Monday, June 29, 2015

अंदर

न कर
नामुनासिब
हरक़त
मेरे ख़ुदा,

दुनिया
जानती है
कि
मेरे अंदर भी
तू है!

Sunday, June 28, 2015

मजाल

गर
क़यामत
तक का
वक़्त हो
पास,
किस
क़यामत
की
मजाल है
कि हो!

इंतज़ाम

कर रहा है
ये भी
रात को
अस्पताल में
सोने का
इंतज़ाम,

यकीनन उड़ीं हैं
किसी वार्ड
के बिस्तर पर
नींदें
इसकी|

तस्वीर

जन्नत
न ला सका
साथ
तो उसकी
तस्वीर
ही सही,

वैसे भी
कहाँ
उसे
तूने
छुआ था!

तो क्या

लूट भी लेगा
तो क्या!

उतने का तो
तजुर्बा
भी होगा!

फ़ौज

कुछ तो
बात है
तेरी फ़ौज में,
मानना पड़ेगा,

जंग भी
लड़ती है
तो
सन्यास
की तरह!

Saturday, June 27, 2015

ज़िद

क्या हूँ
मैं,
ज़र्रों
की ज़िद
के सिवा,

मिलकर
कहते हैं
जो,
मान
जाता हूँ|

Friday, June 26, 2015

तोहफ़े

“अंकल!
क्या दोगे
तोहफ़े
हमें
इस जन्मदिन पर?"

- दोनों बच्चियों
की रूहों नें
गुज़रते
मुझसे
पूछा,

“गर
हो सके
बदलवा देना
हमारे
पत्थरों पर
फड़फड़ाती
ये
पुरानी
फीकी
फटी
झण्डियाँ..."

Saturday, June 20, 2015

ब्राह्मण

ऐ पण्डित!
जानता हूँ
ब्राह्मण है तू!

फिर क्यों
नोचता है
त्रस्त आत्माओं के
मन के डर का
माँस
भविष्य का
चाकू दिखा!

Friday, June 19, 2015

इंतज़ार

कौन
इंतज़ार में रहे
तेरे जवाब के,

चार सवाल
और
क्यों न सोच ले,
इस दरमियाँ,
कमाल के!

Thursday, June 18, 2015

रश्क़


अंधे,
नहीं है
अब
तुझसे
रश्क़
कोई,

कि
मिल गई है,
सुन,
मुझे,
बटेर
अपनी।

सब्र

मुझे पता है
आप में
कुछ
सब्र
कम है,

क़यामत
ले आया हूँ
आपकी,
इंतज़ार
से पहले।

ख़ुद

ख़ुद
जायेगा,
दे कर
आयेगा,

तेरा
नहीं है जो,
तुझे
कहाँ
रास आएगा।

ख़त

जिसका
था
इंतज़ार
उसी का
ख़त आया,

उसने भी
उसी को
भेजा
जिसे
इंतज़ार था...

ख़त

जिसका
था
इंतज़ार
उसी का
ख़त आया,

उसने भी
उसी को
भेजा
जिसे
इंतज़ार था...

दाना

क्या
तपती
टीन की छतों पर
पंजे
जलाता है,

आसमान में
उड़ के
देख,
कहाँ
दाना है
तेरा।

Wednesday, June 17, 2015

हमनवाज़

हमें लगा
इक हमीं हैं
हमनवाज़
उनके,

आधे शहर के
मगर
वो
रक़ीब
निकले!

पता

अगर
न बदला
ज़हन का
पता
आपका,

लौटेंगे
ज़रूर
याद
करने वाले।

Friday, June 12, 2015

पैर

पैर
खींच लिए
हर बार
किनारे पर ही
कुछ और
पीछे,

हमने भी
कहाँ
भीतर के
दरिया का
दामन
छोड़ा।

उलझनें

कुछ कम थीं
उलझनें
उलझने
के लिए?

बढ़ा ली
जो तूने
सुलझा के
उन्हें!

आवाज़

अतीत के मोड़ से
वर्तमान की गली
आ गुज़रती है
अचानक
कोई आवाज़
तो छुप जाता हूँ,
शायद याद है
अभी तक
जो मेरा नाम था।

पसन्द

थाली की
तीन सब्ज़ियों
में से
सबसे
नापसंद वाली को
नज़रों से दूर करने हेतू
जब मैंने उसे
सबसे पहले
तुरन्त
निबटा दिया,
हड़बड़ा कर
वो पास आये
और बोले
“इतनी
पसंद है
तो और डालूँ!"

Monday, June 8, 2015

देख

किस किस बहाने से
क्या क्या
करवाऊँगा
तुझसे,
तू देख ज़रा,

तेरी
हारी बाज़ियाँ
कैसे कैसे
पलटाऊँगा,
तू देख ज़रा।