साँसों की तितलियाँ
Wednesday, December 21, 2016
रूख़सत
बड़े
एहतमादो एहतराम से
हम
हुए
महफ़िल से रूख़सत,
वहीं रहे
फिर
ताउम्र
पर वहाँ न रहे।
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