Monday, February 29, 2016

भटकन

भटकन तेरी
कहीं
पहुँच जाने का
पैग़ाम देती है,

तू
कहाँ है
पूछ तो ज़रा
रास्तों के
वादों से!

Saturday, February 27, 2016

आग

इतने की
चीज़ न थी
जितने की
बद्दुआ होती,

हमने कर दिया
मुआफ़ उसे
पेश्तर की
धुएँ की आह से
आग उठती।

समझदार

न होता ठाना
तो बात
कुछ और थी

हमने
खाई थी
जीने की क़सम
मौत समझदार थी
जानती थी।

मुख़ातिब

न छेड़ा
ज़िन्दगी नें
मुझे,
जब तक
उलझा था मैं,

ज़रा सुलझा
तो मुझसे
मुख़ातिब हुई।

ज़िद

किसी
सरफिरे की ज़िद थी
जो यहाँ हूँ मैं,

मेरे कहे में
कब थी
रवानी मेरी।

इनकार

जब
कर दिया
इनकार
हमनें
करने से
चिंता,

कह दिया
होनी ने भी
फिर यही सही!

आत्मकथा

हूँ
एक आत्मकथा
ही तो
जो जी कर
हूँ होता,

होता क्यों कर
जो कोई न
पढ़ता।

सागर

हर हक़ीक़त
के चुल्लू में था
करुणा का
सागर,
डूबने
जब जब गया
मैं,
रो कर लौटा।

Friday, February 19, 2016

पुल

किस लिए
बनवाया था ये पुल!
खुदकुशियों के लिए?

करवा रहा है पार
बिन पहुँचाये!

Wednesday, February 17, 2016

आँखें

जब
नहीं दिखाई
उन्होंने
गीत की तस्वीर

हमनें
बन्द कर आँखें
देख ली।

मंज़िलें

बहुत सी मंज़िलें
हमने
महसूस करके
छोड़ दीं,
उनके पैर
हमारे हौसले न थे!

नाम

एक नाम
चाहिए था
सहारे को
सो तुम्हारा
पकड़ा,

तुम्हीं
निकले
ख़ुदा
क़िस्मत मेरी।

Saturday, February 13, 2016

रिश्ता

मसरूफ़ थी
दुनिया
मैं छोड़ आया,

मतलब का था
रिश्ता
मैं तोड़ आया।

ज़िंदा

अज
ढाबे ते
किसे दे मूहों
चीनी वाले प्रोण्ठे
दी गल्ल सुणके
चेता आया
कि अजे वी ए
किसे दी माँ
ज़िंदा
किते
ख्यालाँ विच ही सही।

Saturday, February 6, 2016

खुलकर

ऐसे खुलकर
करने निकलोगे शिकार
तो कौन फंसेगा,

ज़रा शराफ़त तो ओढ़ो
एक्सप्रेशंस तो बदलो!

आबो हवा

कभी गर्म
कभी सर्द सी है

दुनिया की आबो हवा
अब कन्फ्यूज्ड सी है।

ग़रीब

ख़रीद
तो लाऊँ
आसमान
पहाड़
नदियाँ,

वो घर
कहाँ से लाऊँ
जहाँ
रखूँ
इनको,
अभी
ग़रीब हूँ!

डर

वो तेरा डर था
जो खुदमुख्तारी में तू
रटता था
मेरा नाम,

वर्ना तू
मैं ही था
और सुरक्षित था!

दीवार

इस
ख़ुशफ़हमी
से उभरो
कि दुनिया देखती है तुम्हें,

देखती है वो तुममे
एक हसीन दीवार
लगाने को
अपनी गुमशूदगी के पर्चे
गर इजाज़त मिले!

Friday, February 5, 2016

घड़ा

कितना प्यासा होगा
वो घड़ा
जो कूआँ कूआँ करता है,
कूएँ जितना भय लिए
जग धूआँ धूआँ करता है।

मीनार

चल
मस्जिद की मीनार के शिखर पर चढ़कर
सुनें अज़ान,

शायद उठ जाये
ज़मीनी ज़रूरतों से
दुआ अपनी।

दृश्य

काटूँगा
एक ही मन्ज़र को
तीन चार कविताओं में,

कई दृष्टिकोण हैं
इस दृश्य में!

फ़ीस

हाँ
दे देओ
फ़ीस
फ़कीर नूँ
आपणे इलाज दी,

चढ़ जाँदी है जो
बार बार
खुमारी
आप जी नूँ
सिक्केयाँ दे भार दी!

Thursday, February 4, 2016

तपस्या

कहाँ छुप के
बैठे हो
तपस्या के लिए,

जीवन का यज्ञ
है यहाँ
समस्यायें लिये।

कतार

पूछा जो
मज़दूर के बेटे नें
कुछ बरसों में
तो, हे ईश्वर!
क्या कहोगे
कि राजाओं के घर
जन्म की
कतार अलग है!

प्रार्थना

एक नदी
एक पेड़,
एक आसमान
दे दे,

बहाव
स्थिरता
विस्तार
दे दे!

बेशर्मी

आपका
इंतकाल हो गया
और हमें
किसी नें
बताया भी नहीं!

आपकी
किस्सा गोई तो
बेशर्मी से
जगा देती थी हमें
नींद से भी!

जड़

उखाड़ो तो ज़रा
यहाँ  से
सड़क,
होगी
अभी भी यहीं
वो जड़,

कट जाने के बाद तना
कहीं कहे न
किसी ने पूछा नहीं!

Wednesday, February 3, 2016

सलामी

जब भी दिखता है
सामने से आता
कोई एनफ़ील्ड रॉयल,

कर धीमे कार की रफ़्तार
झुका खिड़की की पताका
देता हूँ अवधान* की सलामी
करते तृप्त
कानों के हवनकुण्ड
बादलों सी गर्जना से!

*attention

Dedicated to Knight Riders

Monday, February 1, 2016

ओवरटेक

साँप सीढ़ी की
ओवरटेक है भइया
कर ले,

हम ढूँढ़ते हैं
साँपों में
नीचे उतरने की
सीढ़ियाँ,
आते हैं!