Wednesday, August 31, 2016

कुट्टी

इधर
कुछ दिनों से
कविता की
कुट्टी है
मुझसे,

कलम की
टॉफ़ी दिखा
जब भी बुलाता हूँ उसे,
चुप्पी के गाल फुला
शब्दों की बाहें लपेट
मेरे दिल के कोने में
बेटी सी
बैठी रहती है रूठी।

Friday, August 26, 2016

एम्बुलेंस

108 नहीं ताँ
4 पैराँ दी एम्बुलेंस ही सही
शमशान दे आख़िरी अस्पताल तइँ,

दो मेरे मोडे ते
दो क़िस्मत दे सीने,

ऐ वतन
मेरे देशवासियाँ नूँ
कुज ना कहीं!

Thursday, August 25, 2016

यक़ीन

कौन करेगा,
आईने!
तेरे इल्ज़ामों पे यक़ीन!

यहाँ हर कोई
संवारता है
मुखौटा
दीवारों के पीछे।

Wednesday, August 24, 2016

इम्तेहान

इम्तेहान लेकर
गुज़र गईं
घड़ियाँ,

घबराये
किनारे
उस पार
रह गए!

Monday, August 15, 2016

आज़ाद

चाहता तो है
पर चाहता नहीं है,

खुला है जब पिंजरा
क्यों आज़ाद नहीं है!

Friday, August 5, 2016

जन्म

कब्रों पे
लगा दिये
पेड़ हमने,

गर्भ के
कणों का
पुनः
जन्म हुआ।

आलोचना

आलोचना की निगाह से
तासीर छूट गयी,
देह हो गई छलनी
रूह छूट गयी।

प्रतिध्वनि

वो कविताएँ
जो लिखूँगा
उस पार
कितनी हसीन होंगी,

बिना काग़ज़
कलम
आवाज़
रूहों के खुले सभागार में
गूँजेगी उनकी
ख़ामोश प्रतिध्वनि,

जिस्मों की धरती
भले
तब भी
अनजान होगी।

मदद

उफनते दरिया में
डुबो कर ही
नाख़ुदा ने
दम लिया,

मैं कहता रहा
मैं खुश हूँ
इस ओर,
मदद की ज़िद में
उसने एक न सुनी।

हाथ

अब
हम
अक्सर
हाथ जोड़
नमस्कार ही करते हैं,

जबसे
देखा है हमने
कई हाथ मिलाने वाले
कम ही धोते हैं।

कमाई

किसी ने धन
किसी ने पाप कमाया,

चित्रगुप्त की नौकरी में
यमराज नें
क्या नाम कमाया!

ज़रूरी

आपका
दुनिया में होना
ज़रूरी था
बहुत,

लाज़िम था
कि क़ायनात हो
मुकम्मल।

Thursday, August 4, 2016

रसगुल्ले

हिंदी की चाशनी में डूबे
डोरेमॉन नोबिता शिज़ूका जियान के रसगुल्ले
सरहद पार करते हैं जब उर्दू पश्तो की नन्हीं ज़बानों को तर,

कड़वाहट के अभिभावकों को सताता है
प्रेम की डायबटीज़ का मर्ज़,

मिठाईयों पर माँगते हैं पाबन्दियाँ
सताता है अगली नस्लों के सीधा सोचने का डर।

किश्त

अपनी इस ख़ता की क़ीमत
बस इतनी न समझ, रुक जा,

पहली किश्त है ये
ता उम्र चलेगी।

Monday, August 1, 2016

मन्दिर

घण्टियाँ ही घण्टियाँ
होंगी
यक़ीनन
खुले प्राँगण सी
इस देह में,

गूँजती है
मन्दिर सी,
जब भी चलती है
साँसों की हवा!