Monday, November 30, 2015

संयम

यूँ तो
बहुत
संयम था
उसमें,

वक़्त पड़े
संयम खोलने का
संयम नहीं था!

Sunday, November 29, 2015

ज़िंदा

आपके
इन्तक़ाल की
ख़बर
मुझे
बहुत देर से
मिली,

मरने के बाद भी
आप
एक अर्सा
थे
ज़िंदा!

नसीब

अपनी अपनी
कम्फर्ट ज़ोन में
जी
रही है
दुनिया,

कम से कम
इतनी ज़िंदगी
हर किसी को
नसीब है!

ऊन

उलझी हुई
ऊन है
ये दुनिया
का घोसला,

सुलझाओगे
इसे
तो
कहाँ
जाओगे!

Friday, November 27, 2015

हौसला

हमें
दबाकर
चलो
उन्हें
हौसला तो है,

गुमराह
हो कर भी
कोई
मन्ज़िल ओ मक़सूद
तो है!

ज़िद

मुझे
करने की
ज़िद में
ये क्या
कर लिया
ख़ुद को
तुमने,

होने देते
मेरा
मुझको,
ख़ुद को
अपना
करते!

इंकार

बदल
कर भी
कुछ
वही रहना,

तौबा
ये
तेरा इंकार
ख़ुदाई से,
इंसां रहना!

मकाँ

जब तक
गिरता नहीं
ये मकाँ
रह लूँ
इसमें,

देह होती
तो
रहता
हमेशा!

मकाँ

जब तक
गिरता नहीं
ये मकाँ
रह लूँ
इसमें,

देह होती
तो
रहता
हमेशा!

Thursday, November 26, 2015

ख़ज़ाना

किस किस सफ़े नें
बाँध पीठ पर
करवा पार
युगों के दरिया
पहुँचाया है
आपके लबों से
शब्दों का ख़ज़ाना
मेरे कानों के तट,
मालूम नहीं,

मुझ ही से
शायद
जो कहा था
आपने,
मैंने सुन लिया!

चुपके से

मेरे ही कानों में
आपके
अधरों ने
कुछ
चुपके से
कहा है,

शब्दों के
अंदाज़े में है
दुनिया,
उनके
नसीब में
वो
लर्ज़िश कहाँ है!

सौग़ात

मैं
आप्पे
पा लवाँगा
सिन्ने लरज़ दी कम्बणी
आप जी दे
शब्दां च
रूह नूँ
नव्हा के,

सुक्के
तय कीते
अक्खराँ दी सौग़ात
बस पुचा देवो
मेरे कन्ना दी
बुक्क!

शक़

यूँ
तपाक से मिला
कुछ सवालों
का जवाब,

कुछ
शक़
सवालों पर
कुछ
जवाबों पर
आया!

Wednesday, November 25, 2015

चन्न सूरज

चन्न,
तूँ ताँ
ऐत्थे ही सी
ओदों वी,

तूँ ताँ
ज़रूर
होवेगा वेखेया,
ओ मुख,

की सी
भाव
ओहना दे चेहरे ते
जदों सी उचारया
“जो तुद भावे साई भली कार"!

की
ओस तों पहलां वी सी तूँ
ऐना ही शीतल!

सूरज,
वेखेया होवेगा ज़रूर
तूँ वी
तुर्देयाँ
तिन्ना नूँ
तपदी ज़मीन ते
हर दिशा,

की ओस तों बाद वी
हैं तूँ
आपणे बलदे वजूद तों
ओना ही
विचलित!

Tuesday, November 24, 2015

नया जहाँ

चलो
बसायें
एक
नया
जहाँ,

कहीं और
न सही
तो
यहीं सही।

Monday, November 23, 2015

ऋतु

फल की तरह
पक कर
टपक गया
मुश्किल वक़्त,

विश्राम के पतझड़ नें
मरहम की शीत ऋतु का
हौले से
मेरे कानों में
फिर
नाम लिया।

आवाज़

दूर
अन्तरिक्ष में
जाने कहाँ तक
पहुँच चुकी होगी
उनकी रूह
पता नहीं,
कौन झाँके
गहरे
स्पेस के कूएँ में,

फूलों की मिट्टी में है
किशोर की देह,
फ़िज़ाओं में आवाज़!

फ़ाइव स्टार

फ़ाइव स्टार नूँ
पेड़ दे थल्ले
लेआवें
ताँ आँवाँ,

सोफ़ेयाँ
दी जगह
डावें
दाओण दा मंजा,
ताँ खावाँ।

Sunday, November 22, 2015

याद

चाँद देख
याद आया घर
रूह की
बच्ची को,

चाँद को भी
घर बसाने का
फिर
ख़्याल आया!

अंदाज़ा

क्या लगाते हो
अंदाज़ा
मुस्कुराहटों से
खुशनसीबी का,

दिल
के सहरा से
वो दौर भी गुज़रें हैं
जिनके निशां नहीं!

पलस्तर

दीवारों में
हंसते हंसते
चुनवाये
नहीं गए हैं,

वो लोग
खड़े हैं
ईंटों के
बिन पलस्तर
मकाँ के भीतर
खिड़की से
झाँकते हैं।

बन्दूक

हाँ,
उँगलियों
के हाथ में
थी बन्दूक,
जब चली,

दीमाग
दूर दूर तक
नहीं था!

वीडियो

उल्टा
चला कर
देखे
जो इन्सानों के
वीडियो,

कब्रों से
निकल कर
चलते पाये!

धूप

जाती
गर्मियों
की धूप है,
सेक ले,

कौन जाने
अगले बरस
तू
दर्मियाँ
न रहे!

सोचाँ


सामणे
पैरापिट ते
कौण ऐ बैठेया
बन्न
बेबसी दे सिर ते
हौसले दा
मधेड़,
मार
चमड़ी दे कम्बल दी बुक्कल,

किदरे
फेर
सोचाँ दी अंतहीन राह ते
कोई
वचारा
इंसान ताँ नहीं!

हमराह

अपने भीतर के
जीपीएस,नक्शे
के हिसाब से
चल,

मील के पत्थरों
से गुमराह न हो,
जो
तेरी नहीं है
मंज़िलें
उन राहों का
हमराह न हो!

पलकें

तीन टाँगों पर
खड़ा है वो
अकेला
देखता
आसमाँ से लटकी दुनिया,

करते इंतज़ार
आँख की
उस ऊँगली का
कि आये
और झपकवाये
पलकें उसकी!

Friday, November 20, 2015

पैरापिट


सामणे
पैरापिट ते
कौण ऐ बैठेया
बन्न
बेबसी दे सिर ते
हौसले दा
मधेड़,
मार
चमड़ी दे कम्बल दी बुक्कल,

किदरे
फेर
सोचाँ दी अंतहीन राह ते
कोई
वचारा
इंसान ताँ नहीं!

धूप

जाती
गर्मियों
की धूप है,
सेक ले,

कौन जाने
अगले बरस
तू तो रहे
गर्मियाँ
न रहें!

वीडियो

उल्टा
चला कर
देखे
जो इन्सानों के
वीडियो,

कब्रों से
निकल कर
चलते पाये!

बन्दूक

हाँ,
उँगलियों
के हाथ में
थी बन्दूक,
जब चली,

दीमाग
दूर दूर तक
नहीं था!

Wednesday, November 18, 2015

होश

है उनके
सुरूर में
ग़ुरूर अभी बाक़ी,

पिला
उस इंतहा तक
साक़ी!
कि इन्हें
होश आये!

ज़ंग

ज़ंग
लग गया
चूड़ियों में,

बन गईं
बेड़ियाँ
इंतज़ार ए इजाज़त में!

किसकी

किसकी थी
सोच
जो आपकी आवाज़
में थी,

ख़ामोशी आपकी
कह रही है
कुछ और,
वो खुशनीयत,वो तसल्ली
किसकी थी!

लहर

मत
बह
लहर में,

हवाओं
के लिए
ये आम है!

चलचित्र

नहीं जानता
चल रहा है
कौन कौन सा
स्वप्न चलचित्र
किस किस
पलक के पटल पर,

बैठा
देखता है
अकेला
निद्रा गृह का मालिक
या वो भी
नहीं है!

सान्निध्य

नेता
पक्ष
प्रतिपक्ष
दोनों हैं
पहुँच चुके, स्वामीजी!
आपके सान्निध्य में,

बताइये
सरकार
गिरने से पहले
सम्भलेगी,
या
सम्भलने के बाद
गिरेगी?

चमक

बारूद की चमक है
उनकी आँखों में,
है धुएँ सी
मुस्कुराहट,

शायद
छिड़ी है
कहीं जंग,
नया
ऑर्डर मिला है!

ज़ुल्म

बड़ी ना इंसाफ़ी
बड़ा ज़ुल्म है
रिआया का
हुक्मरानों पर,

कीमत भी लेते हैं
मय भी पीते हैं

दे कर बहु मत
करते हैं मति ख़राब
और तानाशाह भी कहते हैं!

Tuesday, November 17, 2015

आविष्कार

करो
आविष्कार
किसी दूसरे
शून्य का,

भ्रष्टाचार बाबत
ज़ीरो टॉलरेंस
के उनके
शंखनाद को
करो
सत्यापित!

हक़ीक़त

मंज़िल
की हक़ीक़त
गर जानता है,

ठहर के चल,
रुक के पहुँच!

दो शब्द

जब भी
करता हूँ
टीवी ऑन,
लगाता हूँ
कोई भी
न्यूज़ चैनल,
चन्द मिनटों में
लाख कोशिशों के
बावजूद,
निकल ही जाते हैं
हमेशा
दो शब्द
मुँह से...
"साला ड्रामा"

फ़ना

दुनिया
फ़ना भी हो जायेगी
तो रहेगी,

इंसान का रहना
कोई एहसान नहीं है!

Monday, November 16, 2015

कर्ज़

किस किस बात पे
अब बे ऐतबारी करूँ,

कर्ज़दार हूँ
पहले से
ज़िन्दगी पे
यकीन करके!

बिस्तर

अभी
वक़्त है
एलन!
फ़िलहाल
वहीं
रेत पर सो,

किस पार
लगेगा
तेरी
मिट्टी का बिस्तर
बतायेंगी सरकारें,
कुछ मसले
हल तो हों!

मजबूर

मजबूरियाँ
हम से भी ज़्यादा
मजबूर निकलीं,

हमें
तरस आया
ख़ुद पे,
उन्हें न आया!

जुदाई

जुदाई की पीड़ा
मिलन के एहसास से मीठी,

एक
ज़ुबाँ पर ठहरे,
एक ज़हन में!

ताज और शमशान

कहीं और बनाओ
अपने
धुएँ का
ताज महल,
कोई दूर का
शमशान
ढूँढो,

यहाँ
शाह और बेग़म
को चढ़ता है धुआँ,
इतिहास
का दम घुटता है।

विचित्र

चील कौओं का चरित्र
ये इंसान कितना विचित्र!

नज़र

तेरे
मन बहलावे को
बनाई है
दुनिया,

"नहीं पसन्द"
कहने से पहले
इस नज़र से तो
देख!

बात

चलो
वो बात न करें
जहाँ
इत्तफ़ाक़ नहीं,

वो हाथ
तो मिलायें
जिनमें
तलवार नहीं!

क़ुर्बानी

लेनी है
मेरी
क़ुर्बानी
तो शौक़ से ले,

मेरी
आख़िरी तमन्ना को
अपनी
नादानी तो दे।

जैकेट

कर दूँगा
मैं
फ़ौजी
आपको
दुश्मन प्रूफ़,

बस
मेरी जैकेट
कर दीजिये
ईमानदारी से
बुल्लेट प्रूफ़।

उस ओर

देखता है
मुझ को
मर कर
उस ओर से
तस्वीर में,

जाने क्या
बताता
पूछता
समझाता है!

मदद

पूछ मत
मदद को,
कर सकता है
तो कर,

मैं तो
चला हूँ
मर्ज़ी से उसकी,
मुझसे न पूछ।

दरवाज़ा

एलन,
जा
घर लौट जा
तैर कर,
बच्चे!
अपने आँगन में ही
जा कर
शहीद हो,

करवा दिया है
किसी फ़िदायीन नें
उम्मीद की शरण का
दरवाज़ा
बन्द!

अरमान

जिनका
अरमान था
रहे साँस
किसी का
हो के रहना,

मयस्सर न हुआ
उन्हें
ताउम्र
अपना ही होना!

आग

पड़ोस की आग से
कम तो हुई है
हमारे अहम् की
ठिठुरन,

जाने वो आग
चिमनी की है
या
मकान जलता है!

स्क्रीन

स्क्रीन की जगह
आज
मुद्दत बाद
जब
अख़बार को
नंगे हाथों से
छुआ मैंने,

लगा
बीच उतर गया मैं
दुनिया के,
खिड़की से कूदकर।

आग

पड़ोस की आग से
कम तो हुई है
हमारे अहम् की
ठिठुरन,

जाने वो आग
चिमनी की है
या
मकान जलता है!

आग

पड़ोस की आग से
कम तो हुई है
हमारे अहम् की
ठिठुरन,

जाने वो आग
चिमनी की है
या
मकान जलता है!

Sunday, November 15, 2015

पैर

देखूँ तो ज़रा
उसके
पैरों में
क्या है,

भटक रहा है वो
या टहल रहा है!

नक़ाब

रहने दो
कम्बख़्त के
चेहरे पर
नक़ाब,
कहीं
देख न ले दुनिया,
है कितना
ख़ुद ही
आतंकित!

आज भी

जानता हूँ
आज भी
यहीं
कहीं
ऋषिकेश में
हो तुम,

कौन सा हो
परिंदा
पहचानता
ढूँढ़ता हूँ!

पूजा

शुक्र है
ऐसी
बदतमीज़ी से
नहीं पेश आये
जनाब
जलाते समय जोत
दुकान के मन्दिर में,

भाग जाता वरना
भगवान् भी
ग्राहक की तरह
कभी न लौटने के वास्ते।

वक़्त

तेरे होने से है
वक़्त,
जहाँ नहीं है तू
तेरा वक़्त भी
कहाँ है!

मोड़

उस चेहरे के पीछे
क्या है कहानी
सोच के बता,

और
कहानीकार है
तो कह,
अब क्या मोड़ आयेगा!

रंग मंच

बम ब्लास्ट में
200 मृत
300 घायल
400 करोड़ आतंकित,

शायद
सम्मोहित
फिदायीनों के रंगमंच का
हो यही
ऑस्कर!



"Terrorism is theater" (1974)[5] "Terrorists want a lot of people watching, not a lot of people dead" (1975)[6]

- Brian Michael Jenkins, authority on international terrorism

तार

तार तार कर दी है
वादी की
खूबसूरती,

हटा दो
सब तारें,
नज़ारे बे-तार कर दो।

Saturday, November 14, 2015

नक्शे

ज़मीनी नक्शे
उनके,
काग़ज़ी हमारे,

भविष्य के
वर्तमान
उनके,
इतिहास
हमारे!

मुद्दा

होता
बायाँ बशर
दायें,
या दायाँ
बायें,
मुद्दा न था,

किस तरफ़ था
काला नक़ाब
हमारा डर
किधर था!

ग्लानि

डेमोक्रेसी
राज शाहों को
बहुत रास आई,

आत्म ग्लानि
थी जितनी,
जंग ए रायशुमारी में
काम आई!

कतार

राज कुमारों की
कतार है
अब
उम्र दराज़
रानी के पीछे,

और कई तमन्नायें
अनकही
उन कतारों
के पीछे!

मेज़बानी

आज
बख़्श दे मुझे
मेज़बानी के
फ़र्ज़ से,

मकाँ में तो हूँ,
घर नहीं हूँ मैं!

बट्टे

ज़माना
अब भी
लफ़्ज़ों को आपके
यकीनन
बट्टों की जगह रखता,

होता जो
आज भी
आप ही का
तराज़ू,
आपकी ही मूरत का
हाथ होता!

कलम

दे तख़्त को
तलवार
मगर
कलम न दे,

दे दे
बेशक़
सारा आज,
इतिहास न दे!

इल्ज़ाम

बहुत मज़बूत हैं
धागे
गर न भी दिखें,

कठपुतलियों को
ख़ुद मुख़्तारी का
इल्ज़ाम न दो!

दुनिया

बहुत
बिखरी बिखरी सी है
दुनिया,

सर ही सर हैं
पैर ही पैर!

हुनर

आपके
छुपाने के
हुनर को
सलाम,

आप भी
न आते
नज़र
तो क़यामत होती!

मैडल

मैडल के
लहू से
कीमती था
उसका रिब्बन,

हुक्मरानों का
पसीना
छुआ था उससे!

ख़्याल

जापान से
सफ़ाई व्यवस्था का
अध्ययन कर
लौटने के बाद
आया
कर्मचारियों के मन में
ख़्याल,

काश आ जाते
साथ
जापानी ही
नागरिक
बन के!

सौभाग्य

कुछ नहीं हुआ
अमावस्या की उस रात
शमशान में,

रोज़ रोज़
कहाँ मिलता था सौभाग्य
रूहों को
बैठना
कवि सम्मेलन में!

मुआवज़ा

दिया जाता है
भोपाल गैस पीड़ितों को
अंतिम मुआवज़ा,

तीस साल की रात,
और
सुबह के बाद
चालीस बरस का बुढ़ापा।

मोटिवेशन

करने दूँ
आपको
हेरा फ़ेरी,
कारोबार आपका
जानकर भी
चलनें दूँ!

है यही
मोटिवेशन
आपकी,
तो यही सही।

Friday, November 13, 2015

सिक्के

सिर्फ़
तिजारत के लिए
ख़र्च करूँ
साँसों के सिक्के
मंज़ूर नहीं,

फ़क़ीरी के
मुकाम भी हों
हासिल,
तो कोई
बात बने!

कविता

मंच का
मनोरंजन नहीं
कटाक्ष है
मेरी कविता,

दवात के
स्याह खून से रंगी
कटार है
मेरी कविता!

माननीय

"माननीय" शब्द
स्वयं ही
जुड़वाकर
अपने नाम के आगे
अपने सम्मान से
छीना है
आपने
एक माननीय मौका,

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का
ह्रास किया है!

सन्दर्भ

कह
अपनी बात,
सन्दर्भ
न बता,

कुछ
रहने दे
मेरे भ्रम,
कुछ
कौतुहल
और जगा!

Thursday, November 12, 2015

उदास

कोई मज़ाक़ नहीं है
इंसां का
उदास होना,

अपने होने पर ही
उठता है
जब सवाल
तो होता है।

मौका

सब छीन कर भी
कहाँ मानेगी,

तू मिला है
लिपटकर मनाने को मातम,
कहाँ करेगी ज़ाया
मौका
ये दुनिया!

बेअसर

बेअसर हैं
इन पर
नसीहतों
नालों की
सदायें,

चलते हैं
ज़रूर
ज़मीं पर,
ज़िंदा नहीं हैं!

महफ़िल

सम्भाल के रख
अपना वसूक्
यूँ न लहरा,

तमाशबीन है दुनिया
महफ़िल नहीं है!

सम्मान

जमात देख कर दें सम्मान
अब उन्हें
ये हिदायत है,

आत्म सम्मान से ही
चलायें काम
हम पर ये
इनायत है!

घड़ी

रसायन की
घड़ी है,
बेख़ौफ़ चल,

री कैलिब्रेट हो
तब भी चलेगी
जब नहीं भी रहेगी!

ज़बर

क्या करूँ
ज़बर
ख़ुदी से,

ख़ुदाया
कहाँ जाऊँ
ख़ुद ही से!

सरहद

बार कोड स्कैनर
लेज़र लकीर के
वर्तमान से
होकर
गुज़र रहा हूँ
हर पल,

खड़ा हूँ
बनकर
अदृश्य सुनसान सरहद
अपने भविष्य
और भूत में!

लेज़र

बार कोड स्कैनर
लेज़र लकीर की तरह
गुज़रते हैं
वर्तमान के कारवाँ
हर पल
मेरे ऊपर से,

जाने क्या
ढूँढ़ते
गिनते
खंगालते
गुज़ारते हैं
मुझमें
भविष्य से
भूत में!

धोखा

अति सूक्ष्म
तीखे
पल के लिए
होता हूँ मैं
वर्तमान में,
होने से पहले
बीत जाता हूँ,

सारे का सारा
हूँ तैयार
होने को,
या सारा
हो चुका हूँ
मैं!

ख़ुद से ही
हूँ निकल रहा
भीतर ही
समाता हूँ मैं,

समझ का धोखा है
वक़्त
न आता न जाता हूँ मैं!

बरसों पहले

था आ गया मैं
अपने मुस्तक़बिल में
बरसों पहले,

फिर
आप
यहाँ
मेरे आज में
कैसे!

डिप्रैशन

शौपिंग की दीवाली से
जो की
अपने
जीवन के डिप्रैशन से
आँख मूँद
उभरने की
कोशिश,

औंधे मुँह
एक ही रात में
और धसा
ज़माना सारा!

लटक

धेयान नाल
कट्ट
मना!
बेड़ियाँ
अप्पणीं,

किसे इक्क नाल ऐ
तेरा वजूद वी
लटक रेहा!

Wednesday, November 11, 2015

कहाँ

विविध
विचारों के
फूल ही फूल
वचन कर्म के
मार्ग में,

कैसे चलूँ
सोचूँ
कहूँ!

कहाँ रखूँ
कथन के पाँव!

सत्य की
ज़मीन कहाँ है!

एक ईश्वर

छूट गया है
एक ईश्वर
तेरी
इस
विशाल पूजा में,
मेरे भाई!

तेरे अहम्
की मूर्ति
कहाँ है?

एक पंख

घरों
के घोसलों से
निकल कर आते हैं
कहाँ कहाँ से
परिंदों के
उतावले बच्चे,

करते हैं
एक पंख से
उड़ने की कोशिश
चीलों के
आसमानों में!

मगर

इंसां
तेरी कर्तव्यनिष्ठा और कीमत की
अगर मगर पर
अब
मगर ही मगर है,

सुना है
मगरों को अब दिया है
इंडोनेशिया सरकार नें
जेलों की सुरक्षा का
जिम्मा!

एक रात

बस
एक रात की
दीवाली थी
तेरी?

हो गई?

अब क्या?

हैरानगी नहीं
बशर
तू वहाँ है
जहाँ है।

इज़्ज़त

एक
धरा ऐसी
जहाँ
कुत्तों को भी
इज़्ज़त मिलती है,

ये धरा
कैसी
जहाँ
कुत्तों की ही
इज़्ज़त
होती है!

Tuesday, November 10, 2015

नाराज़गी

मत छीनो
रानी से
कोहिनूर,

कहीं
उतार ही न दे
ताज
बिना उसके,
नागरिक
एक आम,
नाराज़गी में,
बन न जाये!

कोहिनूर

मत छीनो
रानी से
कोहिनूर,

चमकने दो
इतिहास
की सच्चाई
माथे पर
उनके,
ताकि
सनद रहे!

जेल

जेल से ही
जीत गए
वो
चुनाव,

यकीनन
लोकतन्त्र की सत्ता
जेल में (भी) है।

दीवाली

भिगो
मौन के पानी में
मिट्टी की देह का दीया
एक पहर,

पोंछ
सुखा
निश्चय के कमरबन्द से,

बाट
श्रद्धा के हाथों से
आत्मा की बाती,

डाल समर्पण का घी
जला नाम की लौ
कर अहम् की अमावस्या में
मुक्ति का उजाला,

कर दीवाली
जीवन सारा।

ख़्याल

क्यों न
मनाई जाए
किश्तों में
दीवाली,
कहो
ख़्याल कैसा है!

एक दिन
के
जश्न ए शाहकार
के ऐवज़
साल भर
के अश्कों
से इनकार,
मेरे यार
कैसा है!

Monday, November 9, 2015

क्रीम

दिख रही हैं
जूतों में
आपके चेहरे की
झुर्रियाँ,

इस पर भी
लगायें
क्रीम
हर रोज़
तो
हो उम्र दराज़
छवि की
आपकी!

शातिर

ज़रूरी नहीं
अन्तःआत्मा
की आवाज़
हमेशा सही हो,

बड़ा शातिर है
डर,
जानता है
आवाज़ बदलना!

पूरी रात

पूरी रात
लगाई है
सूरज नें
उगने में,

तुम्हारे
देर से
जागने से
कहाँ
सुबह
देर से होगी,
सो लो अभी...

रागिनी

काग़ज़ के
वाद्ययंत्र
की काली लकीरों
की तारों को
छेड़ती है
जब
तरतीब
लय
अपनी ही धुन में
कलम की
उंगली,

सुनती है
आँखों को
अक्षरों की
क्या मधुर
रागिनी!

फ़रियाद

सुनी
जो इत्मिनान से
आपकी
फ़रियाद की
दास्तान,

हक़ीक़त से लिपटे
कई
अफ़साने निकले!

Sunday, November 8, 2015

भेड़

हर
भेड़ के
तन पर
ऊन नहीं होती,

नहीं होती
पीछे
छोटी सी
पूँछ।

न होते हैं
सर पर
घुमावदार
छोटे छोटे सींग,

बस फ़ितरत
आँख मुंदे
इंसानों सी,

भीड़ के
भेड़ियों की
खाल में
मासूमों सी!

सम्मोहित

मत देख
उसका चेहरा,
उस की
आँखों
में न झाँक,

तू भी
हो जायेगा
सम्मोहित
जैसे
वो ख़ुद है!

Saturday, November 7, 2015

पत्थर

पत्थर हटाया
तो काग़ज़
उड़ा,

ध्यान हटाया
तो संयम
गिरा,

उड़ने दे
काग़ज़ों को,
अपना वज़न
तलाशने दे,

थकने दे
भटकनों को,
घर की याद
आने दे!

खेल

रिसती हैं
बूँदें बन
कूल्हों में,
बावड़ियाँ
भरती हैं,

ज़माने
को दिखाने
सागर की तड़प का
खेल,
नदियाँ
क्या क्या
करती हैं!

क्या क्या

रिसती हैं
बूँदें बन
कूल्हों में,
बावड़ियाँ
भरती हैं,

ज़माने
को दिखने से
पहले
नदियाँ
क्या क्या
करती हैं!

सैंडल

काले
लम्बे
चोगे
के नीचे
ढके अरमानों के
नक्शीन सैंडल,

न चढ़े
कोई
मोटरसाइकिल की
पिछली सीट पर
उचककर
तो ख़ुद के सिवा
कौन देखे!

साथ

अपना
डर सताया
तो लोग
साथ आये,

बिन माँगे
की मदद
बे शुमार
आये!

क्यूँ

रश्क़
करता है
यद्यपि
देख
गुज़रता
स्वच्छन्द धूमकेतु,
हर गृह
क्यूँ
चाहता है
बनना
आपने सौरमण्डल की
धुरी!

वक्त

आज,
अभी,
के सिवा
वक्त
था भी क्या,

सिर्फ़
होना था जिसे,
और होता भी क्या!

आसमाँ

एक भी
चाँद नहीं
आसमाँ में,

सितारे भी हैं
बिजली के
इस शहर!

तबीयत

पनी तबीयत भी
कुछ
उन्हीं सी है,

एक ही
मौसम से
रहते हैं
हर मौसम में!

तरीके

तेरे
उल्टे
हैं तरीके,
मुझे
अब पता हैं,

मरहले
हैं सुनसान,
मसले
कहाँ हैं!

हमसफ़र

ज़रूर
बनाता
उस को
हमसफ़र
गर
मौजूदगी में मेरी
ख़लल न होता,

था
मेरा अक्स
तो क्या,
मुझ सा
तो होता।

गीत

इतनी
प्राप्तियों के बाद भी
दुनिया के
छौबीसों घंटे
शोरोगुल
के हाशिये पर
है
तू
चंद लम्हों का
सुगम संगीत,

उम्मीद है
कि
गाने के लिये
होगा गाया
तुमने,
सुनाने के लिये
नहीं।

तैश

मत
तोड़
बामियान की
मूर्तियाँ
तैश में आ,

बहुत मुमकिन
तू
न रहे
हमेशा
तालिबान।

मूक

अनजान तस्वीर में
जिसे
मन्दिर समझ
करता रहा
बरसों
मूक प्रार्थनायें,

घबराया जानकर
एक दिन
कि मंदिर न था,

हूँ
मगर
अचम्भित
कि कैसे होती रहीं
फिर भी
मन्नतें पूरी़?

Friday, November 6, 2015

कहाँ

ढूँढो
कोई
महापुरुष
जिसने
कही हो
यही बात,

दिल के कहने से
कहाँ
मानेगा
ये दिल!

Thursday, November 5, 2015

स्वप्न

लगे
दस बरस
बदलने में
सर पर सजा
बैज,

रिस गया था
बचपन में
स्काउट्स की टोपी से
उसके
माथे में
सेना भर्ती का स्वप्न!

तरीके

और भी
तरीके थे
सभ्य
शालीन,
आर्य युग को
लिवाने के
हस्तिनापुर में,
ये क्या
लाते हो
उसे
बालों से
घसीट कर
द्रौपदी की तरह!

जश्न

श्याम पृष्ठभूमि में
देख
उस "नई"
आकाशगंगा की
चमकती तस्वीर
हुआ
अनायास ही
बहुत दुःख,
लगा
जैसे
हो रहा है
वहाँ
कोई जश्न
और
नहीं हूँ मैं!

Wednesday, November 4, 2015

दबा

क्या क्या
दबा है
दो जुड़े
हाथों के बीच,

होंठ जानते हैं
सर गूँजता है!

नुक्सान

मैंने तो
सहानुभूतिपूर्वक
नुक्सान रोकने हेतु
ही कहा था
कि भाई साहब
गिर रहा है
पल पल बाद
आपके मुँह से
साफ़ सड़क पर
थूक,

वो तिलमिला के
तपाक बोले-
दिखता नहीं आपको!
गिर नहीं रहा
ख़ुद थूक रहा हूँ!

बेर

बना
देह को
आत्मा की शबरी
का राम,

चुन चुन
चख़ के खिला,
दुनिया के बीहड़ के
मीठे बेर!

उत्सव

कृत्य के
नृत्य में ही
छू ले
दिशायें
आकाश
पाताल,

भंगिमाओं
के पाश में ही
जी ले
मुक्ति का उत्सव,
इंतज़ार न कर!

कदम

यही सोचकर
मैंने
बढ़ा लिए
कदम,

कहाँ ठहरा था
वक़्त
मर्तबा
पिछली !

इन्सां

मुझे दिखा
मेरे प्यारे का
एक और
इन्सां,

उन्हें
दिखी
पगड़ी,
और
न जाने
क्या !

Tuesday, November 3, 2015

कृपा

किस किस तरह से
होती है
किस किस पर
प्रभु की कृपा,

कहीं
खेतों पर होती है
बरखा,
किसी का
कूआँ भरता है!

अंक

ज़रूर सीखता मैं
आपसे
बहस का सबक
उलझता आपसे,

गर न जानता
कि ज़िन्दगी की परीक्षा में
इसके
अंक ही नहीं हैं!

क़ाबिलीयत

सुलझाने से
कहीं बढ़ कर थी
न उलझने की
उसकी
क़ाबिलीयत,
वो शख़्स
उम्मीद से
बहुत दूर तक गया...

Monday, November 2, 2015

वक़्त

न मुस्तक़बिल
न माज़ी
की तरह,

मेरा वक़्त
मिलता है
मुझे,
मेरे आज
की तरह!

सम्मान

श्री
विभूषण
भूषण
सम्मानों का
उन्हें
इंतज़ार न था,

अपने
आत्म सम्मान में वो
जगत रत्न थे!

तलाश

गुलेल की तरह
खिंचती
मेरी
तलाश,

बच निकलने में
हो पाती
कामयाब
मेरी नाकामी,
है सोचती
छिपी छिपी,
“काश!"!

शहर

बेल से
शहर थे
पुराने
सारे,
मिलती
जहाँ
कोई
आज़ादी की सड़क
लिपट
बढ़ जाते,

हैं
पेड़ सी
आज की
नई बस्तियाँ,
जड़ों के अतीत से उठी
तनों की
शाखाओं से निकली
डंडियों की गलियों के
पत्तों से मकानों
में बसी।

प्रमाण

अतीत
की
खुशबुओं
से भरे
प्रमाणपत्र
मैं आज
गंगा में
बहा
आया हूँ,

आग
सूखे हुए
माज़ी
के उजाड़ों में
लगा आया हूँ!

निर्वाण

निर्वाण
यहाँ भी
था,
वहाँ
क्यों
गया?

पाश
वहाँ भी थे
जहाँ तू गया!

आब ओ हवा
की नई
चाबी से
खोलना था
जकड़न का ताला
तो ठीक,
तालों की
दुकानें
वहाँ भी थीं
जहाँ तू गया।

Sunday, November 1, 2015

ज़िद

उतना
बाँध
साथ
कि सफ़र ए उम्र का
लुत्फ़ आये,

छोड़
ज़िद
ऊँट की,
शायद
बनने का
कभी
सबब आये!

मसला

रहो
काबा काशी में
तुम,
या
काबा काशी
तुम में,

मसला तो
हज ओ संगम का है,
जहाँ भी हो!

बात

ख़त्म कर
बात
शुरू
होने से पहले,

सुन चुकी है
कायनात,
तेरे
कहने
से पहले!

कौन

बना
परभाषा
भोजन
पहरावा
वास्तू
उपभोक्तावाद
रंग रूप
तौर तरीकों
सलीकों
को
अपने
अंगवस्त्र,

ओढ़
संस्कृति का
दुशाला
पूछते हो
कि हम कौन हैं!

गीत

बरस जाने दे
सवाल,
जवाब
उड़ जाने दे,

बन
मौसमों की
चिड़िया
साँस को
गीत गाने दे!

भगवान

अरबों ख़रबों
जीवाणुओं का
भगवान है तू
रहते हैं
जो तेरे जिस्म के
ब्रह्माण्ड में,

बता दे
उन्हें
कि उनसा ही है
तू,
अपने
ब्रह्माण्ड का
अणु!

दिशा

तू गलत दिशा में है
दुनिया!
अब
यकीं है मुझे,

मैं लौटता हूँ दोज़ख़ से
तू जाती है!

भरा

सुन रहा हूँ
अब
ख़ामोशी से
ऐ कुदरत!
तेरी हर आवाज़
कानों
आँखों
चमड़ी के पोरों से,

कितना
बोला हूँ मैं नासमझ,
भरा
आकण्ठ
अपने शोरों से!