Saturday, October 31, 2015

सामान

मत सजा
इस देह को
सामान की तरह,

बस
संवार के रख
किसी
वरदान की तरह।

नज़ारा

बता
किस नज़रिये से
देखेगा,

दिखाऊँ
तुझे
वो नज़ारा
तेरे
देखने से
पहले!

रंग

कहाँ
कब
मज़हब की जंग
मज़हब से हुई है,
ये दासताँ तो
फ़क़त
सुनाई सुनी है,

जिस
फ़साद को दिया है
रंगरेज़ नें
मज़हब का रंग,
किसी सियासतदां
के हुक़्म की
तामील हुई है!

Friday, October 30, 2015

इंतज़ार

समुन्दर दे गर्भ विच उम्मीद च तर्दियाँ माँवाँ दे गर्भ च मूँदे लेटे ने अजे वी किन्ने ऐलन, नौ महीने बाद वी अजे किन्ना कु करण होर इंतज़ार...?

कितनी

तेरे भीतर हैं
कितनी
गुज़री
और इंतज़ार में
नसलें,
वक़्त जाने,
किस किस शय में
 है 
तेरा वजूद
तू कहाँ जाने!

नया

परसों
के घटनाचक्र से
दुनिया को
क्या,

चाहिए उसे
बस
हर सुबह
पैरों में
नया
अख़बार।

ज़बर

रहें
पत्नियाँ
हिंदी का पूर्ण विराम चिन्ह
और पति
फूलते रहें
अंग्रेज़ी के
फ़ुल्ल स्टॉप की तरह,

बहुत
ज़बर है
बेक़सूर ज़बानों पर
ज़हनों का!

दस कोस

दस कोस लम्बा है पानी
मटके में
जो लाई हूँ मैं
बड़ी दूर से,

जिव्हा की हथेलियों से
नापना इसे,
पलकों की अंजुलियों से
पीना।

सीटी

कनस्तर
गठरी
थैला
बोरी
बस से
उतार लेने के बाद
कंडक्टर की सीटी सुन
नीचे
पीछे खड़े
बेटे नें
कहा
"माँ, दीदी को भी तो उतारिये!"

जुगनूँ

रिज मैदान पर
देखा
आज
"भाभीजी घर पर हैं" का
करवा चौथ का
महा एपीसोड,

ख़ूब निकला चाँद,
और चाँद के जुगनूँ निकले।

Monday, October 26, 2015

मरना

हमें
माँगना न आया,
उन्हें देना,

हमें
मरना न आया,
उन्हें जीना।

परख़

पुनः माँग्यो सीस
परख़ साजयो सिंह,

मत ताकओ बैसाख़
झड़ पत डारो पींग!

Sunday, October 25, 2015

अक्स

न जा
मेरे अक्स पे
कोई और हूँ मैं,

तेरा ख़्वाब,
न ख़ुद की हक़ीक़त,
कुछ और हूँ मैं।

हार

ज़रूर होगी
मेरी हार में
नायाब जीत,

मेरी
जंग थी
मेरे मसीहा नें
चुनी।

ज़िद

उसने
उस रस्ते से
आना था
बस इतनी ज़िद थी,

मन्ज़िल बर्बादी की
अलबत्ता
यही दरकार थी उसे!

बरकत

बे-बरकती
की फ़िरौती को
होना अपहरण
ही है
गर
आपकी नियती,
क्यों न रहें ख़ुश हाल
कुछ कम में आप!

टी ब्रेक

ज़रूर होगी
टी ब्रेक
जो सुनसान पहाड़
की सड़क पर
कोई नहीं,

मिट्टी के बोरे में
खड़ी हैं अकेली
तीन विकटें
बैट्समैन बॉलर फील्डर दर्शक
कोई नहीं।

शेर

अंगरक्षकों की
दीवार
के पीछे से
आ रही है,
शेर की
दहाड़,

गर सामने
आता
तो मैं भी
ज़रा
उसकी मूँछ
के बाल गिनता।

Saturday, October 24, 2015

भीड़

हत्थ जोड़ेया सी
भीड़ नूँ,
तोहाड्डे कल्लेयाँ नूँ नईं,

जदों मर्ज़ी
कर लवो
कट्ठी
फ़रियाद सुणा लवो!

नाश्ता

ताज़ी सर्दियों की
फ़ुर्सत वाली गुनगुनी धूप में
बैठ नारकण्डा की चोटी पर बने
सुनसान रेस्टॉरेंट की
बड़े काँच वाली
ठिठुरती खिड़की के पास
जला हीटर
रख सामने
हिमालय,
करना सुकून का नाश्ता,
उफ़्फ़ कमाल!

कस्में

न खा
इतनी कस्में
पोशाकें बदल बदल,

कहीं नागवार
न गुज़रें
अहदों को अहद।

सीस

सीस
गुरु ते
कौल नूँ सी देणा,
आक़ा नूँ नहीं,

पंज प्यारे
इलाही दे प्यारे
मुलाज़म नहीं।

गुरुद्वारा

गुम्बद
निशान साहेब
तों बिना वीं ने
गुरु तेरे द्वार,

बस तूँ होंवें
संगत
ते सेवादार!

माता

ये सड़क पर बैठीं
गायें नहीं
कोई और होंगी,

कौन छोड़ता इन्हें
यूँ भटकने
भूखा मरने,

मातायें
ये नहीं
कोई और होंगी।

लगान

प्रजा के लगान की
अशर्फ़ियाँ
वारते थे
गणिकाओं पर,

राजाओं के शौक़
अब
लोकतन्त्र में
कहाँ!

शहादत

किसकी बन्दूक
ऊँगली किसकी,

नज़र किसकी
निशाना किसका,

किसकी सियासत
शहादत किसकी!

कविता

हो
अक्षरों के
पत्थरों पर बैठी
अकेली,
तर्ज़ की लहरों से
टकराती,
अर्थ के सागर किनारे,
ज़रूरी तो नहीं,

जिसे पढ़ें लाखों
और भीग जायें,
हो सकती है
ऐसी ख़बर भी
आहत कवि की कविता,
सम्मान लौटाने का
सहज निर्णय,
दिल की व्यथा।

रक्षा

ढकता है जो
गर्दन से पाँव तक,
फ़ाइटर पायलट का
जम्प सूट पहन लिया,

चुन्नी की जगह
नंगे सर को
हेलमेट से ढक लिया,

नमस्कार की जगह
उठा दायनें हाथ का अँगूठा,
फिर कर
तिरछा तेज़ सैल्यूट,
उड़ाने लगी हूँ
सुखोई,
करने आकाश से
आपकी रूढ़ियों की रक्षा,

आपकी बेटी
बहन
पत्नी
वनक्षा!

रात दिन

रात,
दिन का
युद्धविराम,

सुबह
शान्ति
वार्ता,

दोपहर
विश्वास
घात,

सूर्यास्त
होश और
पश्चाताप।

लाल

खड़ी हैं
खाली वृक्ष सी
मातायें,
इस बहार
जन के
सेब से
बच्चे,

ढूँढ़ती हैं
थकी टहनियों से
वो लाल
जो दूर मण्डियों में
कब के
बिक चुके!

दावत

कलेजे
निकाल के
रख दिए
बेज़ुबानों के,

उनकी
मैय्यत पर
कहते हो
कि दावत है!

समन्दर

राम नाम
के पत्थर
तैरने के इतिहास से
अचम्भित है दुनिया,

पृथ्वी तैरती है
बिन पानी
के समन्दर में,
कोई हैरान नहीं!

आज़माइश

मिल गई है मुझे
हौसले की खदान,

तेरी आज़माइश को
आज़माने
अब मैं भी हूँ
तैयार।

रॉकेट

तीन स्टेज
रॉकेट है
मुक्ति के अंतरिक्ष में
जीवन का
प्रक्षेपण,

उठना,
मुड़ के देखना
और
फिर न मुड़ना।

नज़रबन्द

साँभ साँभ
नज़रबन्द रक्खी
सोणी वोटी
नवें लाड़े नें,

ख़ुशबू और रौशनी
नूँ छड्ड के
सारी
वचारी
बन्न रक्खी।

गलती

नज़र की गलती थी
ज़ुबान नें
भुक्ति,
समझा जिसे
गाजर का अचार
मिर्च निकली।

दस्तख़त

मुझे दिख गए हैं
आपके क्रीया कलापों में
आपके दस्तख़त,

पढ़ लिया है मैंने
आपके मुस्तक़बिल का अहद
जो आपकी हथेली में है।

विज्ञापन

इतना
सोम्य
सुंदर
आकर्षक
मनमोहन था
सड़क किनारे
होर्डिंग पर छपा
वो चेहरा
कि
देख पढ़ न पाया
किस चीज़ का था
विज्ञापन।

सीढ़ी

छत पे ही तो था
चाँद,
सीढ़ी को देखा
तो लगा
कि पहुँच ही जाऊँगा।

बिल्ली

काट गई रास्ता
मेरी कार का
बिल्ली,

शुक्र है
भगवान् का
नीचे नहीं आई!

Thursday, October 22, 2015

मयार

आपे गुर चेले दा
ओ कमाल दृश्
याद आया,

की मयार सी रखेया
की अख़बार आया!

Wednesday, October 21, 2015

कविता

हर शै में
छिपी है
एक कविता,
बस 
सही कोण चाहिए,

हैरानगी,
अंदाज़ ए बयाँ,
हक़ीक़त का तीर,
रूह का
दृष्टिकोण चाहिए।

छोड़

छोड़ दे
इस लम्हे को
न पकड़,

तेरे माज़ी का
पतझड़ है,
मुस्तक़बिल का
वसंत!

Tuesday, October 20, 2015

परतें

यूँ
कहानी न पूछ
शायद सुना न सकूँ,

कोई सवाल पूछ,
मुझे परतों में खोल।

परचम

उठा के रख
अपनी
ख़ुदी का परचम,

गुज़रेगा
याँ से
वक़्त,
पहचान
उठा लेगा!

पता

जवानी का
असर था
जो दिल शोख़ था,

वक़्त की मार का
अलबत्ता
हड्डियों को
पहले से पता था!

कटार

दाँतों वाली
कटार है
ये तन्त्र
जो आपको
लगी है,

हिलोगे डुलोगे
छिलोगे,

समर्पण करोगे
जियोगे।

आसमान

उचकता है क्यों
उठ उठ कर
बार बार
छूने को आसमान,
फूलों को यूँ रौंदता है!

आसमान
कोई छत नहीं,
तेरे सर से शुरू है!

जूते

ज्यों
मरे मवेशियों
की खालों से
जूते बनें,

हाय
क्यों
दुःखद समाचारों
को पढ़
कविताओं के
ख़ाके बनें!

Monday, October 19, 2015

तीन पत्ती

माधो,किशन और राधेश्याम नें
खेली सुबह सुबह
पहले तो
कैसिनो में
तीन पत्ती,

फिर सुलगाई चैन की बीड़ी
बैठ क्रूज़ लाइनर के कालीनों पर,
झाँकते सुनहरी खिड़कियों से
देखते अलंग के सागर का विस्तार,

छुआ जीते जी
सपनों के स्वर्ग का एक एक स्तम्भ,
स्टेनलैस स्टील टेबल, कॉफी मेकर, डिश वॉशर,
ओवन, तिजोरियाँ, शंडलीयर, लैंप,

परदों के पीछे
खोले बिन पानी के शावर
अपने तपते वजूद पर ,
नहलाया धुलाया
मन की इच्छाओं को मल मल,

फिर
कह अलविदा
फूँक उन्हीं बीड़ियों की चिंगारियों से आग,
जला उठा लिए अपने अपने गैस कटर
करने टुकड़ा टुकड़ा
कैसीनो ओशन लाइनर
टैक्सास ट्रैयर !

रंग

सियार को
जल्दी थी
हुआ हुक्का की,

रंग उतरने का भी
उससे
इंतज़ार न हुआ।

Sunday, October 18, 2015

उम्मीद

करी जा
जो कहन्दी ए
तक़दीर तैनूं,

तदबीर ओथे ला
जित्थे उम्मीद होवे!

काले मोती

बीनता हूँ
गाँव की
वो
गाजनी मिट्टी,

शायद मिल जायें
तख़्ती से उतारे
बचपन की कलम के
वो काले मोती!

क्रूज़

अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों से
अनुरोध है,
करें पूरा
जल्द से जल्द
ये क्रूज़ सफ़र,

हो डी-कमीशन
ये पोत
इस आख़िरी सफ़र
के बाद,
ख़रीदे इसे
कोई गुजराती व्यापारी
पहुँचवाये भावनगर,

करें
गैस कटर्स से
इसके टुकड़े टुकड़े
ये मज़दूर
और भिजवायें
पीछे बिहार में इंतज़ार करते
बीवी बच्चों माँ बाप मवेशियों को
इस माह के
पैसे।

डर

न रख
इतने पत्थर
अपने वजूद की
टीन की छत पे,
तूफ़ान के डर से,

वो न आया,
तो यकीनी है
तेरा दब के मरना।

दिल

हो सकदै
समुन्दर दा दिल वी
भरेया होवे,

सोचणा चाहिदै
हर निराश नूँ
डुब्बण तों पहलाँ।

हिसाब

कर के ताँ वेख़्
तूँ वी
कोई
सौदा सच्चा,

किदरे
रह न जावे
समझ दी वणज दा
हिसाब कच्चा।

ख़बरें

जिस तरह
अख़बार में
नज़रों ने
ख़बरें
चुन चुन कर
रुक रुक कर
पढ़ीं,

ज़हन नें
बनाईं
वैसी खबरें
ज़िन्दगी के सफ़ों पर
सोच के मुताबिक़।

धन्य

परम् पूज्य
सदगुरुदेव
विद्या वाचस्पति
योगाचार्य
ज्योतिषाचार्य
पण्डित
डॉक्टर
आप हैं
पता चला हमें
लिखा देख
आप ही के नाम के आगे
आप ही के लिखे
और प्रायोजित
निमन्त्रण पत्र में,

पढ़कर
हम
यज्ञ से पहले ही
धन्य हुए!

इंतहा

भटकन की इंतहा
शायद
हुज़ूर नें
अभी देखी नहीं,

बहुत मुमकिन
जनाब
नाचीज़ से
अभी मिले नहीं।

कल्ल

कल्ल
अज्ज जाणे
या रब्ब जाणे,

ओ किवें
जाणे
जिन्ने आओणा नीं।

टेक्नोलॉजी

टेक्नोलॉजी
जेड़ी बार बार
पैराँ च फसे,
ओहनूँ
ठुड्ड मार,

जेड़ी चल्ले
मिला
कदम नाल कदम
लावे पैराँ नूँ पंख,
ओहनू सीने ला!

Saturday, October 17, 2015

ढलानें

उतरता जा
मैं की ढलानें
रमते
पानी की तरह,

या झील बनेगा
या सागर से मिलेगा!

अजे

होवेगा
ताँ वेख़् लवीं,

वेख़् लै
अजे
होया नहीं!

नेग

प्रिय देव किन्नरों,
ग्यारह छोड़
इक्कीस हज़ार
करूँगा भेंट
आपको,

प्रथम,
देर से ही सही
माँगिये
बेटे की
बड़ी बहन का भी
नेग!

क्या?

क्या आर्य राष्ट्र में
कभी न समृद्ध होगी
कला और अभिव्यक्ति?

रहेगी सदैव स्तुतिगान की घुटन
सत्य की परित्यक्ति?

देशभक्ति के नाम पर
राष्ट्र का ही ह्रास,
बाहरी,कभी अंदरूनी
तानाशाही की अभिशप्ति?

सवाल

ले गया
चोर
चुरा
नेताजी के घर से
मलाल नहीं,

कहीं
पकड़ा न जाये
सामान के साथ
है सवाल यही!

Friday, October 16, 2015

जल्लियांवाला

आज़ादी
के बाद के
जल्लियांवाला
कहाँ हैं,

डायर
यहाँ हैं,
स्मारक
कहाँ हैं!

संस्कृति

गुंडागर्दी से
समझाई,
उन्होनें,
शालीनता की
संस्कृति,

आज फिर
किसी नें
अपना
तर्जुमा
किया!

पात्र

अपात्र
साम्राज्य का दिया
सम्मान कैसा,

अपनी पात्रता
'पातर' नें
पाक़ रखी!

अमानत

साँब के रख्यो
लथियाँ
गरदनाँ
इंसाफ़ दी
अमानत समझके,

किते
पै जावे
ज़रूरत
जोड़न दी
नवें सबूतां
दे मिल्लण ते!

लेख

कालख़ दी स्याई नाल
लिखया ए
आज़ादी दे चेहरे ते
ए केहो जेहा
बिना अक्खरां दा लेख!

की की पढ़ रई ए
वेख़् वेख़्
अनपढ़ दुनिया।

Thursday, October 15, 2015

मुक़द्दस

एस
शरियत दी पहोंच
एम्बैसियाँ महलाँ दी
दीवाराँ दे पार
नईं,


मुक़द्दस
शरियत
लेआवो
जेड़ी उड़ के जावे!

तरले

कदों तक
करेंगा
तरले
आपणे भविक्ख दे,

जेड़ा
रुलदा ए
तेरे पैराँ च
चिराँ तों,
पहलाँ
उस ग़रीब
अज्ज नूँ ताँ
पेयार दी भिक्ख दे!

चूक

आपकी
बुलंदी में
चूक है
जान लीजिये,

वाज़े होने में
चुनांचे वक़्त है
अभी
जाने दीजिये!

Wednesday, October 14, 2015

रानी

जाती नहीं
हैरानगी
देख
ग़ुलाम नस्ल को
करते पलायन
आज़ाद देश से
उसी
ब्रितानिया
और कहते
उसी रानी की बेटी को
रानी!

ट्रैकिंग

अपनी
ज़रूरत का
सामान बाँध
और ज़िन्दगी की
ट्रैकिंग पे निकल,

ये क्या कर रहा है
तैयार
दुखों का
लाव लश्कर?

गुम

खुली आँखों से भी
कैसे
छूट जाता है
इतना कुछ,

यकीनन
देखते हैं हम
कहीं और से
जहाँ
गुम हैं

हमला

अब आपकी
"न" की
छिछली रावी ब्यास ही
बचायें तो बचायें आपको,

बड़ा भीषण
हुआ है हमला
हिंदुकुश के इरादों के ऊपर से
पीर पंजाल के
निश्चय दर्रे लाँघ,

आपकी जेब के
लहलहाते उपजाऊ समृद्ध मैदानों पर
चारों ओर से
अख़बार के पहले भीतर और आख़िरी पन्नों
के वज्ञापनों की सेनाओं द्वारा
अपने आकाओं के इशारों पर...

टायर

कुछ तो
दूरी हो
मीयाँ बीवी के
टायरों में,

एक जाये
खड्डे
में
तो दूसरा
निकाल ले!

सवाल

उनकी
किस किस
बात का
मैं
देता जवाब,

वो
मजबूरियाँ थीं
उनकी,
सवाल न थे!

इनायत

दोज़ख
से होकर
गुज़रती हैं
राहें
जन्नत की,

बड़ी
इनायत है
कारोबारियों पर
राहदारों की!

Tuesday, October 13, 2015

जश्न

जश्न ए आगाज़
तबीयत से कैसे
तब तक,

हो न वो
किसी दौर ए एहम का
जश्न ए अंजाम भी
जब तक!

प्रैक्टिस

कितना
प्रेरणादायक है
बैठकर जाना
फ़्रंट सीट पर
बेटे बेटी का
ऑफिसर पापा
की ऑफिसियल कार में
ऑफिसियल ड्राइवर संग
स्कूल,
ढकी मगर लगी
लाल बत्ती की
मानसिक छाया में ,
करते करवाते
अपनी
और सबकी
प्रैक्टिस...

व्यर्थ

व्यर्थ
बहस की मैंने,
उलझा मैं,

मेरा सूरज
कहाँ
गैलिलियो से
भिन्न था।

टी

कहाँ पे लिखा
टी
और कहाँ
जाकर
काटा,

आपके
दस्तख़त
में
आपकी
रवानगी है!

थूक

थूक
कमसकम
ज़रूर होगा
ज़िंदा ग़रीब के पास
पता था उन्हें,

फ़क़त
चार आने का
डाक टिकट
ख़रीदना था,
पैग़ाम पर
चिपकाना
मुफ़्त था।

मुक्ति

सन्नी
तेरे आने से
पिशाचों को
मुक्ति मिली है,

किस किस
जिस्म में
घुट घुट
रहने को थे
श्रापित,
अपना सा
रहने की
हिम्मत मिली है!

कल्ला

क्रान्ति तों बाद
तूँ वीं
किते
आक्राँता
न बणीं,

कल्ला सह लवीं
नईं ताँ,
लक्खाँ ते
नवाँ कहर न बणीं।

डीपू

नहीं
पहुँचा
फिर
डीपू पर
सस्ता राशन,

ग़रीब के बच्चे
की भूख़
मगर
ठीक वक़्त
बैठ गई
पलाती मार
पेट के
चूल्हे के सामने!

नामंज़ूर

कभी बताना ज़रूर
माँ
कि किसकी दुआ
तुम्हें
हरगिज़ नामंज़ूर है,

तुम्हारे नाम की शय का,
तौबा,
किस किस
ख़ुदमुख़्तार
को ग़ुरूर है!

चन्दा

रख लें आप
बाढ़ पीड़ितों का
एकत्रित चन्दा
पास अपने
एडवांस समझकर
गर
दे इजाज़त
ज़मीर आपका,

कौन जाने
ज़रूरत में आपकी
आप तक
पहुँचे न पहुँचे!

पन्न

न वेख
पिच्छे
मुड़ मुड़ के
बार बार
ऐवें,

वक़्त
बन्न चढ़ा ही देवेगा
तेरे माज़ी की पण्ड
तेरे ज़हन
दी पिठ्ठ ते!

Monday, October 12, 2015

चूक

कारबूसिअर
तूने
कमाल की
विधानसभायें
बनाईं
नक्शों में,

कहाँ
चूक हुई
देकेदारों से
जो
कमज़ोर रहीं!

रेत

दवात दे
समन्दर चों
भर भर के
कलम दी बुक्क
तरतीब नाल
सींच रेहाँ हाँ
सफ़ेयाँ दी रेत
गाओन्दा
हरफ़ाँ दी तर्ज़,

पढ़ लवीं
एनांनूँ
सुक्कण तों पहलाँ,
आस
मुक्कण तों पहलाँ!

गुज़रे ज़माने

कौन कहता है कि
ज़माने गुज़र गए,
छू रहा हूँ तस्वीरों में आँखों से
दिल की धड़कनों में सुन रहा हूँ!

पास

रूह हूँ मैं
अभी भी
तेरे पास हूँ,

तेरे जिस्म से
जुदाई का तो
मुझे भी
मलाल नहीं!

हाट

हाट के व्यापारी
की तरह
जीने में
उन्हें
बड़ा
स्वाद आया,

न ज्ञान का पड़ा
अवांछित बोझ,
न बेजाह
धरम या संकट का
सवाल आया।

इंद्रधनुष

आपकी
हर महफ़िल
बिन हमारे
अधूरी है,

रंगों का इंद्रधनुष
है बिखरा बिखरा सा,
जोड़ों के हाशियों पर
फीके रंग भी
ज़रूरी हैं!

Sunday, October 11, 2015

सिंह

तेरे सिंहासनों पर
ये कैसे
सिंह हैं
आसीन!

रंग बदलते भी हैं
और
पक्के भी!

रेल

अपनी
व्यथाओं को
बताने का
जब कोई
प्लेटफॉर्म न दिखा,

निजाद
की रेल
के इंतज़ार में
पटड़ियों पर ही
सो गए!

Saturday, October 10, 2015

सरदर्द

जा सरदर्द
मुझे और भी
काम हैं,

कब तक
बैठा रहूँ
तेरे सिरहाने,
तेरा सर दबाऊँ!

नैतिकता

नैतिकता
की नज़र से
भेदती रही
आलोचना
की दुनिया,

अनैतिकता की
ना बयानी से
भीतर
झुलसती रही
संवेदना...

पतझड़

किन लफ़्ज़ों की
करूँ
हिमाक़त
कि कोई
पत्ता हिले,

दौर गुज़रे
इस बाग़ ए फ़िरदौस में
पतझड़ खिले!

ट्रेन

होंठ
मिलाने को
बेताब रहे
जिस्म,

रूहों की
मुक्ति की
ट्रेन छूटती रही
इस भरत मिलाप में!

गिरफ़्त

अपनी अपनी
जंग की
गिरफ़्त में थे
जंगजू,

मसीहा का 6
शैतान का 9 था...

मानसून

अनहोनी
के मानसून पर
टिकी है
होनी की
फ़सल,

सिर्फ़
कोशिशों के हल से
कब
रूह की
बाली
खिली है!

पालना

ख़ुद के
पालने को
हमनें
ख़ुद ही
हिलाया था,

है
हमारे
तजुर्बों में
हम ही की
खतायें!

बल्ब

एक पल को
बल्ब की तरह
हुआ
सूरज
जो फ़्लिकर,

भूल कर
सारी
गारंटी
एक बार को तो
लगा हमें
कि गया!

बाद

हमारे
चले जाने के बाद
किया क़ुबूल
उन्होंनें
हमारा
असर ओ रसूख़
उनपे,

हमारे रहते
वो हमसे
होड़ में रहे!

मौसम

चार मौसमों
से कहीं ज़्यादा हैं
मेरे ज़हन के
पठारों पर
पलों के बरस,

हर नज़ारे का
नज़ारा
कुछ और है!

डर

हज़ारों
हादसों का डर
मंडराता है
होनी के
सर पर,

हम न हों
गैर हाज़िर
तो मुस्कुरा कर
बढ़ जाता है!

तलाश

एक मुद्दत से
गुम
मेरा प्रिय
हाथी
ढूँढने से भी
जब न मिला मुझे,

रहने दिया
मेरी बिल्ली की आँख में
तैरता,
मेरे लापता
मुझमें।

Friday, October 9, 2015

दास्ताँ

रंग ओ बू में
गया
कहाँ तक
पत्ते का
लहू,

दुनिया
देखती है
जिसे
मिट्टी में मिला,
फ़िज़ाओं में घुली
उसकी दास्ताँ
किस से कहूँ!

पत्ता

गिर गया
आज
उस टहनी से
वो सूखा पत्ता भी,

मिट्टी बन
देखें
अब
कब
कहाँ
किस शाख
उगे!

दौलत

बचे पैसों की
टॉफ़ियाँ चॉकलेटें च्विंगम
देती हैं
आज भी
बच्चों को
वही ख़ुशी
जो
कभी
देती थी
रेज़गारी,

ये दौलत
मगर
रहती है
कुछ पल
जो कभी
महीनों थी रहती...

मिट्टी

हर
तजुर्बे को पी
बात को सुन
शै को देख,

इसी मिट्टी से
आए
शायद
तेरे हर्फ़ों के
फूलों में
रंग ओ बू!

बैल

हथेलियों में
ले जान,
पकड़ सींगों से
मुसीबत का बैल,

धसा निश्चय की मिट्टी में
जुगत के पैर,
उसी की ताक़त से
हरा
उसको!

सवेर

नवीं नकोर
सवेर
छड गई ए रात
मेरी खिड़कियाँ दे बाहर,

अंदर
पर
अजे वी नें
मेरे
न जाणे
किन्ने
अनबीते
कल!

Thursday, October 8, 2015

बूट

माँ
मेरे बूट हेठाँ
आ गई ए ज़मीन
तूँ फ़िकर न करीं,

मैं
साहाँ दे
लग गया हाँ कण्डे
तूँ फ़िकर न करीं,

कल्ला नईं आं मैं
मैनू वेखदी ए दुनिया,
मेरी खैर ख़बर दी
हुण
उडीक न करीं,

आसमान दी छत हेठ
पाणी दी चादर ते
मसाँ मसाँ लग्गी ए अक्ख,
मैनूं चुम्मी न मेरी माँ
मेरी नज़र न हरीं।

सुनहरी रेत

ज़रा
हिला के ताँ वेखो
ओस मूँदे लेटे बच्चे नूँ,
किते
सुत्ता
पेया ही न होवे,

साडे यूरोप दे वाँग
सुकून दी धुप च
सुनहरी रेत ते पेया
सुख ही न सेकदा होवे,

हो के
घरों तैयार
डुबदे माँ बाप भैण नाल
साजिश रच के
ज़मीन तो ओहले
सुपणेयां ते डुंगे पाणियाँ च तैर
साडी अर्थव्यवस्था च
घुसपैठ करदा
थक
डिग पेया ही न होवे,

ज़रा
हिला के ताँ वेखो
साडा शक़
किदरे
ठीक ही न होवे!

जान

इतनी आसानी से कहाँ
जान निकलती है,

करनी पड़ती है
जीने की चाह
तो कहीं
बिगड़ती है!

खड्डा

ये दुनिया
खड्डे में जायेगी
कभी कभी
लगता है,

फिर
सर उठा
जब
आकाश के
गहरे कुएँ
को देखता हूँ
तो लगता है
पहले से है!

लोकतन्त्र

चलो
सत्ता पक्ष
के गुंडों
के गुट से
जुड़ें,

करें
ख़ुद को
सुरक्षित,
लोकतांत्रिक
सरकार को
मज़बूत करें!

फिरकी

ब्रह्माण्ड के मेले में
फिरकियों के
खम्बे सी
हमारी दुनिया,

हर किसी की
ज़िन्दगी
घूमती
वक़्त की हवा में
अपनी अपनी
धुरी पर!

Wednesday, October 7, 2015

सरकारी

है मेरे पास
एक सरकारी नौकरी
की तजवीज़
ख़ास आपके लिए,

है जिसमे
आराम ही आराम की
गारंटी,
हाथ पैर भी जिसमें
शायद
हिलाना न पड़े,

कैसा हो
जो मुफ़्त का
पैसा भी मिले
इनश्योरेन्स का,
बस ज़हन में
मुर्दा बन
कुर्सी के कफ़न में
लेटना पड़े!

चिड़ियाँ

कहाँ है
मेरी जान
मेरे जिस्म में,

उड़ जाती है
हर सुबह
चिड़ियों संग
मेरे बच्चों के स्कूल
निगाह में
उनकी!

गाँव

गाँव गाँव कहता था
किसी बिछड़े
की तरह,

काँव काँव
करता है अब
बैठा
शहर के
ऊँचे फ़्लैट
की बालकोनी में.

अलार्म

काश
जगाता
अलार्म
नींद से
माँ की तरह
फेर कर
बालों पर हाथ
चूम कर माथा
पुकार हौले से
मेरा नाम,
उतार बलायें,

बस
बेदिल
बेसरोकार
बदहवासी में
करता है शोर,
अपनी बला टालता!

Tuesday, October 6, 2015

व्यर्थ

बहुत कुछ है
व्यर्थ,
गिर जाना चाहिए,

चाहिए
खुला खुला सा
एक चाँद वाला
आसमान,
सितारे
कुछ कम चाहिए।

Monday, October 5, 2015

माफ़

उसने
ज़माने को
कब का माफ़
कर दिया,

ज़माना
ख़ुद से
अभी भी है
रुसवा!

दाँत

बुज़ुर्ग नेताजी
के लिए
दाँत
बेहद थे ज़रूरी,

खाने के लिए
न सही
दिखाने के लिए!

इंतज़ार

लम्हों के इंतज़ार में
ज़िन्दगी बीत गई,

ज़िन्दगी आई
तो लम्हे मिले!

सैमसंग

सैमसंग
अभी तक
संभाले है
बाज़ार के
दावेदारों में
अपना
वर्चस्व,

‛संजीव के' *
इस दीवाली
तू कहाँ है!


*शिमला के मशहूर सैमसंग शोरूम संजीव के एंड कंपनी के दिवंगत मालिक जो इस वर्ष एक एक्सीडेंट में मारे गए

क़ैदी

क़ैदी
वो वाटर कूलर है
जो
पिंजरे के पीछे है क़ैद,
ग्लास उसका
ज़ंजीर से
बँधा?

या
हर
वो मानूस
जो बाहर से
बढ़ाता है
लम्बा खाली हाथ
बुझाने
आस की प्यास!

देश

सवा सौ करोड़
देशों
से बना है
ये देश,

कुछ का
सैंतालिस उन्नीस सौ
आ चुका,
कुछ का
अभी
सत्तावन अट्ठारह सौ भी
आने को है!

हूटर

पाँच बजे का
हूटर सुन,
आज का बच्चा
हैरान है,

उसे क्या मालूम
उसके राष्ट्र
के
कमर्चारियों की
प्रभुसत्ता का
सवाल है!

कश्मकश

काँटे की टक्कर थी
गुलाब जामुन
और रस मलाई में
कि कौन
मीठा है
ज़्यादा,

खड़ा
दो पाटों में फंसा
बीच
मैं,

जीते
कोई भी,
मेरी तो
हार है,

हाय कश्मकश,

पीठ दिखा
भागूँ
या रहूँ
डटा
मैदान में
मैँ!

फिर

जितनी देर है
देख
सुन
कह,

फिर
किसने कहना है
किसने सुनना है।

फ़ायदा

क्या फ़ायदा
तेरे भीख़ माँगने का
मेरे दोस्त,
गर मिलती है?

हमेशा
माँगता रहेगा
मुनाफ़े में
छोड़ न पायेगा!