तेरे दर से गर हूँ ग़ैरहाज़िर तो कहीं तो हाज़िर हूँ,
तू भी तो मुफ़लिसों के ख़ैरख़्वाह! कभी कहीं से हो ग़ैरहाज़िर कहीं हाज़री दे!
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