Tuesday, March 31, 2015

बेहतर

बदल ले
ख़्वाहिश
इससे पेश्तर
कि
दम निकले,

मुनासिब
नहीं
हर तमन्ना की ज़िद,
है बेहतर
कम निकले!

चलो

क्रान्ति
के मुहाने पर
बैठे
अब
सोचते हो क्या?
अपने लिए
न सही
तक़दीर के लिए
चलो!

अनदेखा

न कर
इस बेरुख़ी से
अनदेखा
इत्तेफ़ाक़ को,

सुना है
होता है
बड़ी
सोच समझकर!

गोद

अनाथ
बच्चे की तरह
लिया है गोद
मेरी रूह नें
मुझको,

होश के
पैरों पर
खड़ा कर
आग से
ब्याह देगी
मुझको|

काँच

काँच को
गिरते
सबने
सुना,
कविता की तरह
टूटते
कोई सुनता
तो
कवि होता|

शिकायत

ईश्वर की
भक्तों से अपने
है
बस
एक ही
शिकायत,

कुछ और
बनके
मिलता है तो
दुत्कारते
क्यों हैं!

छुट्टी

ऐतवार
की छुट्टी
के बिना
अगला हफ़्ता
यूँ हुआ शुरू,

जैसे
पुनर्जन्म की
जल्दी हो किसी को,
जाते ही
लौटे!

बीच

तमाशाई बन
पीछे हट
देख
ये दुनिया,

बीच
घुसेगा
तो
तमाशा बनेगा|

जहाँ

मेरे
बच्चों में
मुझे
ढूँढ़ लेना,

वहाँ
मत ढूँढ़ना
जहाँ
मैं
नहीं हूँ|

हक़ीक़त

कोई
करे तो सही
तर्जुमा
मेरा,

देखूँ तो सही
दूर हूँ कितना
अपनी
हक़ीक़त से मैं|

समर्पण

तलवार
और सम्मान
दोनों सौंप दिए,

ये
किसका
कैसा
मान
आपने कर दिया!

हाथ

लिखने वाला
हाथ
बचाना ज़रूरी था,

पढ़नें वाले
अधीर थे
अभी,

बहुत कुछ
लिखा जाना
बाकी था|

क्या

चढ़ आया था
जो
पीठ पर
सुबह सुबह,
काँधों पर
ढली सुबह
उतरा था,

बाहों में
था जो
दूसरे पहर,
शाम की कमर पकड़
उतरा था,

ढलती शाम
फिर
डूबता
वो सूरज,
जाने क्या
समझाता था|

सहर

जी भर कर लो
लम्बी
गहरी
साँसें
रात भर,

पी लो
शहर का
सारा ज़हर,

रात को
एक बार फिर,
ऐ दरख्तो,
सहर करो..

Saturday, March 28, 2015

हम

जब तक
हम और वो थे,
हम रहे,

अब
जब हम ही हम हैं
तो वो हैं!

अच्छा

सभ्य समाज में
रहकर देखिये
आपको
अच्छा लगेगा,

हो सकता है
मिलें
कुछ चीज़ें
कुछ देर से,
मगर
सब कुछ मिलेगा!

दोपहर

मत
जगाओ उसे अभी,
सोने दो,

गया है
माँ के घर
बादलों पार
नींद की दोपहर
खाना खाने ,

रूह है
अभी
उसकी
पीछे
अधूरे खेल में ,
सुबह की ढली धूप
लौटेगा ज़रूर
खेलने|

आराम

शहर के
बीच वाले कोने में,
आधी रात
बंद दरवाज़ों के पीछे
चुपचाप
गाने बजाने से भी
जब
न मिली
अहम् को मुक्ति,
घुटन बे इन्तेहा हुई,
खोलनी ही पड़ी खिड़कियाँ
चलाने ही पड़े
लाऊडस्पीकरों के पंखे
तब
आराम मिला|

Friday, March 27, 2015

बुत

बना के
बुत
मिलना
मज़ाक
बना दिया,

भीतर था भी जो
अनजान बना दिया।

गाड़ी

जानता हूँ
बखूबी चलेगी
दुनिया की गाड़ी
बिना मेरे भी,

पर
उतावली न हो
ज़िंदगी,
मुझे यूँ न उतार।

ज़िंदा

गूँजता हूँ
गर आज भी
कानों में तुम्हारे,
मन की आँखों से
रु ब रु
दिखता हूँ,

हूँ ज़िंदा
जब
यादों में तुम्हारी
क्यों जताते हो
दर बदर
कि मुर्दा हूँ!

Wednesday, March 25, 2015

राह

होती देखी
जब
तकलीफ़
पेड़ों को
कहने में
अलविदा,
पत्तों नें
हौले से हिला
ख़ामोश हवायें
बुलवाया
तूफ़ान
और
राह उतर गए।

कुछ

मेरी माँ की
जली चिता
तो कुछ
मैं भी जला,

कुछ वो जल गई
वहाँ
कुछ मुझ में रही....

याद

ज़मीन से
उठी मिटटी
सोचने के लिए
और ज़मीन भूल गई,

दबाया
जो ज़मीन ने
गोद में
तो उसे याद आया|

लकड़ियाँ

5 क्विंटल पक्की
2 क्विंटल कच्ची
लकड़ियाँ
लाने को कहा है
जानकार ने,

मंगवा लूँ
तेरे नाम पर
कैश ऑन डिलीवरी
फ्लिपकार्ट से
तुम्हें
जलाने के लिए?

Tuesday, March 24, 2015

पालकी

हौंडा
हुंडई
सुज़ुकी
टोयोटा
फ़िएट
मेर्सेड़ीज़
ऑडी
चलेगी?

या बनवाऊँ
बाँस की पालकी
लेट कर जाने को
शमशान
जनाब के लिए?!

बाँस

बाँस को भी
पता था
कल कटना है
उसे
बीचों बीच
बनने
तेरी
अंतिम सवारी,
फिर
तुझे कैसे
नहीं था पता
कि
आज
जाना है?

Sunday, March 22, 2015

नया

एक
जिस्म ही तो है
गया तो गया,
मैं तो
हूँ यहीं
नया का नया|

Saturday, March 21, 2015

पूरी

भूखी बूढ़ी भिखारिन को
डालने से पहले
बासी पूरी
सोचना चाहिए था उन्हें
कि हुआ जो उसे
गले छाती का इंफ़ेक्शन
तो एंटी बायोटिक कौन देगा,
कौन करवायेगा इलाज
दिल के दौरे का
जो पड़ा।

कोशिश

चलो
न ज़िन्दगी जीयें
न करें मौत का इंतज़ार,

होते हुए देखें
जो होता है,
न करें सोचनें की कोशिश
जो कोशिश में होने की है।

Tuesday, March 17, 2015

फ़ुटबॉल

गुरूद्वारे के सामने वाले
मैदान में
बच्चे
हर शाम
फुटबॉल खेलते हैं,
ईश्वर की
अपार कृपा है
नशे निराशा से
अछूते हैं।

शिकारी

यही सोच
उस
क्रूर शिकारी को
मैंने
जाने दिया,

मेरे अंदर भी है एक,
मैं भी तो
वही करता हूँ।

अंदर बाहर

अंदर
तू ही होगा
इसलिए
नहीं आया,
बाहर
तेरे करतब हैं
खड़ा देखता हूँ।

नज़रें

कोई
मेरी नज़रों से
मुझे देखे
तो
मैं दिखूँ,

ज़माना
देखे है
ख़ुद को
और
मुझे समझे है।

Sunday, March 15, 2015

वो जगह

दो आसमानों
के बीच
वो
जो जगह है
कौन सी है,
किस कब्र से
निकलती है
वो सुरंग
जो
रोज़
वहाँ
पहुँचती है।

प्याला

बड़ी देर से
बैठी
झाग
ज़िन्दगी की मय की,
जिस प्याले में
पड़े थे
लबलबाता जाम बनके
कूआँ
निकला।

Saturday, March 14, 2015

मिट्टी

वो मन्दिर था
सो पूज्य थी
आपकी
चरणधूलि,

यहाँ
सड़क पर
लगी होगी
मिट्टी
पैरों में आपके,
कैसे
बिठाऊँ गाड़ी में
अपनी,
लिफ़्ट दूँ!

Friday, March 13, 2015

नमन्

बिना
कमण्डल
जनेऊ
तिलक
भभूत
चोगे
माला के,

बिन
कुछ बोले,
कहे,
करे,

साधू
लगो मुझको
तो
शत शत नमन्।

Thursday, March 12, 2015

कब के

वो
आज तक हैं
ज़िंदा
जिनका जाना
था एक अरसे से यकीनी,

जिनकी
नहीं थी बारी
कब के
चले गए।

जिम्मेवार

गलतियाँ करीजा
मेरे ते सुट्टीजा,
मेरियाँ सुणी ना
अपणियाँ कुट्टिजा,
बणेगा कदों बन्दा बन्देया
लवेंगा जिम्मेवारी
बीजेया हस के कट्टेंगा!

Friday, March 6, 2015

सूचना

वकीलों
मुवक्किलों
और सर्व साधारण को
सूचित किया जाता है
कि
न्याय
तीन महीनों के लिए
सिक लीव पर रहेगा,
न्यायधीश महोदय
कल और परसों की
कैज़ुअल लीव पर हैं,
दोनों दिनों के मुक़द्दमों
की तारीख़
अब तीन महीने बाद की
हुई है
तय।

बेनामी

एक नहीं
तीन तीन
बेनामी खाते थे
उनके,
उन्हीं में से
वो सारे खाते थे,

पासवर्ड नहीं था
कोई
उनका,
गाँठें थी
तीनों पर
एक एक,
हाथों की लकीरें  दिखा
खोलते बाँधते थे,

गुड़
चावल
दान का आटा
था भीतर,
बाहर
आँखों वाले
जाने क्या क्या
आँकते थे!

पकड़

संधर्भ के बिंदु को
पकड़ने हेतु
कुछ तो ढूँढ़,

ख़ुदी न हो
मय्यसर
तो
ख़ुदा ही सही।

छू

प्रवासी मज़दूरों के
पके चेहरों को
कोई
हिक़ारत की नज़रों से भी
छूता न था,
आज
गली के लड़कों ने
जबरन
होली का रंग लगाया
तो पहले
बुरा
फिर बहुत
अच्छा लगा।

कम्बल

कम्बल का दीवारें
कम्बल की छत,

हक़ीक़त का फ़र्श
वक़्त का सिरहाना,

छेदों की खिड़कियाँ
छिद्रों के नल,

सड़क का बरामदा
ठण्डी हवा की अंगीठी,

भूख की रसोई
आस का निवाला,

देह का मन्दिर
आत्मा का ईश्वर,

ज़िन्दगी की मौत
मौत का जीवन...

ओके

ढाबे के नौकर ने
मेरे
थैंक यू का जवाब
जब
इट्स ओके से दिया,

मेरे अंदर
जो जो भी
एक अरसे से
ओके था
आए ऍम सॉरी
बोल उठा...

स्कोर

आज
मैंने
रास्ते में
दुकानदार से
क्रिकेट का
स्कोर न पूछा,

आज
मैंने
दुनिया की
हक़ीक़त को
याद रखा।

Monday, March 2, 2015

आवाज़

रोज़ शाम
लौटते समय घर
गुज़रता हूँ
जब भी
सामने से उस घर के,
आती है
आवाज़
रहरास के पाठ की
वेदों के उच्चारण की
या धम्मपद की,
बूझ नहीं पाता हूँ।

गुनगुना रहा होता है
दबी आवाज़ में
कोई...

किस मज़हब की
गाता है
प्रार्थना
पहचान नहीं पाता हूँ,
ख़ुदा का एहसास
उठता है मगर
जाना सा
सीने में...

Sunday, March 1, 2015

एहसास


बढ़ा लीजिये
चाय का दाम
कुछ और
मगर कप में
तनिक और तो डालिए,

हो तो सही
बदन में
वो एहसास
जिसकी तवक्को है।

ऊँचाइयाँ

पार्क में
शहीद लेफ़्टिनेंट के बुत
के सर की टोपी
जिस ऊँचाई पर थी,

था होता शुरू
उसी ऊँचाई से
बगल ही में खड़े
सियासतदान का
मरणोपरांत
पैर से सर तक का
पत्थर में सफ़र,

सियासत
यकीनन खड़ी थी
शहीदों के कन्धों पर।