ये सारी दुनिया कहीं एक स्केच ही तो नहीं,
नासमझ पछतावे फैली स्याही, और भय मिटाने की रबड़ तो नहीं,
किसके हाथ है पेंसिल दिखे तो, कहीं मैं भी तो लकीरों में एक लकीर तो नहीं!
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