Monday, October 17, 2016

ख़ज़ाना

बीनता हूँ
नदी का
सूखा किनारा
शायद कोई
ख़ज़ाना मिले,

दिखे कोई
पानी में उड़ता
क़ैद परिंदा,
कोई बदनसीब
डूबा
अफ़साना मिले।

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