हमें
याद है
आपका
वो इस्तक़बाल,
दावतों
के नाम से
बुख़ार आता है।
पड़ी
बन्दों के हाथों
जिन्हें
ख़ुदा की मार,
सोचते हैं
फ़ुर्सत में
हैरानगी हो-
बन्दों का ख़ुदा था
या
वो
ख़ुदा के बन्दे!
वो पहाड़
वो चोटियाँ
वो वादियाँ
वहीं होंगीं,
कर रहा हूँ
जैसे
उनको याद मैं,
कौन जाने
मेरी याद में
होंगी!
तोहाडी
मोटी
तनख्वा दा
मैं की कराँ,
जे तोहाडे
चेहरे ते
नूर नहीं,
तोहाडे कोल ताँ
भुलेखे
होणगे
लख हज़ार,
मेरी अक्खाँ नूँ ते
नज़ारे
कोई होर नहीं!
वंड वी दित्ता
जे मैं
रा बैठयाँ नूँ
अपणे हत्थां चों कुज,
तां वी की,
मेरी
लकीरां
तां
अजे वी नें
ओत्थे दी ओत्थे!
मसां मसां
उतरी ए
मेरे चित्त दे
समन्दर दी
लैर,
फेर
कोई
चन्न ना चढ़ा,
रैण दे
चार दिन
सकून दी
मस्या,
खिच दी
चानणी ना पा।
तोप के गोलों की
ज़रूरत क्या,
ज़हर बुझी
सुइयाँ काफ़ी,
तू लिख
जो लिखना है,
कहने दे
ज़माने को
तेरे लिखे की
लम्बाई नाकाफ़ी।
पिछले ही हफ़्ते
दान किये
लगभग पुराने
मगर बेहद पसनदीदा
अपने जूते
जब उसने
आज
सड़क किनारे
उस मुफ़्लिस
के पैरों में देखे,
कुछ पलों को
उसके नये जूतों तले
ज़मीन खिसक गई।
लाखों कोस
आगे
निकल आई है
घूमती धरती
उहाँ से
जहाँ
कल रात
सोने से पहले
तुमने
चिंताओं की
वो गठरी खोली रही,
फिर काहे
तुम
बौड़म दास से
अभी भी
उहीं बैठे हो
माधव!
पता नहीं
क्या ढूँढ़ता था
ज़िन्दगी में
जो घुस घुसआता था,
और
अब
न जाने क्या है देख लिया
जो
निकल भागने को है
बेताब!
भूमिगत
दिल में
घुस कर
घुट-मारा
वक्त ने
वो तानाशाह,
जिसकी
रेल भी
उसके किलों की तरह
थी
बख्तरबन्द!
यहाँ
तेरे
सर्वव्यापी
एजेंटों ने
भुला दी है मुझे
मेरी प्रार्थना,
घर
लौटकर
याद आई
तो वहीं से
बताऊँगा!