वो कविताएँ जो लिखूँगा उस पार कितनी हसीन होंगी,
बिना काग़ज़ कलम आवाज़ रूहों के खुले सभागार में गूँजेगी उनकी ख़ामोश प्रतिध्वनि,
जिस्मों की धरती भले तब भी अनजान होगी।
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