Wednesday, July 27, 2016

कप्तान

सानूँ पता नहीं सी
कि तुसी
सिद्धू हो,

असीं ताँ
समझदे सी
तुसी
कप्तान हो!

खू

तेरे
भम्बड़ भूसेयाँ च
मैं कमली
हो जाणा,

तू जा
खू च,
दुनिया!
मैं ताँ
नहरो नहर
आणा।

Monday, July 25, 2016

देर

आपके
मोक्ष के लक्षण
आरम्भ से थे,

आप
इंतज़ार में थे
सो देर लगी।

Thursday, July 21, 2016

कहाँ कहाँ

तेरे दस्तख़त हैं
कहाँ कहाँ,
कायनात को छेड़ा है तुमने
कहाँ कहाँ,

अब मिट्टी भी हो जाओ
तो क्या,
ज़मीन को पहले सा कर पाओगे
कहाँ कहाँ,

मेरी मान
ज़िन्दगी में इतना संजीदा न हो,
किस्मत ए यार से लड़ेगा
कहाँ कहाँ,

माना कि तेरे माज़ी के हैं
ज़ख्म हज़ार,
नए फूलों को खिलने से रोकेगा
कहाँ कहाँ,

जो करना है कर ले
इन साँसों से,
बाद में बहती हवाओं से करेगा इल्तजा
कहाँ कहाँ,

चल जा कर
बचा कोई ज़िन्दगी,
ख़ून ए पाक़ से खेल कर
नहायेगा कहाँ कहाँ।

शक़

बिना ईंधन के
घूमते हैं
कैसे
ये धरती
ये चाँद
ये सितारे!

अब तो
पूरा शक़ है मुझे
कि सपना देखता हूँ मैं,
मेरा ज़ोर है
लग रहा।

शर्त

एक छत है
मेरे और आसमान के बीच,

हटने को है
तैयार
मगर शर्त ये है
कि दीवारों से निकलूँ!

रास्ते

नहीं दिखते
जहाँ रास्ते
होते वहाँ भी हैं,

मंज़िलें
ब्याह लेती हैं जो आँखें
शेष रास्ते
उनसे
छुपा लेती हैं!

सोच

किन्ना
सोचदैं
चंगे कम्म नूँ
सेयाणेया!

कदे
माड़े परतावेयाँ नूँ वी
करवाइये
उडीक?

Wednesday, July 20, 2016

मुक्त

एक
"वाह" कह कर
वो
अपनी ज़िम्मेदारी से
मुक्त हुए,

एक
"आह"
आज फिर
ठगी सी
रह गई।

ज़िंदा

देख
अभी तक
ज़िंदा है तू,

कब का
मर चुका।

राक्षस

मौत को
यूँ
राक्षस न बना,

लोरी सी है
चूम के
सुलाती है!

चिंता

न रहे
हुण
ओ मुग़ल
न तुर्क,
ते ना हुण
ओ अफ़ग़ानी रहे,

सरहदाँ नूँ
हुण ए
सिर्फ़
एस तरफ़ दी
चिंता,
ऐना पंजाबियाँ तों
पंजाब बचाओण लई
ओ पंजाबी ना रहे!

लावा

हुण
एस तो हेठाँ
पाणी नहीं
लावा निकलेगा,

परत जा
किसान वीरा,
ज़मीन दे
सवालाँ दा जवाब
ज़मीन ते ही
मिलेगा!

स्नान

मत करो
यूँ
ज्ञान का स्नान,
करवाओ
अपितु
मस्तिष्क की
खुजली का
ईलाज पहले,

पुनः पुनः
डालते रहोगे
अन्यथा
वजूद पर
मूढ़ता की मिट्टी,
ऐ गजराज!

दुआ

उठा तो दूँ
आपकी समस्या
के समाधान
की दुआ में
अपने
बेबस
बेचैन
झिझकते हाथ,

पहले
मगर
समस्या के
आपको एहसास बाबत
मेरी मन्नत तो
क़ुबूल हो!

टाँग

आपकी
टाँग थी,
जहाँ
चल रहा था मैं,

मेरे
पैरों से नहीं
ज़हन से
अड़ रही थी।

पता

ज़रूर
मान लेता
आपको
ख़ुदा
गर उससे
मैं
मिला न होता,

आप सा
ही था
मगर
उसे
पता न था।

वक़्त

तेरे
बिखरने में
वक़्त है
अभी...

तुझे
बद्दुआ देने वाला
फिर
सोच में है
अभी...

Tuesday, July 19, 2016

गूगल

गूगल
से पूछ लूँगा,
आपका
दम्भ
कौन सहे,

एक की सौ
बताता है वो,
सुनाता नहीं है।

बुक्कल

बद्दलाँ दी बुक्कल च
ताँ होवणगे
बोतलाँ दे पाणियाँ दे
ख़ौरे
किन्ने दरेया,

जिमीदारा
धरती माँ दे
खाली सीने ते
तू ताँ
अन्ने वा
इंज ट्यूबवैल न चला!

एहद

डेमोक्रेसी का
ये एहद
बड़ा ग़मगीन है,

लूट के
तख़्त के एवज़
लूटने की इजाज़त
बड़ी संगीन है।

वादा

न मैं
करूँगा तारीफ़
न माँगूंगा
माफ़ी,
और न ही
अपेक्षा करूँगा,

करता हूँ
मगर वादा
कि जुडूंगा
ईमानदारी से
बनकर
कटी कलम
तुम टहनी से
देने मौका
फिर उग आने का
हमारी
साँझी
नसें।

Friday, July 15, 2016

खाते

छड्ड मीआँ
मुनाफ़ेयाँ दियाँ गल्लाँ,
हिसाब रहण दे,

लेखेयाँ दे
खातेयाँ नूँ समझ,
खातेयाँ च
लिखियाँ नूँ
रहण दे।

Saturday, July 9, 2016

विलुप्त

गिद्धों की
प्रजातियाँ
अब
विलुप्त
शायद
न हों,

हज़ारों
कैम्पों में
कूड़ा बीन
जीनें को हैं
निरंतर उमड़ रहे
उजड़े
रेफ़्यूजी लाखों।

ईद

मुहर्रम से पहले
ये ईद कैसी,

लड़ मरना ही है
तो ये विराम क्यों?

खिड़की

खिड़की भर
समुद्र थे
उन पाँच सितारा
कमरों में,

फिर क्यों
तड़पते थे
मछलियों से
वो लोग
दीवारों के
समंदर में!

राहें

तो क्या
जो इस मन्ज़िल से
लौटने की राहें
हज़ार हैं,

अंजाम ए आगाज़ की
अब तलब किसे
आगाज़ ए अंजाम की जब
बाहें हज़ार हैं।

चीख

गूँगियाँ
चीखदियाँ नें
वेखदेयाँ सार,

खौरै दीवार ते
ओ नें टंगियाँ
या मैं!

अमीर

सब कुछ
लुटा देने वाले
फ़क़ीर हैं हम,

शहंशाहों के
शहंशाह हैं,
इत्मिनान से यूँ
अमीर हैं हम!

हुनर

गर अभी भी है
आप में
वही
माँगने का
हुनर,

हाथ बढ़ा देने में
अब भी
नादाँ हैं हम।

Monday, July 4, 2016

ताले

कहाँ मानती है ज़िन्दगी
उम्मीदों पे ताले!

रुकी साँसों
की दरारों में
उग आती है
धड़कन बनके।

Sunday, July 3, 2016

गाँठें

शब्दों की गाँठें
क्या खूब लगाते हो,

देह के सबक के लिए
बे क़सूर रूह
फंसाते हो।

भाषा

भाषा
सही सीखी होती
तो आज
यूँ
सड़क पर न होते,

बिना दुश्मनी के
कोई क्यूँ लगाता
ढाबे में आग!
गर
"तुरन्त चाहिए मसालची"
की जगह
"मशालची" न लिखते!

माँ

माँ
बहुत स्वादिष्ट थी
आपके हाथ की बनी
दाल
सब्जी
कढ़ी
और चने भी!

आपके
मन्दिर का
प्राँगण भी
आपकी गोद की तरह था
सुकून से भरा।

अलविदा

गया तो था मैं
किसी को
कहने
अलविदा,

शमशान से लौटा
मगर
"जल्द मिलूँगा"
कह के!

सुबह

एक रात
ऐसी
सो के उठ
कि सुबह
आसमानी हो,

जिस्म हो
रूह रूह,
रूह
जिस्मानी हो।

Friday, July 1, 2016

सचखण्ड

किन्नी कोल नें
सचखण्ड दे,
हुण,
तनखैय्या,

पक्कियाँ शक्लाँ
दे पिच्छे
कच्चे किन्ने।

असीस

तेरी दित्ती
असीस
ताँ नहीं
तेरी हाय
ज़रूर लग्गी मैनूँ,

फेर सोचदाँ
जद नहीं लग्गी असीस
किवें लग सकदी
हाय किसेनूँ।