Friday, July 31, 2015

राय

हौले से
बता दे
ख़ुद को
अपनी समझ की
राय,

क़ायनात
कहीं सुन न ले,
हंस न दे।

Wednesday, July 29, 2015

कहाँ

ईश्वर
क्यों नहीं था
तू
उन
कंदराओं में
जहाँ मैं
ढूँढ़ता था,

कब से
था
उन मदिरालयों में
जहाँ मैं
छुपा था?!!

मजबूरी

याक़ूब
तू अब
कईयों की
सियासी
मजबूरी है,

तेरे
ज़िंदा रहने का है
तक़ाज़ा,
तेरा मरना भी
ज़रूरी है।

दवात

स्याही
की दवात से
उसके जिस्म में
हर गुज़रता
नज़रों की कलम डुबा
लिखता रहा
अपने दामन पर
मजबूर ज़हन का
हलफ़नामा,

वो
खड़ी रही
चौराहे पर
वर्दी की
दीवार में|

इत्मिनान

जा पतंग,
आसमानों में
उड़,

ज़मीन को
इत्मिनान है
तेरी डोर से,
तू कहीं भी जा!

Sunday, July 26, 2015

सहजता

मत हो
असहज
अपनी
असहजता से तू,
ये वो
सहजता है
जो बड़ी
असहज है।

बेताब

हम आप को
समझने के लिए
उतने
बेताब हैं,

जितने बेताब
हमें
समझाने को
आपके ख़्वाब हैं!

गुम

मत खीँच
इतनी
तस्वीरें,
ये ज़ुल्म
न कर,

सीधे सीधे
समझने दे,
खुली परतों में
गुम न कर!

बातें

चित से
इतनी कर बातें
कि वो
बोर हो जाए,

हो जाये
परिचित,
हमेशा को
शांत हो जाए।

Saturday, July 25, 2015

बेर

खा ले
खिला दे
होनी
अनहोनी
के बेर,

कौन जाने
तू हो
अहिल्या
उसकी
या
वो तेरा
राम.

Friday, July 24, 2015

क़िताब

वक़्त की
तहें
कोई ऐसे
लगाये,

एक क़िताब
सी लगे
ज़िन्दगी,
हर
सफ़े पर
कोई
घुमाव आये...

Sunday, July 19, 2015

जी

जी ले
जी भर के,

भर आये
जब जी,
होने दे
खाली
जी भर के...

नज़र

मौत की
नज़र में
था
हर दम,

जब
न रहा गया
उससे
तो
दिखी
मुझको.

उदासी

भीतर के
कुत्ते को
घुमाने
निकला हूँ,

मेरी थी
उदासी,
उसकी
दिनचर्या थी!

Monday, July 13, 2015

ख़्याल

रख
अपने जिस्म का
ख़्याल
अभी
कुछ और,

रूह की
तमन्नाएँ हैं
बाक़ी,
इंतज़ार
कुछ और...

Sunday, July 12, 2015

जूता

चमड़े
का जूता
मेरी
कविता,

भावनाओं
की
खाल
से बना...

गाना

वो कौन सा था गाना
जो तुमने सुना था
लगा
कानों में इयर फ़ोन
मोबाइल से अपने?

क्या थे बोल उसके
किस बारे में था?

क्या थी धुन उसकी
ऐसी क्या कशिश थी
जो
उसे ही
तुमने
बार बार
यूँ सुना था?

किस कशमकश में
उलझाये
उकसाये था
तुमको,
किस हिम्मत की
तेरे भीतर की बावड़ी
भरे था?

कौन सा सुकून
कैसा दर्द
पिलाता था
कानों से,
वो कौन सा था गाना
जो बारबार
तुमने सुना था
लगा
कानों में इयर फ़ोन
मोबाइल से अपने
आध घण्टा
कूदने से पहले
कन्दरौर के
उसी पुल से
सतलुज में,
ऐ कुल्लू की लड़की!

Tuesday, July 7, 2015

सीधा

न बारह
न एक
न दो
न चार,

मेरी आँख
क्या लगी
कि
कुदरत नें
सीधा
सुबह के
पाँच
बजा दिए!