कैसे
और
कितना
बदले हो तुम
एक ही रात में
कहो,
तुम भी
हो नए
या साल ही!
आँखों से सुना
कानों से देखा
पोरों से महसूस किया है
जब से,
दुनिया
वैसी दिखी है
जैसी तजुर्बों में पाई है!
फिर
पहुँच गया वक़्त,
साँप सीढ़ी के
एक पर,
किस्मत की गोटी
फुदकवायेगी तुझे
इस बार भी,
हाँ,
तू मेहनत कहेगा!
एक और
टेक ऑफ़ पॉइंट
की हवाई पट्टी
के करीब है तू,
सब्रो एहतमाद से
पकड़ रफ़्तार
इस दफ़ा,
परवाज़ लिखी ही है
तेरी राह में
याद रख!
ले
मूँदता हूँ आँखें
करता हूँ पीठ,
निगरानी की थकान से
ख़ुद को
करता हूँ
आज़ाद,
जाँच लूँगा
तेरा ज़मीर
जब
परख के लिए
मिलूँगा।
आग सिर्फ़ आग
कुण्ड सिर्फ़ कुण्ड
आहूतियाँ सिर्फ़ सामग्री
नहीं होती,
हर जीवन है एक यज्ञ
रूहें करवाती हैं!
ऑस्ट्रेलिया से
आते हैं
मेरे बच्चों के बच्चे
खाने लड्डू
जलेबी
यहाँ,
वहाँ
मंगाता हूँ
यहाँ से
तो वतन का एहसास भी
माँगते हैं।
ऑस्ट्रेलिया से
आते हैं
मेरे बच्चों के बच्चे
खाने लड्डू
जलेबी
यहाँ,
वहाँ
मंगाता हूँ
यहाँ से
तो वतन का एहसास भी
माँगते हैं।
जिस दुनिया को
देते हो मुआवज़ा,
कब की
उजड़ चुकी,
ये कहो
कि उतारते हो
ज़हन का बोझ,
माँगते हो जिनसे क्षमा
रूहें
कब की
जा चुकी।
अब देख
मुड़कर
उन चिंताओं को
जिन्हें
छोड़ने से
इनकार था तुझे,
कितनी
ख़ुश हैं
तुझसे छूट कर वो,
और
कितना
ख़ुश है तू!
रस मलाई
गुलाब जामुन
खाने के बाद
अदरक लहसुन चबाना
मुझे पसंद नहीं,
विदेश के
सैर सपाटे पश्चात,
पुरानी दिल्ली से गुज़रना
मुझे पसंद नहीं,
कहीं
सीधा
कल्पा काज़ा में
उतारो
तो आऊँ,
विदेश की
दूसरी तस्वीर
भी दिखाओ
तो जाऊँ!
बणावो मन्दिर मसीत
ते होर वी, जो वी,
इक दीवार बणायो घट्ट
पायो साँझ,
बचियाँ इट्टाँ दी
बणायो इक मढ़ी,
बाल नज़र दा दीवा
बीते दिन दी साँझ।
मरदानेया!
अज्ज तुसी गावओ उस्तत् मिट्ठे कण्ठ,
बुझावओ खू दी प्यास, मेरी रसना है नासाज़,
उतार लेहावो फेर आकाश ज़मीन
खोलो आपणी रूह, वजावो साज़!
ये मस्जिद की ईंटों में
गूँजती हैं
शब्द की तरंगें कैसी!
कौन है
दीवार के उस पार,
ये आज़ान में
अरदास की
उमंगें कैसी!
टेम्परेरी शै में
कभी
हमारा दिल
परमानेंटली न लगा,
परमानेंटली
पास से गुज़रते रहे
टेम्परेरी अलविदा कह के!
बिजली से नहीं
धूप से चमकते हैं
मेरे क्रिसमस ट्री!
रात में नहीं
अलबत्ता
दिन दहाड़े
भरी दोपहरी!
हैं भले आज
छोटे,
पर एक नहीं
हैं हज़ारों
बनने की राह में,
हो जायेंगे तैयार
बैसाख़ तक
खेतों में मेरे
सुनहरी बल्ब लिए!
उस दमकती आस
और ईश्वर के दिलासे के सदके
मैरी क्रिसमस!
मेरी
मुस्कराहट का सिक्का
गर क़ुबूल है उसे,
क्यों न डालूँ
उसकी आँखों की
गुल्लक में
सवेरे सवेरे...
कहाँ कहाँ से गुज़रा होगा
जो यहाँ है तू,
कुछ मोड़ अँधेरों में
कुछ दुआ में
मुड़े होंगे
जो यहाँ है तू!
यकीनन
सुरक्षा के दायरे में हैं हुज़ूर
जो इस कदर हैं मेहफ़ूज़
कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
के वशीभूत
फैला रहे
असुरक्षा
यदा कदा
अत्र सर्वत्र
येन केन प्रकरेण !
बाँसुरी से मीठे
शान्तिदूत से
आपके बोलों नें
इस बार
रोक ही दी है
होने से पहले
महाभारत!
जीते हैं
पहली बार
दोनों पक्ष,
दिल का
हस्तिनापुर
बहुत ख़ुश है!
गुज़र जायेगा
ये वक़्त जब
बाद एक अरसा
तुझे याद आयेगा,
बा मतलब
बे क़सूर लगेगा,
ख़ुश्क आँखों में
सैलाब लायेगा!
सम्भाला है नाख़ुदाओं नें जब से
किनारों का भी निज़ाम,
मिलता हूँ मझधार ही में
अपने ख़ुदा से
टूटा किनारा बन के!
न कर अपने सवाल पर यकीन
बेशक़ मेरा जवाब न सुन,
कुछ जवाबों से तू है महरूम,
जैसे कुछ सवालों से हूँ मैं!
बण जाँदै
सारा पिण्ड
गुरुद्वारा
जदों गूँजदा है
सारे आकाश दा गुम्बद
ज्ञानी जी दे नितनेम नाल
मिट्ठा मिट्ठा
सवेरे चार वजे,
मैं
रैण सबाई च
मम्मी डैडी नाल जाग के
ओहनां दी गोद विच ही
सवेरे सवेरे सुत्ते
किसे छोटे बच्चे दी तरह
कई वार
कम्बल च
दुबक जाँदाँ
कुज होर,
मिट्ठी बाणी
कम्बल दे बारों
लोरी दी तरह
पुचकार्दी वि ऐ
ते रोम रोम जगौन्दी वी!
सदियों के
मुसाफ़िर को
मन्ज़िल पर
तीसरे ही दिन
हुई जो
घुटन,
मुहँ अंधेरे
लौट पड़ा
पहले रास्ते
ढूँढ़ने मंज़िल!
क्या जाऊँ मैं
आपकी गर्मजोशी पर
रक़ीबों के संग,
दोस्तों से
मुलाक़ात की
शराफ़त
आपके रोम रोम में थी!