Sunday, January 31, 2016

जीवनियाँ

आख़िर तक
भुला कर
करती है इंतज़ार दुनिया
सुन्दर जीवनियों को
समेट
दीवारों पर सजा
टाँगने की,
जब तक रहे
बीच में
औरों से रहे...

बेताब

तूँ
कदम ताँ चुक बन्देया,

राह बेताब ए
वदण नूँ।

Saturday, January 30, 2016

गवाह

यक़ीनन नहीं हैं
आप
गवाह
गाँधी की हत्या के
इस बरस भी,
आपके वजूद की पीठ थी
जब सायरन बजा था।

सीमेंट

सीमेंट नाल ना पोत देओ
सारी धरती,

थोड़ा
घा वी
विच विच
रूह दे चरन नूँ
लोको!
रहण देओ...

ईश्वर

कितना खुश है
वो नन्हा
गर्भ की नींद के सपनों में मुस्कुराता,

भीतर के ब्रह्माण्ड का ईश्वर
बाहर की दुनिया का नवासा!

उम्मीदें

नहा कर
सड़क किनारे की धूल में,
संवार कर उंगलियों की कंघी से
उलझे लाचारी के बाल,
पहन किसी के उतारे अपने नवीन कपड़े,
उठ जाते हैं आजकल
इतनी सवेरे
क्यों
ये सारे माँगने वाले
दफ़्तरों के वक़्त से ठीक पहले
रास्तों में
ताकते कर्मचारियों की राहें?

यक़ीनन इन्हें भी हैं
बहुत उम्मीदें
दो फ़रवरी को होने वाली
सातवें वेतन आयोग की बैठक
के नतीजों की!

भोले

सूरज दी बत्ती
बुझा के जला के,
पलट छण्ड के
धरती दी ओही चादर रातों रात
सानू सवा के,

सवेरे कह दित्ता सवेर ने
कि "लवो नवाँ दिन,नवीं ज़िन्दगी,नवां मौका",

असीं वी
भोलेयाँ नें
सुण के मन्न लेया,
इक कोशिश ज़िन्दगी दी होर च
लग पये ख़ुशी ख़ुशी
फेर!

सवा लक्ख

मास्टरजी,
ओ कहावत
कि
जिउँदा लक्ख दा
ते मरया सवा लक्ख दा-

तुसी
हाथी बारे केहा सी
या सियासतदान बारे?

मैं भुल्ल गयाँ
जरा दुबारा ताँ दस्सो!

Thursday, January 28, 2016

अड़िये

अड़िये
दाल सब्जी नाल
भोरा अचार ताँ लेआ,

जे होवे मुक्केया
थल्ले अख़बार ताँ वछा,

जे ओ वी होवे
पहलाँ चट्टी
टीवी ताँ लगा,

न होवे जे बत्ती
मोहल्ले दी
कोई
ला के
गल्ल ताँ सुणा,

अड़िये
दाल सब्जी नाल
कोई अचार ताँ ख्वा।

Sunday, January 24, 2016

उम्मीदें

उम्मीदें
देख रहीं हैं
हर आते जाते को
इश्तहार बनके,

शायद
मिल जाए
वो गुमशुदा
जो कहीं
मौजूद है!

Saturday, January 23, 2016

लिफ़ाफ़े

साहाँ दी नेरी च
फड़फड़ान्दा ए जदों
किते वी
ज़िंदा ज़ुबान दा झंडा,
हिलदे ने किवें
दूर तक
कन्ना दे पड़दे,

तरंगाँ दे कबूतर
पुचा देंदे ने
कम्बणी दे खुल्ले लिफ़ाफ़ेयाँ च
दिल दियाँ गल्लाँ
बिना दिस्से!

Thursday, January 21, 2016

पतंगा

तूँ ताँ
पतंगेयाँ तो वी
वद्द ऐं बन्दया,

ठंडियाँ
बुज्जियाँ
सुत्तियाँ
मोमबत्तियाँ नूँ वी
बीते तूफ़ानाँ दी
फूकाँ नाल
मच्च फुक्कण नूँ
पेया जलौंदा ऐं!

विदेश

जदों वी
जाँदे ओ विदेश
होटल च सो के
परतण नूँ ताँ
जाँदे नीं,

फेर
ब्रह्माण्ड दे विदेश
घर बैठे
की करदे ओ!

मोबाइल

छुपाये हो
सर में
दुनिया की
वाहिद ऐसी बैटरी
जो
रात भर
अनप्लग करने से
होती है चार्ज,
ख़ाली हो
भरती है,

इतने कमाल हो
मोबाइल
तो कुछ गहरी
कुछ ऊँची
कुछ दूर की तो
पकड़ो,

जिस मक़्सद से बने हो
कोई बात तो करो!

Tuesday, January 19, 2016

घर

जिस छूटी आकाश गंगा
को देख
अमावस्या के आसमान
ग़मगीन है तू,
उसी के बीच
अपने उड़ते घर में तो है
निराशा कैसी!

Sunday, January 17, 2016

नमाज़

मत दी
चढ़ी धुप्प विच
चक्क के सिर ते हाओमें दा सूरज
ऐ कित्थे
विच विचाले
रुक गया ए
उमर दी शामे
मेरी होश दा समा,

थोड़े चिर नूँ रुकदा,
पता ताँ चलदा
किद्दर ए मग़रिब,
सच्ची नमाज़ ताँ पड़दा।

पक्षी

प्रवासी पक्षियों संग
अब
उड़ जाता है
दिल
इस शहर से
संकीर्णता की सर्दियों में,

कभी लौटती है जो
खुली धूप
तो याद सा
आता है।

क़ुसूर

आसमान का
क्या क़ुसूर
कि वो
काश्मीर का है,

गोया
उसी
ज़मीन का था
किसके
नसीब का है!

Friday, January 15, 2016

श्रद्धाँजलि

आज फिर
मना न किया
नेताजी की
तस्वीर नें,

आज फिर
देखो
किसने दी
जलसे में
श्रद्धाँजलि
उन्हें!

लोहड़ी

ए की
कडदे ओ
सौ
पंज सौ
हजार
जेब चों,

कोई
प्यार दी
पंजी
दस्सी
चवान्नी
अठान्नी
देवो
ताँ लोहड़ी लग्गे!

Tuesday, January 12, 2016

दर्शन

माँ
क्यों हो खड़ी
बाहर
औरतों की कतार में
माँगते अनुमति
स्त्रियों के प्रवेश की
मन्दिर में
करने
आप ही के
दर्शन?

Monday, January 11, 2016

बदल

गुज़र गया है बहुत वक़्त
तुझे एहसास हो न हो,

बहुत बदल गया है तू
तुझे एहसास हो न हो।

Friday, January 8, 2016

कदे

हंजू
कदे
गिर वी
पेया करो,

दुनिया नूँ
जापदा ए
कुज होर,
कदे
दिस वी पेया करो।

ज़िद

एक ही दिन में
सारी ज़िन्दगी
जीने की
ज़िद न कर,

समन्दर में लहरा
कुछ दिन,
पी जाने की
ज़िद न कर।

Wednesday, January 6, 2016

पकड़

यही सोचकर
इन हाथों से मैं
वस्तुतः
कुछ नहीं
पकड़ता,

इस
पकड़न पकड़ाई में
कहीं ज़िन्दगी
छूट न जाये!

बरस

एक अलग ही
मौसम सा
होता है
हर दिन,

चार रोज़ में
लगता है
बरस गुज़रा।

कसर

छोटी छोटी खुशियों ने मुझे
ज़िंदा रखा,

बड़े बड़े अरमानों नें कहाँ
कसर थी छोड़ी!

अभी

करता जा
मेन्टेन
अपनी ज़िंदगी
साथ साथ,

पुरानी होकर भी
अभी
बहुत चलेगी!

दूरी

अब जानता हूँ
मेरे कर्मस्थल से
मेरे घर की दूरी,
आज नापी मैंने,

रहरास के
शुरू से
है
आख़ीर तक!

पीछे

हाँ पीछे हूँ
वक़्त से
जानता हूँ,

वक़्त
मगर
अच्छा गुज़रा
सो इत्मिनान से हूँ!

पहचान

है तू
यहीं कहीं
जानता हूँ मैं,

अपने सा
न दिखे
तो पहचानूँ तुझे!

लकीर

मार आज की लकीर
ज़िन्दगी के सफ़े पर
काट दे,

बीते को
दूर से कर आदाब,
अगले को
नज़र ए अंदाज़ दे!

शान्ति

गुर्दे की ख़ारिश नें
कलेजे में चैन न आने दिया,

दिल को शान्ति तब आई
जब दीमाग ने जवाब दिया!

एक

मुखौटे के पीछे
चेहरा तो लगा, मानव!

उत्सव को
रोज़ तो बना, मानव!

दोनों को
आहिस्ता, पर यक़ीनन
एक
तो बना, मानव!

रफ़्तार

उसी रफ़्तार से
गई है
एम्बुलैंस
जिस रफ़्तार से
जाता था तू,

यक़ीनन
होगा बहुत ख़ुश
इस बात पर भी,
अगर
भीतर
ज़िंदा होगा!

क्लोज़ अप

खिंचवाता है
कोई
अपने चेहरे का
क्लोज़ अप
बार बार
क्यों!

ढूँढ़ता है
ख़ुद को
या ख़ुदा को?

Monday, January 4, 2016

प्रमोशन

क्या करेंगे
आप
प्रमोशन लेकर,

ज़हर ही तो
फैलायेंगे
सिस्टम में
अगली प्रमोशन के लिए
अगली प्रमोशन तक!

Sunday, January 3, 2016

इच्छा

करूँ
तेरी आखिरी इच्छा पूरी
सोचता हूँ,

है तू
साहिल ए मर्ग
अब
ऐ दुनिया
इत्तला ओ इल्म है मुझे।

चाह

माँगता था कहाँ
हर सवाल
जवाब,

कुछ
इल्तजाएं थीं
सिर्फ़ चाहती थीं
तवज्जो।

शह

जब हुआ एहसास
कि सहनी पड़ेगी
तो सह ली,

जब तक थी
शह
दिलासे की,
रुदाली रही!

तस्वीर

तेईस करोड़ प्रकाश वर्ष दूर
दो आकाश गंगाओं के मिलन की
तस्वीर
तूने
हब्बल
ली भी तो कब,

तेईस करोड़ वर्ष
बीत जाने के बाद!

अब होंगी?
कहाँ?
कैसी?

Saturday, January 2, 2016

रास्ते

खुशियाँ ढूँढ़ती हैं
रास्ते
ग़मगीन होने के,

कहाँ
आती है रास
खुशनसीबी
उन्हें
तमीज़ से!

सन्नाटा

अकेले
सन्नाटे में
चलाते समय कार
क्यों लगा मुझे
कि स्टीरियो
ऑन था?

किससे
कर रहा था मैं बातें
कहाँ मश्गूल था!

Friday, January 1, 2016

कमीं

हार्ट अटैक
डाइबीटीज़
कैंसर
होता नहीं क्यों
मुफ़लिसों को,

किस बात की
कमीं है उन्हें
कि ग़ालिबन
सेहत से हैं!

ख़बर

मसरूफ़ है दुनिया
ख़बरों में
तू दिखे कैसे,

ख़बर बनके आये
तो पढ़े तुझे!

होश

लाइफ़ सप्पोर्ट सिस्टम
लैस
स्पेस सूट है
तेरा जिस्म,
रूह एस्ट्रोनॉट है,

सौरमण्डल में है तू
किसी प्रयोजन से
होश कर!

मैं

मेरा वक़ील था
मुंसिफ़ न था,

मैं था
मेरा दोस्त न था!

बिम्ब

उन आँखों को
देख के बता
हिन्दू या मुसलमाँ?

उसकी पुतलियों में
तेरा है बिम्ब,
निष्पक्ष बता!

ऊँट

ऊँठ सी ही
टाँगें थी
उसके खानाबदोश की,

लम्बी
सख़्त
शुष्क
नंगी,
उठाये
अपने अस्तित्व का
सारा आकाश
थोड़े से चारे और पानी के एवज़!

अय्यारी

दबे पाँव
मेरी आँखों के सामने
बदलता रहा
वक़्त
और मुझे
पता न चला,

यूँ
अय्यारी
न करता
तो कहाँ
बदलने देता!

पीठ

उठाये था सारा आकाश
पीठ पर
वो इंसान,

जब तक नहीं देखा
किसी ने
उसके पैरों तले
क्या था!

गंगा

भव सागर में न डूबे
गंगा में डूबे,

पाश में न हुए क़ैद
मोक्ष में हुए!

कर्फ्यू

ख़ुद ही
पकड़ा देते हो
बेक़द्रों को
भोलेपन में
डण्डा
ख़ुद ही पर
चलाने को,

सूचना का कर्फ्यू
कभी असहयोग आंदोलन सा
भी तो
लगाया करो!

मुर्गियाँ

मुर्गियों
की तरह हैं
कविताएँ,
कहाँ करती हैं यकीन
आती हैं पकड़ में
गर भागो पीछे!

बस
ज़हन के हाथ
रख खुले
गर चुप चाप चलो
राह अपनी
तो आती हैं पास
ख़ुद ब ख़ुद
उठा कलम!