अपने अंदर के किसी को आज मारूँ, अपने अंदर के किसी को आज आज़ाद करूँ,
अपने अंदर के किसी की भटकन भरी तलाश का करूँ अंत,
कर सरयू किनारे उसी घर का रुख़, सुक़ून के बनवास का शुभारम्भ करूँ।
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