न कर
नामुनासिब
हरक़त
मेरे ख़ुदा,
दुनिया
जानती है
कि
मेरे अंदर भी
तू है!
कर रहा है
ये भी
रात को
अस्पताल में
सोने का
इंतज़ाम,
यकीनन उड़ीं हैं
किसी वार्ड
के बिस्तर पर
नींदें
इसकी|
“अंकल!
क्या दोगे
तोहफ़े
हमें
इस जन्मदिन पर?"
- दोनों बच्चियों
की रूहों नें
गुज़रते
मुझसे
पूछा,
“गर
हो सके
बदलवा देना
हमारे
पत्थरों पर
फड़फड़ाती
ये
पुरानी
फीकी
फटी
झण्डियाँ..."
ऐ पण्डित!
जानता हूँ
ब्राह्मण है तू!
फिर क्यों
नोचता है
त्रस्त आत्माओं के
मन के डर का
माँस
भविष्य का
चाकू दिखा!
अतीत के मोड़ से
वर्तमान की गली
आ गुज़रती है
अचानक
कोई आवाज़
तो छुप जाता हूँ,
शायद याद है
अभी तक
जो मेरा नाम था।
थाली की
तीन सब्ज़ियों
में से
सबसे
नापसंद वाली को
नज़रों से दूर करने हेतू
जब मैंने उसे
सबसे पहले
तुरन्त
निबटा दिया,
हड़बड़ा कर
वो पास आये
और बोले
“इतनी
पसंद है
तो और डालूँ!"
किस किस बहाने से
क्या क्या
करवाऊँगा
तुझसे,
तू देख ज़रा,
तेरी
हारी बाज़ियाँ
कैसे कैसे
पलटाऊँगा,
तू देख ज़रा।