Tuesday, February 24, 2015

आशीर्वाद

आभार
विष्णु भगवान् का
जो
नहीं होते
अब
अवतरित
राजाओं की
देह में,

देते हैं
अब
यही
आशीर्वाद
बिन दिए
लोकतन्त्र को।

अंतरिक्ष

आसमान में
मत बिठा
ख़ुदा अपना
कि अंतिरक्ष से
तेरे महल
दिखाई ही न दें
उसे
धूमकेतू
गिराने से पहले,
रख
उसे
अपनी
दीवारों के
बीचों बीच,
भले
तेरा
कुछ न छिपे।

चुस्कियाँ

हलवाई जी,
देना
ताज़ा समोसा
और गर्म जलेबी
पलेट की बजाय
पुरानी अख़बार
के टुकड़े पर ही
रख,
चार
छूटी
खबरें ही पढ़ लूँ
चाय की चुस्कियों
के साथ।

क़र्ज़

लौटाना ही था
क़र्ज़
मुझे
तो नाहक
इतनी देर क्यों!

नज़रें चुराने के फिर
इलज़ाम क्यों,
एक ज़मीर के
दस बार
क़त्ल का क्या!

Monday, February 23, 2015

छोटू

छोटू
अब
छोटू नहीं रहा था,
हो गया था अब
चौदह लीटर के कुक्कर से भी
ऊँचा,
माँज सकता था
हाथों के माँजे से
ढाबे का
बड़े से बड़ा
बर्तन,
भरने
मुठ्ठी से छोटा
सिकुड़ा पेट।

याद

इस
विशाल
चीड़ के पेड़ की
दर्जनों शाखाओं के रास्तों पर
सैकड़ों टहनियों की गलियों में
हज़ारों पत्तियों के घरों की
लाखों छिद्रों की खुली खिड़कियों में झाँकती
शाम की चीखती हवायें
याद दिलाती हैं
वो
बसा बसाया शहर
जो
छोड़ आये थे कभी
होते ही शुरू
गृह युद्ध।

Saturday, February 21, 2015

आगे

चलो
बढ़ें
आगे,
मन्ज़िल
मेज़बानी से
उक्ता चुकी,

निकलें
मंज़िलों रास्तों
से आगे,
ग़ैरतमंदी ^
से जीयें।

^आत्मसम्मान, self respect

हमदर्दी

ख़ुदा
को होगी
यकीनन
हमदर्दी
मुझसे
पूरी,

होगा बंधा
ज़रूर
कर्म ओ फ़र्ज़ ओ नसीब से अपने,
मजबूर होगा।

अभी भी

मेरे ज़हन
के कमर्शियल काम्प्लेक्स
में है
एक
सैंकटम् सैंकटोरम्,
अभी भी
जाता हूँ जिसमे
तो
अहम् का
सर ढककर,
सब ब्राण्डों के
जूते उतार।

Wednesday, February 18, 2015

आत्मकथा

लिख जा
अपनी
बेबाक
आत्मकथा
जाने से पहले,

दे न दे
मौका
ज़माना
बाद में भी
तुम्हें
रखने को
अपना पक्ष,
ख़ुदा
न समझे।

छोटू

हर बार
जाता हूँ
जब भी
हलवाई की
दुकान पर,
पुराने वाला
"छोटू"
नहीं मिलता,

लाले की
कपड़ा-रहना-खाना फ्री वाली
नौकरी
कर देती है
बच्चे को
एक दो महीनों में ही
बड़ा,

उसके जाते ही
अगले "छोटू" को
मिल जाती है
उसकी जगह।

Tuesday, February 17, 2015

न्याय

एक
आतताई के
निधन पर
सोचते हो
कि कुदरत का
न्याय हुआ है,

उसी
न्यायालय में
बैठे हैं
कितने,
स्टे लेकर,
ये भी
पता है!

Sunday, February 15, 2015

कमाई

राजनेता
खिलाड़ी
सितारे
समाजसेवी
साइंसदां...

सब
बेचते हैं
आपनी अपनी
मैगज़ीन
ख़ुद ही,
आते जातों को
दूर से ही
सम्मोहित कर,

वो
बैठता है
चुपचाप
मजे से
धूप में
सुबह से शाम,
कमाई करता है।

भारी

दूरदर्शन के
एंटीने पर
केबल का डिश
कितना
भारी पड़ा!

इस कदर
गिरेगा
समाज की छत पर
पश्चिम का आसमाँ
सोचा न था।

अधूरा

पड़ गई है
गर
धुंधली
मुमताज़ की याद
तो भी
ताजमहल को
यूँ
अधूरा
न छोड़िये,

हज़ारों
मुमताज़ों ने
इस दौरान
तोड़ दिया है
दम
थे
जब
यहाँ
मसरूफ़
बरसों से
उनके
कारीगर शाह जहान।

हवा

हज़ारों गीत
सैंकड़ों खबरें
दर्जनों आवाज़ें
कई पैग़ाम
हैं
इस समय
लटके
घुले
मंडराते
मेरे ऊपर
आसपास
हवा में
मगर,
इस वक़्त
नहीं हूँ
उपलब्ध,
हूँ
आपनी माँद में,
बिन ध्यान के
ध्यान में,
शून्य से भी
मुक्त।

Saturday, February 14, 2015

कैमरा

नहीं
ज़्यादा
मैगा पिक्सल
मेरी तस्वीरें
आपके
कैमरे की तरह,

पहुँचेंगी
मगर
फिर भी
काफ़ी भीतर,
भले
हैं खिंची
लफ़्ज़ों से
सादे!

डर

जीवन के
समंदर में
डूबने से
जब जब
लगा डर,

बना ली मैंने
कोरे कागज़ की
कश्ती
और
कलम के चप्पू से
किनारे तक
खे ली।

खामोश

काश
आज
कोई
तब तक
रहे बजाता
मन्दिर का
घण्टा,

जब तक
न हो जाएँ
खामोश
मेरे
सारे ज़हनों की
सारी परतों की
सारी
घण्टियाँ।

ध्वज

हवा में
फड़फड़ाता
ध्वज
आज भी है
मेरी
समझ से बाहर,

इंसान की
कुदरत पे है
फ़तह का
सूचक,
या कि
उसके
प्यार से भरे
आत्मसमर्पण,
आलिंगन
आमन्त्रण
आह्वान का....

संरक्षण

कितनी
विचित्र
प्रजाति है तेरी
ग़रीब!

विलुप्त होने की
कगार पर है
और कितना
संरक्षित है!

एक मुट्ठी रेत

रेत को
नहीं मलाल
बस एक ही मुट्ठी हो
इधर उधर,

है उसे
रेगिस्तान जितना
इत्मिनान
बनकर
मज़दूर के बच्चे
के नन्हें हाथों
के खेल का हिस्सा,

जला उसकी
बची
कोमल त्वचा
ज़रा सी और,
कर उसे
कल के लिए
कुछ और पक्का।

Friday, February 13, 2015

बात

मैं न गया
मेरी कल्पना गई
एक बात,

मैं न लौटा
मेरी देह लौटी
और बात...

Thursday, February 12, 2015

अध्यापक

दूकानदार के
बर्ताव से
पहले ही
अध्यापक ग्राहक का
मन
उखड़ा उखड़ा सा था,

दूकान के
छोटे से
नाम में भी
दो दो
मात्राओं की थी
त्रुटि।

मालिक

होता
अपनी मर्ज़ी का मालिक
तो
मुस्तक़बिल
चुनकर
पहनता,

इन्सां के
बुत ने
वही पहना
जो दूकानदार नें
शोकेस में पहनाया।

रफ़ू

रफ़ू था
पिता का
कुर्ता
तो बेटा था
दोस्तों में
शर्मसार,

ख़ुद की
फटी
जीनज़ पर
गोया
फ़क्र कम न था।

पोस्टर

दीवारों पर
चिपकाये
पोस्टर
तो चमके
वो
अर्श में,

गोंद से
चिपके हैं
आसमान में
सितारे जो
वहाँ तक
पहुँचे हैं...

जलपोत

जलपोत की
नाक सी
तीखी
आपकी पतलून की
क्रीज़,

क्यों
न दे
आज
आपको
रास्ता
ज़माने की
हर लहर।

Wednesday, February 11, 2015

रसीद

फाड़ दे
अब तो
रसीद
अपने दान की,

कितनी
सर्दियाँ
बितायेगा
तेरा अहम्
अभी और,
उस एक
कम्बल में!

Tuesday, February 10, 2015

समझ

तेरे
पन्नों की
काया से
दूर हूँ तो क्या,
तेरे
लफ़्ज़ों की
गूँज से
बधिर हूँ तो क्या,

ग़ौर से
देखता
मेहसूस करता हूँ
तेरी क़ायनात की
भंगिमायें,
तेरा
मुखवाक़
समझता हूँ।

Monday, February 9, 2015

राज़

रंगकर्मी!
जानता हूँ
तेरे
मुखौटे का राज़
था मेरे पास भी
एक,

आया था
तेरे ही
शहर से
कोई बेनकाब,
मुझे
हौसला दे गया।

Sunday, February 8, 2015

कुछ देर और

रख
अपनी बात
अपने ही मुहँ में
अभी,

लाग
लपेटले
अपनी ही
ज़ुबान से
कुछ देर और,

शायद
आ जाये
तब तक
पीछे से
तेरी होश,
रोक ले
तुझे|

Saturday, February 7, 2015

पंजे

उतरकर
आसमाँ से
दबाई हैं
हौले से
जो तूने
मेरी उंगलियाँ
नोकदार
नन्हें पंजों से
अपने,

उठी है
बाद मुद्दत
एक सिहरन
जो
नसों से
कलम तक
गई है।

Thursday, February 5, 2015

प्याला

चाँदी का
प्याला
जब प्यार से
भर जाए
तो चाँद
बनता है,

कोई बिछड़ा
जो चाहे मिलना
तो सितारा
बनता है...

Wednesday, February 4, 2015

शब्दकोश

मेरे शब्दकोश में
थे तो
वही वही
सब लफ़्ज़
आज भी
लेकिन,
कोई तरतीब
जज़्बातों की
जो अबके
न बनी,
कारवाँ
न चला...

दोस्त

अजीब
वादाख़्वार
दोस्त थी
ज़िन्दगी,
उसी सुबह
मिली
जिस शाम को
छोड़ के जाना था।

ज़ाया

आठ आठ
घण्टे
मिलें
जब
फ़ुर्सत से
सोचने के लिए
निर्विघ्न,

कौन
सोये फिर
रात भर,
वक़्त
ज़ाया करे!

वादा

हर रात
इसी वादे पर
सोती है
ज़िन्दगी,
कोई
ख़्वाब दिखाकर
सुबह
वापस
छोड़ जाएगा।

याद

कोई
हाथ पकड़कर
लिखवाये
तो
कैसे न लिखें,
मगर
याद भी तो रहे
ख़्वाबों में
काग़ज़ कलम
लेकर उतरना।

Sunday, February 1, 2015

बाँट

आपस में ही
बाँट
खाई है
दुनिया
तुम सब ने,

जा रहा हूँ
आस्मां,
न माँगना
अब
चाँद सितारे
मुझसे।