Friday, April 29, 2016

पत्ता

पूरे
लावलश्कर के साथ
आया है
प्रधान जनसेवक का
ओवर कॉन्फिडेंस,

इनके फ़रमान को
प्रार्थना समझूँ
या ईश्वर की
हवा का पत्ता!

आलू

काश होते
हाथों में मेरे
सुबह सुबह
उबले आलुओं की जगह
ग्लव्ज़,
तन पर
मैली बनियान की जगह
टी शर्ट,
पैरों में
घिसी चप्पल की जगह
स्पोर्ट्स शूज़,
तो क्यों न मैं भी
उस बच्चे की तरह
लगाता
हर रोज़
पूरे शहर का चक्कर
रेसिंग साइकिल पर
करने प्रैक्टिस,
पहने
चेहरे पर
वही
बढ़ते बच्चों का
कॉन्फिडेंस,

काश
ढाबा मालिक की जगह
मेरे भी
माँ बाप होते।

खेल

वैसे ही डरी
वैसे ही भागी वो
जैसे
मैं या आप भागते
यदि जान पे
बन आती,

कहाँ
सोचते
कि
इंसान की उंगली है
खेलती
हमसे
और चींटी हैं हम।

उम्मीद

बारामदे में रखी
उस कुर्सी का नाम
मैंने
उम्मीद रखा है,

मिले
न मिले
वक़्त
उस पर बैठ
सामने की वादी में
आखों के रास्ते
होने को गुम
मलाल नहीं,
उसके होने में ही
मन को
समझा रखा है।

मिट्टी

तेरे ज़हन
की ख़िदमत को
दिया है
तुझे
जिस्म,

क्यों
खिलाते फूल
गर
मिट्टी न होते?

Thursday, April 28, 2016

शर्म

दो दो
नए पुल
और उनको
पिछड़े वर्तमान से जोड़ती
नई सड़क,
कैसे खुल गए
आवाम के लिए
उसकी सोई
क़िस्मत से उलट
उदघाटन के बिना?

नेताजी
नहीं रहे
या
डेमोक्रेसी को
शर्म आई?

Tuesday, April 26, 2016

प्याला

भर दिया आधा,
धरती के बीहड़ों का प्याला,
आधा ख़ाली छोड़ दिया,

कह दिया
किसे सागर
किसे पर्बत
कह दिया।

धूआँ

चुल्लेयाँ 'चों
उठदा धूआँ
अड्डी चुक्क चुक्क
भेजदा ए संदेसा
स्वर्गां नूँ,

कि
पहुँच रही ए
रिज्जक,
ज्यूँदियाँ नें पकाओंण वालियाँ,
खाओन्दे नें परिवार
बैठ वेड़ेयाँ 'च
आस पास,
अजे वसदे नें पिंड।

Sunday, April 24, 2016

ज़हानत

बड़ी
ज़हानत से
निकालता है
यमदूत
सम्भ्रातों की
आख़िरी साँसें,

एक तानसेन
होता है किनारे
हर अक़बर की शैय्या।

दर्द

दर्द दे
पेट्रोल नूँ
चिंगारी जहे
किसे लफ़्ज़ दी
तीली ना वखा,

झुलस न जावीं
हंजुआँ दी अग्गे,
जज़्बाताँ दे सैलाब नूँ
वगणा न सखा।

Saturday, April 23, 2016

जश्न

श्याम पृष्ठभूमि में
देख
उस आकाशगंगा की
चमकती तस्वीर
अनायास ही
हुआ
बहुत दुःख,

लगा
जैसे
हो रहा है
वहाँ
कोई जश्न
और नहीं हूँ मैं!

वही

हिंदी में लूँ
नाम उसका
या अरबी में,
वही है वो,

कपड़े बदल लेता है बस,
नबीं वही है वो।

नाव

हैं हर तरफ़
रास्ते ही रास्ते
फिर क्यों
या रब!
चौराहे सा है दिल?

समन्दर में
चहूँ ओर
हज़ारों लहरों के ईशारे,
एक ही जगह
भटकती
ख़ाली नाव सा है दिल।

बाक़ी

सिर्फ़
साँसें नहीं हैं
बाक़ी का मैं
आ गया,

मेरा देश है
अगर ज़िंदा
तो मैं
कहाँ गया?

सफ़ा

बड़ा
उदास उदास सा है दिल,
इन दिनों
शोर में
सन्नाटे सा है दिल,

कर रहा है
क्या क्या
अपने फ़र्ज़ की तरह,
क़िस्मत की क़िताब से गुम
उखड़े सफ़े सा है दिल।

ऐम. ए.

न भी रहा ज़िंदा
दीक्षांत समारोह तक
तो मलाल नहीं,

रूह ले लेगी
आकर
अर्थशास्त्र की ऐम. ए. डिग्री,
उसी के लिए पढ़ा
97 की उम्र में
मैं!

बूँद

लम्हों से भारी
ज़िन्दगी
तू उठाएगा कैसे,
उठाये भी क्यूँ,

हर बूँद में है
सागर सारा,
पी इत्मिनान से यूँ।

मनःस्थिति

वो
नहीं थे
उस मनःस्थिति में
कि कुछ समझते,

समझते रहे
समझना
चाहते थे जो।

पिच्छे

आपणी सोच तों
इक कदम
पिच्छे
हो के चल्ल,

की सोचदी ए सोच
ज़रा सोच।

मजाल

जल्लाद
कर देवे
मना,
ताँ मौत दी
की मजाल,

तख़्ताँ
दे पावेयाँ 'च
तलवार दी
मुट्ठ नहीं।

सच झूठ

झूठ
दी पण्ड
कदों
साड़ेंगा?

सच दी
स्वाह मल
कदों
नहावेंगा?

Friday, April 22, 2016

याद

हाँ
मैं जाणदाँ
मेरे बच्चे
तूँ मैंनूँ
याद करदैं बहोत
ते प्यार वी,
पर मैंनूं
इंज न दस,

अख़बार 'च
न छपवा,
फ़ेसबुक ते
न पा,
दिलों याद कर
बरसी मना।

डिग्री

जेड़ा
थुक्क
तुसी
ऐत्थे
इंज
ए सुटेया,

वेखणा
किदरे
विच्चे
आपणी
डिग्री ताँ नहीं
सुट्ट दित्ती!

मोड़

कई मोड़ लिये
मौसम नें
शाम तक,

एक ही रास्ते में
उमंगों की
कई मंज़िलें
आईं।

Thursday, April 21, 2016

पछतावा

पछताते तो
वो भी हैं
जो कर लेते हैं
ख़ुदकुशी,

उन्हें
मगर
नहीं मिलता
वो दूसरा मौक़ा
जो आपको
मिला है!

Wednesday, April 20, 2016

बहस

कब तक कोई
अपनी
क़िस्मत से
लड़े?

क्यों न
बहस
ख़त्म करे,
उसकी
सुने!

Sunday, April 17, 2016

लाज

बाज़ार नें
कब किया
शर्मो लिहाज़
किसी का,

ख़रीद्दार नें ही
इंकार किया
तो विरासत की
लाज बची।

सन्नाटा

ओम्
बोलना नहीं था,
सुनना था,

रोम रोम में
दबा है
जो
युगों का सन्नाटा,
गूँज सुननी थी उसकी,
गूँजना नहीं था।

ख़ुशी

परिंदे
कुछ दिन
आकाश में
न उड़ें
तो बेहतर,

आज़ादी की ख़ुशी में
कुछ दिन
हवा में
फ़ायरिंग होगी!

स्पिरिट

उद्यमता की स्पिरिट का
ग़ज़ब है मंज़र,

खून भी
चूसते हैं अब
कोला की तरह।

माइलेज

सूखे की ज़द में
क्या है ग़रीब देह की
माइलेज
पूछो तो ज़रा
आंकड़ों के यक्षो!

सौ मि ग्रा खून में
लाती है
बारह मील दूर से
पन्द्रह लिटर पानी!

वर

नेकनियती
के उजड़ने,
बदनियती
के बसने का वर
इतिहास पर
महंगा पड़ा,

पाक रूहों को
हर ज़माने
बस्तियों से परे
रहना पड़ा।

आओ

भरमाँ पाखंडाँ जड़ता दी
गहरा गइइयाँ नें
मुड़
जडाँ,
तुसी फ़ेर आओ,

देह ना सही
सतगुर
शबद् आओ।

Saturday, April 16, 2016

ऊन

ख़्यालों, उमंगों, भावनाओं
की ऊन का गोला,
ये दुनिया,

कविताओं के स्वैटर
पहन पहन
इतराती
साँसों की गुड़ियाँ।

भाण्डा


कित्थे रेहा
हुण
गुरु दा द्वार,
ए ताँ
जिमीदारा
निवास हो गया,

क़ैद करण दी
फ़िराक़'च सी
आसमान नूँ कौली,
इक भाण्डा
लंगर दी ईमारतों
बाहर हो गया।

कूआँ

उतारते रहो
साथ साथ
सर तक पहुँचती
फूल मालायें
कन्धों से,

उभरने तो दो
पहचान को
चाटुकारिता के कूएँ से
कि दिखे भी तो
भीड़ को
कि कौन हो,
जो लक्ष्य भी है
आपका।

Thursday, April 14, 2016

उबाल

किंन्नियाँ
वसाखियाँ
दीवालियाँ
ते नवें साल
आये ते चले गए,

हुण करदाँ
हुण तों करदाँ
जोश दे
उबाल आये
ते डुल गए।

वजह

क्या
वजह होगी
कि वो
कभी
लड़खड़ाया नहीं,

सिवा इसके
कि रास्ते के पत्थरों नें
उसका साथ दिया!

जूस

कड़कती धूप में
पर्यटक थे कम
सो सारे दिन में
चार जमात पढ़े
भिखारी को मिले
एक दो कर के
बस बीस ही रूपये।

दिल किया उसका
कि भोजन के बजाये
आज जूस पीये,

दुकानदार से पूछी
जो पाउच की कीमत
तो कहा उसने -
बीस रूपये मात्र,

लौट गया भिखारी
खाने भोजन ही
सुन
अपने सर्वत्र को
मात्र।

Wednesday, April 13, 2016

सैंडविच

कई साल
असी
एही सोचदे रहे
कि साडी क्लास दा ओ मुण्डा
बड़ा मतलबी,हंकारी ते कंजूस सी,

वी साल बाद हुण पता लग्गा
ओ किसे नूँ आपणा सैंडविच नहीं सी देंदा
क्यों जो ओस दे घर
विच लाण वास्ते
ना मक्खण, ना सौस
ना जैम सी।

फ़िराक़

इक हत्थ
दी दूरी ते
रक्खण दी
फ़िराक़ 'च है
दुनिया,

आपणी
ज़रूरत अनुसार
तैनूं
खर्चण दे
ख़्याल 'च है
दुनिया।

लड़ी

टीस
दिल दी
न दब्बाँ
ताँ चंगा,

लड़ी
रुताँ दी
न रोकाँ
ताँ चंगा।

कनेडा

चलो
कनेडा
चल्लिए,

सत्
श्री
अकाल
दिलों
बोलिए।

ईमारतें

मुझे
अपने शहर की
ईमारतें
न दिखा,

उनके सायों में
दर्द की
मीनारें
न छुपा।

गिणती

बेशक़
शामल होये
पाकिस्तान दी
वायु सेना च
सोलह नवें
थंडर जेट,

पर
अजे वी ने
घट्ट,
उस गिणती तों
जो साडे वेड़े
ज़ंग दी
परवान चढ़े।

Tuesday, April 12, 2016

मुखड़ा

बड़ा
सोहणा ए
मुखड़ा
तेरी रूह दा,

अजे वी
सुच्चा ए
पाणी
तेरे वजूद दे
खू दा।

सद्दा

सद्दा
ना भेजेओ
मैं
आपे
आ जवाँगा,

किसे होर दा
पदम्
वखा के
कवता
आपणी
सुणा जावाँगा।

Sunday, April 10, 2016

बुढ़ापा

शुक्र है
अराजकता
की कहानी में
बुढ़ापा आया,

बड़ा
ना गवार गुज़रा
ज़माने की जवानी पे
इसका साया।

Friday, April 8, 2016

कौन

उम्मीद है
तेरे रंगमंच पर
अपना किरदार
निभाया
बखूबी मैंने,

अब
ये तो बता
कि मूलतः
कौन था मैं!

नग्न

काश
पहना होता
आपने
चरित्र,
यूँ
नग्न न दिखते,

कपड़ों का क्या है
सब पहनते हैं।

Thursday, April 7, 2016

असर

तेरी रूह को
आज
मैंने
एक जिस्म में
देखा,

शक़्ल
कोई और थी
पर तेरा
असर देखा!

Monday, April 4, 2016

बाक़ी

अरमानों की
अटकी हैं
न जाने
कितनी साँसें,

अभी तक
रूह में
जिस्म है बाक़ी।

Saturday, April 2, 2016

फ्रिज

फ्रिज दे करके
ही सी

पसीने पसीने,

किसे दे
ठण्डे पाणी दे ग्लास वास्ते
सी
पिट्ठ ते
चुक्की
लेजा रेहा।

जवाब

छोड़ जा
गर्भ से
अपने ये सवाल
मेरे ज़हन की
कोख़ में
इस सावन,

शायद
जाएँ मिल
इसी के प्रसव में
मुझे भी
मेरे पतझड़ों के
जवाब।

बात

तुझमें
नहीं
कोई
रूचि विशेष
मेरी,

वो जो
तेरी
बात है
सुना दे
फिर
ज़रा।

Friday, April 1, 2016

फिसलन

असफल हो
तो कोई
मुक्ति की
राह पकड़े,

सफलता की
फिसलन में
कोई
कैसे सम्भले!

आवश्यकता

है सख़्त
आवश्यकता
करें रक्षा
कुलीन आतताई
समाज की
बेक़ाबू आक्राँताओं से,

जब तक
जुटाये हिम्मत
भद्रलोक,
यदि।

लंगर

हुण कौण
लावे लंगर
शामशानां च,
जगा छकावे,

मोयाँ नूँ
बिठावे इको पंगत,
केड़ी अग्गे साड़े
पछाण मिटावे!

पहचान

रूह को
याद नहीं
जिस्म अपना,
खड़ी है
मोक्ष के द्वार
पहचान ढूँढती।