ही
ऊँची
फूटीं,

जब
दरार
मिली।

जय

करते थे
जय,
लगाकर
माथे से,
जो
लग जाता था
कभी
पैर
किसी किताब को,

अब
किताब
चूमती है माथा,
पकड़कर
चेहरा,
जो
कभी
लड़खड़ा जाते हैं
पैर।

सूरज

मत कर
सो जाने
की
ज़िद,
अभी
जाग,

सूरज
डूबा है
कहीं,
कल
सुबह तक,
बुझा
नहीं है।

बात

क्यों
कहें
सुनें
लम्बी बात,
ज़रूरत
क्या है?

असर
की बात
है,
और
जुस्तजू
क्या है।

बददुआ

देर
तक
जागे होंगे
कल
रात
वो
यकीनन,

नींद
उड़
जाने की
बददुआ
हमारी
कुछ तो
ज़रूर
लगी होगी।

नाम

नाम
बस
नाम
नहीं है,

पता है
इक
शहर का
जो
आबाद
कहीं
है।

शायर

देखें
तो
ज़रा
शायर
का
चेहरा,

एक
ही है,
या
मुखौटे
कई
हैं!

ज़िद

उसी
तरफ़
न देखने
की
ज़िद
थी
उनकी,

जिस
ओर
देखने
की
ज़रुरत
बे-इन्तेहा
थी।

शिकार

क्यों
जाऊँ
जंगल
शिकार को
मैं,

ले
तो
आता हूँ,
माल
से
ख़रीद कर
मरा
मराया।

हैरानगी

किस
किस
बात के
इत्तेफ़ाक पर
हैरान
होऊँ,

अभी तो
हूँ
शर्मसार
कि
ज़रुरत
है
अभी
तक।

बादलो

जाओ
जल्द
बादलो,
यहाँ नहीं
वहाँ
बरसो,

गिरे
हैं
चंद
सौ
लोग
जहाँ
आसमां से
उड़ते उड़ते,
धू धू
जलते
हैं।

आखिरी बस

लो
शाम की
आखिरी
बस
भी
चली
गयी,

लो
आज
भी
हम
यहीं
हैं,
आपके
पास,

गए
नहीं।

होनहार

बचपन में
चलाकर
गुलेल
मार
गिराता था
जो
हवा में
उड़ते
कबूतर,

हो
गया है
जवान,
अम्मा,
तेरा
वही
बेटा,

होनहार
ने
मार
गिराया है
आज
मिसाइल से
आकाश में
उड़ता
जहाज़,
बनके
यूक्रेन
का बागी,

जा
संभाल।

शुक्र

शुक्र
है
जलाया
नहीं था,
दफ़नाया
ही था,
बच्चियों को
थीं
जो
शिकार
हादसे
की,

कैसे
लाते
राख़
उठाकर
अस्पताल में
करने
पोस्टमॉर्टेम
तीसरी बार!

तारीफ़

काट कर
हाथ,
भेज
दिए
उन्होनें,
वाट्स एप्प पर,
बजाते
ताली,

शुक्र है,
इशारे
में
भेजा
पैग़ाम,

बोल के
करते
तारीफ़
तो
कहीं
ज़ुबान
ही न
भेजते!

राजा

टूटी
टपकती
नाम की शेष
छतरी,

मैले कपड़े,
उखड़ी चप्पल,
उलझे बाल,
गंदे दाँत,

तो क्या!

गरम
नरम
भुट्टा
मिल
गया
जो
कहीं से,

पागल
भिखारी
कुछ पल
का
राजा
बन गया।

जगह

तेरे
शहर में
अब तो
पैर
रखने
की भी
जगह
नहीं,

संभालोगे
कैसे
मेरा
दिल,
किसके
कदमों में
रखोगे!

मदद

एक
बार
उस
बशर की
मदद
क्या
मैंने
कर दी,

परेशान
कर
दिया
ज़हन नें
गूँज गूँज कर
कि
कोई
फ़ायदा
तो
उठा।

दूर

ख़्यालों
में,
आपसे
बहस में,
बड़ी
दूर
निकल
गए,

इतनी
दूर
हमें
भेजना,
तो
शायद,
आपके
ख़्यालों
में भी
न था।

आज़ाद

इतनी
पास
थी
आज़ादी!

हैरान हूँ!

शायद
ख़्याल ही
आज़ादी का
आज़ाद
न था।

Friday, July 18, 2014

हैरान

बड़े
लापरवाह
यकीनन
हम हैं,

मर्ज़ी से
मगर
जाग
जाएँ
तो
ख़ुद को
हैरान
करते हैं।

ताबूत

ताबूत
नया
बनाओ
तो
कोई
लाश
आए,

हौसला
अफ़ज़ाई
के बिना
कोई
जान से
कैसे
जाये!

शहर

एक
बारिश में
तेरा
शहर
समन्दर
हुआ
जाता
है,

सोच
रहा
हूँ
तेरे
समन्दर
कितने
शहरों से
भरे
होंगे!

क्राँति

किस किस
को
समझायेंगे,

हर
एक
में
क्राँति
अभी
बाक़ी
है।

रास्ता

चलो
आज
किसी
दूसरे
रास्ते
से चलें,

शायद
मिल
जाये
कोई
तीसरा
रास्ता।

दरवाज़ा

लाख
खटखटाया,
बजाई
घंटियाँ,
दी आवाजें,
की
मिन्नतें,

वक्त
से
पहले
उन्हें
नियती
ने
अन्दर

आने
दिया,

जिंदा
रहे,
ज़मीन का
दरवाज़ा

खुला।

बुलावा

घसीट
घसीट
कर
शिकस्त
हमें
जीतने
को
फिर
बुलाती
रही,

घायल
हम,

वजूद
की चारपाई
पर
अहं के
पाये
जकड़
अकड़े
रहे ।

फल

सदियों
की
मेहनत
का
फल
वक्त के
हाथ
से
छूट
गया,

बेसब्र
लम्हों
से जो
ज़रा सा
इंतज़ार

हुआ।

सरहद

एक
सरहद
ताउम्र
हमसे
पार

हुई,

रूहों
की
रियासत
थी,
रूह
पे
छोड़ दी।

निःशब्द

आवाज़ों
ने
पकड़ लिया
डाल
बाज़ुएँ
मेरे
कानों
से,

आँखों से
नज़ारों ने
जकड़
लिया,

ज़ुबान
पर
था
ताला
अचम्भे का,

रह
गया
मैं
खड़ा,
जड़,
निःशब्द ।

Thursday, July 17, 2014

नाम

धक्का
सा
लगा
ये
देखकर,
मेरे
नाम
का
कोई
और
भी है,

किसी
ने
आज
मुझको
मुझसे
चुरा
लिया |

इरादा

उस
दुनिया
के
दुःख का
इस
दुनिया
के
उत्सव
से
क्या?

वो
उसकी
ज़िद
है,

ये
मेरा
इरादा|

बदला

हज़ार
बरस
पहले का
बदला
अब
क्यों?

अगले
हज़ार
बरस का
फिर
रहन                 (गिरवी रखना)
क्यों?