Sunday, October 16, 2016

बीहड़

क्यों बजाते हो
यूँ अटूट लय में
सुनसान बीहड़ की
इन सड़कों पर
ढोल घण्टियाँ
यूँ चलते चलते,
कौन देखता सुनता है
यहाँ!
-पूछा मैंने
नंगे पैरों की कन्धों से,

अजब तेज वाले
पसीने से तर बतर
वो मीठे
पके
कोमल चेहरे
मुस्कुराये
और बोले-

जानते हैं आप
किसे हैं उठाये
पालकी में
हमारे वजूद?

और
असंख्य हैं
जीव निर्जीव
जो रहे हैं
सुन देख
अपने प्रिय देव,
करते सिजदा
हर जगह...

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