Wednesday, September 30, 2015

दावत

हमें
याद है
आपका
वो इस्तक़बाल,

दावतों
के नाम से
बुख़ार आता है।

वाहवाही

आपकी दुनिया
की वाहवाही
से तौबा,

ये वो
अजगर है,
जो चूम के
निगलता है!

मार

पड़ी
बन्दों के हाथों
जिन्हें
ख़ुदा की मार,

सोचते हैं
फ़ुर्सत में
हैरानगी हो-

बन्दों का ख़ुदा था
या
वो
ख़ुदा के बन्दे!

याद

वो पहाड़
वो चोटियाँ
वो वादियाँ
वहीं होंगीं,

कर रहा हूँ
जैसे
उनको याद मैं,
कौन जाने
मेरी याद में
होंगी!

सलीब

सलीब पर
क्यूँ टंगा है
तड़पता
सामने दीवार पर
घड़ी के जिस्म में,

वाक़ई वक़्त है तू
तो बदल
के दिखा।

नज़ारे

तोहाडी
मोटी
तनख्वा दा
मैं की कराँ,
जे तोहाडे
चेहरे ते
नूर नहीं,

तोहाडे कोल ताँ
भुलेखे
होणगे
लख हज़ार,
मेरी अक्खाँ नूँ ते
नज़ारे
कोई होर नहीं!

छोटे

आपके
पागलखाने
तो
बड़े छोटे निकले,

कमसकम
दुनिया जितने
तो होते!

Tuesday, September 29, 2015

और भी

इक
सुन्दर जिस्म
ही तो है,
और क्या,

और
भी हैं
लानतें
ज़िंदा
लाशों की,
उनका क्या!

भ्रम

जिन्होंने
किया,
हमनें
उन्हें
करनें दिया,

उनके
करने के
भ्रम को
हमनें
रहने दिया।

वंड

वंड वी दित्ता
जे मैं
रा बैठयाँ नूँ
अपणे हत्थां चों कुज,
तां वी की,

मेरी
लकीरां
तां
अजे वी नें
ओत्थे दी ओत्थे!

चित्त

मसां मसां
उतरी ए
मेरे चित्त दे
समन्दर दी
लैर,
फेर
कोई
चन्न ना चढ़ा,

रैण दे
चार दिन
सकून दी
मस्या,
खिच दी
चानणी ना पा।

Sunday, September 27, 2015

मर्ज़ी

था
तो था,

है
तो है,

होगा
तो होगा,

तू कर
जो तेरी समझ कहे

न होता
क्या होगा!

Saturday, September 26, 2015

मसला

ख़ुदा
ख़ुद पे
मेहरबानी
करता कैसे,
करता भी क्यों,

कुछ तो होगा
मेरी
हक़ीक़तों
का मसला,

सुलझता कैसे,
सुलझता भी क्यों!

हादसे

हीरोशिमा
नागासाकी
से छोटे थे
उसके
हादसे,

जापान के
फिर उठ जाने
के बाद तो
लाज़मी था
पैरों पर
फिर
उठ खड़ा
हो ही जाना
उसका।

Thursday, September 24, 2015

नादानियाँ

छोड़ दे
सब नादानियाँ,
अब बस भी कर,

संजीदा शय है
ज़िन्दगी,
ये भ्रम
भंग न कर |

मज़ाक

रख
अपनी
ज़िन्दगी
सम्भाल के,
परेशान न कर,

कोई
काम की बात
है तो बता,
यूँ
बे सिर पैर का
मज़ाक न कर|

Wednesday, September 23, 2015

रास्ता

हर तरह का
रास्ता
आयेगा सफ़र में
याद रख,

न जन्नत ही जन्नत है
जन्नत में,
न दोज़ख़् में दोज़ख़्
हर जगह।

सफ़र

चव्वालिस
मील के बाद भी
कुछ ख़ास हो
तो बात बने,

वही
जन्नत
का हो
छलावा
तो सफ़र
कैसे कटे!

Tuesday, September 22, 2015

सुइयाँ

तोप के गोलों की
ज़रूरत क्या,
ज़हर बुझी
सुइयाँ काफ़ी,

तू लिख
जो लिखना है,
कहने दे
ज़माने को
तेरे लिखे की
लम्बाई नाकाफ़ी।

साया

उनके
साये से
हमनें
उन्हें
पहचान लिया,

वक़्त
मिल गया
नज़रें चुराने का,
ख़ुद को
संभाल लिया।

मेरे लिए

एक
मेरे ही लिए
बना दिया
सारा
ब्रह्माण्ड,

सिर्फ़
इसी लिए
कह दूँ
तुम्हें
ख़ुदा
तो क्या ग़लत।

निशान

स्याह
पंजों
के निशान
छोड़ रहा हूँ
काग़ज़ के
जंगलों में,

शायद
कोई गुज़रे
यहाँ से,
मिले मुझे।

Monday, September 21, 2015

नफ़ा

तुझे
नफ़ा चाहिए,
ले ले,

पर
दुआ कर
दवा
असर कर जाए.

बे हद

बे हद
सब्र
था दरकार
ज़माने की
तालीम को,

तलीमदारों
में सब्र
था कम
सो
कुछ न बदला।

Sunday, September 20, 2015

जूते

पिछले ही हफ़्ते
दान किये
लगभग पुराने
मगर बेहद पसनदीदा
अपने जूते
जब उसने
आज
सड़क किनारे
उस मुफ़्लिस
के पैरों में देखे,

कुछ पलों को
उसके नये जूतों तले
ज़मीन खिसक गई।

गठरी

लाखों कोस
आगे
निकल आई है
घूमती धरती
हाँ से
जहाँ
कल रात
सोने से पहले
तुमने
चिंताओं की
वो गठरी खोली रही,

फिर काहे
तुम
बौड़म दास से
अभी भी
उहीं बैठे हो
माधव!

बेकार

हजार
दो हजार
बरस बाद भी
यदि
इन्सां
तू आदि मानव ही रहा,

तेरी नस्ल
का ईजाद
तो
वाकई
बेकार रहा!

बेताब

पता नहीं
क्या ढूँढ़ता था
ज़िन्दगी में
जो घुस घुसआता था,

और
अब
न जाने क्या है देख लिया
जो
निकल भागने को है
बेताब!

मज़ाक

रख
अपनी
ज़िन्दगी
सम्भाल के,
परेशान न कर,

कोई
काम की बात
है तो बता,
यूँ
बे सिर पैर का
मज़ाक न कर|

तौबा

मूर्ख
आक़ा
को समझाने
की ज़िद,
कमाल!

उसके
न समझनें
की मजबूरी,
हाय तौबा!

कमाल

दुनिया
कहाँ कहाँ है,
उफ़ तौबा!

तेरी
मैं
कहाँ कहाँ
नहीं,
कमाल!

किले

भूमिगत
दिल में
घुस कर
घुट-मारा
वक्त ने
वो तानाशाह,

जिसकी
रेल भी
उसके किलों की तरह
थी
बख्तरबन्द!

Friday, September 18, 2015

सर्वव्यापी

यहाँ
तेरे
सर्वव्यापी
एजेंटों ने
भुला दी है मुझे
मेरी प्रार्थना,

घर
लौटकर
याद आई
तो वहीं से
बताऊँगा!

Thursday, September 17, 2015

भटकन

तेरे सिवा
है भी कौन
जो भटकूँ मैं,

क्यों ज़ाया करूँ
मैं
वक़्त,
तुझको
ढूँढ़ूँ मैं?

रोशनदान

घुस आती थी
दुनिया
मेरे ज़हन के मकान में
आँखों की खिड़कियों
कानों के दरवाज़ों से,
करुणा के रोशनदान खोले
तो जान में जान आई।

Wednesday, September 16, 2015

सलीब

कन्धों की
दे कर
सलीब,
ज़हन को
टाँग दिया,

न ईसा ही
बना
ये जीव
न इन्सां
रहने दिया।

Tuesday, September 15, 2015

पिता

कैसे हो
पिता,
परमेश्वर की तरह,

आस पास ही हो
और दिखते
भी नहीं,

मेरे लिए
होने का
इंतज़ार है
कब से,

यतीम होने का
एहसास भी नहीं!

नमस्कार

आपके
नमस्कार की
अगरचे
मेरे अहम् को
तवक्को
नहीं,

आपको
गर
अच्छा लगे,
ज़रूर करिये।

Monday, September 14, 2015

आँसू

पिघलते
हिमशैलों
के आँसुओं से
दरिया उफ़नते हैं,
मत रुलाओ
कुदरत को
इस कदर,
जिसकी
सिसकियों से
ज़लज़ले उभरते हैं!

टहनियाँ

मसालों से
पके हैं
केलों-से
ये आज के बच्चे,

टहनियों पे
कुछ और
रहते
तो यूँ न गलते।

Friday, September 11, 2015

यक़ीनन

सूखे पत्तों
से हुआ
इस्तक़बाल,
कोई
मलाल नहीं,

यक़ीनन
फूल होते
गर
बहार होती!

ज़िंदा

उनके
साथ के
ज़िंदा हैं अभी,

दौर ही
गुज़रे हैं
याँ से,
ज़माने के निशानों में
वो ज़िंदा हैं अभी!

Friday, September 4, 2015

इत्मिनान

आपके
नफ़े
बेशक़
थे हमसे
कई गुना,

हमें
इसी का
था इत्मिनान
कि हमारा
शुभ लाभ
बड़ा था।

बुत

बुत आपके
बेशक़
काफ़िर
से थे,

चुनांचे
अल्लाह
की मर्ज़ी
से थे,
हमने छोड़ दिए।

यकीन

बहुत
अरमान
इस जनम् के
हमने
अगले पर
बा सुकून
छोड़ दिए,

अपनी रूह का
यहीं
भटकने का
पुरज़ोर
यकीन था
इतना।