Wednesday, April 29, 2015

तजुर्बा

उलझा के रखा
है मुझे
कि जागूँ न,

कमाल तजुर्बा
आपका
मेरे ख़ुदा,
गर जानूँ न!

क्या

वो
मेरा डर है
या क्या
मेरा ख़ुदा जाने,

वो
मेरा ख़ुदा है
या क्या
मेरा डर जाने!

आँख

हैं कायनात में
कई आसमां,
आसमानों में
सितारे कई
मुझे इनकार कहाँ!

क्या है
मगर
ये आँख
जिसमें
आसमां भी हैं
सितारे भी!

ज़ोर

ऐ ज़िन्दगी
मुझे ख़ुश कर
हैरान कर
मेरा मन बहला,

कर मेरा मनोरंजन
मेरा ध्यान खींच
मुझे दिखा
बता
सुना,

हूँ आया
तेरे खींचे
बुलाये
मेरी कद्र कर,

रखूँ तुझे फ़ैरिस्त में
फिर लौटूँ
कुछ ज़ोर लगा

Tuesday, April 28, 2015

हाथ

कहीं आस पास ही है
तेरी नियती का हाथ
हाथ बढ़ा,

हाथ जोड़ खड़ा न रह
हाथ खोल के चल।

शिखा

करना चाहिए था विचार
दर्शक दीर्घा की पहली तीन पंक्तियों में बैठे
कुलीनों को
मंचन उपरान्त
मंच के पीछे
तस्वीर खिंचवाने की मंशा से
मनोज जोशी को
तुरन्त घेरने से पहले,

बहुत मुमकिन था
अभी होती
आचार्य विष्णुगुप्त की रूह
अभिनेता की देह में,

शिखा बाँध ली थी
यद्यपि
उन्होंने,
शपथ अभी
बरकरार थी।

Saturday, April 25, 2015

ज़िद

किसी और की
रूह को
बुलाने की
करते हो
हर रोज़
ज़िद,
यकीनन
हो अभिनेता
जो
रूह अपनी
यूँ रुसवा
करते हो!

Tuesday, April 21, 2015

वो दोनों

पहाड़ी की उस चोटी से
लौटते समय
रास्ते में
सड़क किनारे
है एक छोटा सा वीरान मन्दिर
न जिसमें कोई मूर्ति है
न पुजारी,
न घंटी है
न चारदीवारी,

चिराग भी किसी नें
बरसों से अब जलाया नहीं,
कोई यहाँ आया नहीं,

रहते हैं उस दो हाथ के मन्दिर में
बस दो जन,

एक वो शख्स़
जो गिरा था
जीप संग
वहाँ से
खाई में
उस रात
एक मुद्दत पहले,

दूसरा
उसका भगवन
जिसकी मर्ज़ी थी|

खुशफ़हमी

अपनी
मौलिकता पर
नहीं कोई
खुशफ़हमी मुझे,

रीसाईकल्ड रूह हूँ
रीसाईकल्ड जिस्म में!

Sunday, April 19, 2015

बीच में

नहीं पहुँच पाईं
न जाने कितनी किरणें
ध्वनि तरंगें
और न जाने क्या क्या
मन्ज़िल तक अपनी
बीच में आ जाने से तेरे,

तेरे साये के नृत्य में
ईश्वर का
मोर्स कोड है।

Wednesday, April 15, 2015

कोई और

बच्चो
बनना बेशक
तुम
हमारे जैसा तीर,
चढ़ना
मगर
किसी और कमान,
खींचना कोई और
प्रत्यंचा,
लगना किसी और
लक्ष्य!

कहानी

नदी के पार वाली कहानी
कहानी नहीं है,

कहानियों के
पहाड़ों के उस तरफ़
की नदी
कहानी है!

जल्दी

तूने
जाने में
बड़ी जल्दी कर दी
मेरे दोस्त,

दुनिया
अभी भी है वही,
ज़िन्दगी
अभी भी है वैसी,

यकीनन था राज़ कुछ और
तूने जानने में
ज़रा जल्दी कर दी!

मदद

कहाँ गया
मेरा
धैर्य
कोई ढूँढे
मेरी मदद करे,

जल्दी
नहीं
कोई,
भले आराम
मगर
गहनता से
ढूँढे।

Tuesday, April 14, 2015

दहशत

दहशत नहीं है
मेरी
मेरे अधीनस्थों के बीच,

दहशत नहीं है मुझे
कि न मानेंगे कहा
इस तरह
वो मेरा!

गीत

न होता सुना
मैंने वो गीत
तो ज़रूर समझता
प्रतिभावान संगीतकार गीतकार
सड़क पर मेरे पीछे चलते
उस फटेहाल
नौजवान को,
अब इस उधेड़ बुन में हूँ
कि क्योंकर होगी
उसके वैसे जीवन की
वो तर्ज़
क्या और क्यों होंगे
उन बोलों में
उसके बोल!

पाक

काश होते
बचपन और जवानी में भी
बुज़ुर्ग
ये सियासतदान,

दिखते और लगते
खोजने वालों को
ऐसे ही
नेक
और
पाक!

Sunday, April 12, 2015

मुआफ़ी

कह न दूँ
किसी नामुनासिब
शै को ख़ुदा
या इलाही
बड़ी उलझन में हूँ,

मजबूरी में ढोता हूँ
ख़ुदी का बोझ
मुझे मुआफ़ करना!

ज़र्रा

ख़ुदा की तरह
ही हो
उसी का
हर ज़र्रा,
बहुत मुमकिन है
उसे ही
नामंज़ूर हो,

होगी उसकी भी
कोई तमन्ना
जो
कुछ और बना|

फ़ैरिस्त

न कर जुस्तजू
ख़ुदा होने की,

ख़ुद को सम्भालना
तब भी
तेरी
फ़ैरिस्त में होगा!

ख़्याल

न कर
जुस्तजू
इस कदर
मुलाक़ात की,
मैं कौन हूँ,

ख़्याल से ख़्याल मिला
मेरे साथ रह!

शुक्रगुज़ार

लाखों
लटके हैं
उल्टे
महीनों से
अंधेरे गर्भों में,

अधर
भरे हैं
इंतज़ार में
ज़िन्दगी की
जिसके आप
शुक्रगुज़ार नहीं!

नली

तड़पता हूँ
क़ैद गोली सा
जिसे बात बात पर
दागता हूँ,
मिल जाती है
जलकर
उसे
खुली फ़िज़ा,
मैं पीछे
फिर
नली में
धूएँ सा
भटकता हूँ !

महरूम

माँ बाप का
होना भी
कभी
बेअसर होता है,

ख़ुद से
महरूम
इन्सां भी
यतीम होता है!

Friday, April 10, 2015

मिलन

उनके मिलने में
अब वो
जोश नहीं,
उंगलियों से उंगलियाँ
आज छुई उन्होंनें,
जो
कभी
हथेली की लकीरें
मिला
मिलते थे!

Thursday, April 9, 2015

पैर

अभी तो
गुज़री है
एक ही रात
तूफ़ान
गुज़रने के बाद,

हौसला है
कि अभी से
टटोलता है
बची ज़मीन पर
पैर!

बहाना

चाँद
कितना बड़ा होगा तू
जो इतनी दूर होकर भी
दिखता है,

या है,
बता,
बहुत क़रीब
उस पहाड़ के ऊपर
और
न मिल सकने का
बहाना ढूँढ़ता है!

बात

चलते फिरते
पंडितजी
के झोले में
होंगे
कुछ चावल
जिन्हें पकड़ाकर
वो पकड़ते हैं,
होगी
एक पतरी
जिसे खोल
वो बंद सबको करते हैं,

होगा नहीं
मगर
झोले में
कोई
भगवान
जिसके लिए वो मन्दिर बुलवायेंगे,
बाक़ी की बात
वहीं
समझायेंगे|

छतरी

भीग ले
कुछ देर
साफ़
बारिश के पानी में
मेरी पीठ पर बंधे
ईश्वर के बच्चे,

झुका लेने दे
खुली छतरी
पैरों के पास
एक तरफ़,

अंधी कारों
के बेसब्र पैरों से उछलते
निज़ाम की टूटी सड़कों में भरे
नियती के कीचड़ से
तुझे बचाने|

Wednesday, April 8, 2015

फ़सल

गेहूँ की
खड़ी फ़सल
गिरने पर
की है
पति पिता बेटे
नें
ख़ुदकुशी,

पति पिता बेटे  की
खड़ी फ़सल के
गिरने पर
क्या करें अब
पत्नी बच्चे माँ बाप?

Friday, April 3, 2015

कुछ ख़ास

ग़ौर से देखूँ अगर
तेरे क्रिया कलाप
तो माफ़ करना
ऐ बशर,
करने को
तेरे पास
कुछ ख़ास
नहीं है,

ज़िन्दा है तू
इत्तेफ़ाकन,
वर्ना
नहीं है!

Wednesday, April 1, 2015

जीत

जिस
जंग में
हमें
जीतना लगा असम्भव,

खेल बना कर
दिल
बहला लिया।