Tuesday, May 31, 2016

शिकवा

वो जो
एक शिकवा था हमें
आपकी
बेरुख़ी से,

आपके
ख़ुद ही पर
देखे जो
तसदीहे
तो पस-ए-मन्ज़र आया!

ज्ञान

ज्ञान
कहीं अहम्
बन न जाए,

उस
दरकिनार
ज़र्रे में
कहीं दुनिया
खो न जाये।

बड़ी

दुनिया जितनी
बड़ी है
दुनिया
तो क्या?

ज़र्रा ज़र्रा
क़ैद है
ज़र्रे ज़र्रे में!

पहले

बदले
दृष्टिकोण से
गर
इतनी मुख़्तलिफ़ थी
दुनिया,
क्यों न
दुनिया को
पहले
बदला हमनें!

इस बार

चलो
अन्जाम से
करते हैं
इस बार
आग़ाज़,

भूल कर
ख़ुद को
ख़ुद ही से
हैं मिलते!

सिजदा

हम
जिसे
करते रहे
ताउम्र
सिजदा,

इंतज़ार में रहा
लगाने
वो हमको गले।

Monday, May 30, 2016

यहीं

जा परिंदे
उड़ के आ,

मुझे
आसमाँ समझ
यहीं हूँ मैं।

(a parent to child)

उदास

एक फूल के मुरझाने
बन फल
पक
गिर जाने पे
उदास था मैं,

न देख सका
आँसुओं के काँच से
वो बाग़
जो उनके
बीजों में थे!

Sunday, May 29, 2016

नामुमकिन

आप का
चला जाना
मुमकिन न था,

होते जो
सिर्फ़ जिस्म
तो बात और थी।

मिलन

कहाँ कहाँ से
लौटते हैं
सागर
अपने
पर्बतों से मिलने!

बहते हैं
अभी तक
जहाँ
प्रेम के
नदियाँ नाले।

समझते थे

बर्गला कर
तूने
बहुत मारा,
ऐ ज़िन्दगी,

जब कि
तू वहाँ थी
जहाँ समझते थे
मौत थी।

कैसे

लफ़्ज़ों की मानिंद
भी न रिसे,
तो कैसे?

खून
कलम का भी उबलता है,
आपका
जैसे!

अदा

फ़ना होने की अदा
सिखाती है
हमें,

मोम के आँसू बहा
हर शब्
परवानों की
शम्मे फ़िरोज़ा
दिखाती है हमें।

हर बार

न जाने
क्या मिटाती है
फिर
पत्थरों से
बदलती हवा,

उन्हें ही
क्यों मिली है
हर बार
वक़्त बदलनें की
सज़ा।

हर्फ़

न कलम
न तेरे हाथ,
बस हर्फ़ दिखते हैं,

तेरे
कोरे काग़ज़ पर
मुझे
बड़े मर्म दिखते हैं।

सोच

मत सोच
बिन
मुझे बताये,
मैं
समझता हूँ तुम्हें
बिन सुने,

नहीं जानता
क्या हो
असल में
सोचते तुम,
बता दूँ
मगर
तुम्हें,
बहुत सोचता हूँ मैं।

तड़प

अब
कह भी दे
जो सोचता है तू

मेरी तड़प को समझ
यही सोचता हूँ मैं।

खिड़कियाँ

अनगिनत
खिड़कियाँ थी
भीतर
जो खुलती थीं
किस किस
स्वर्ग में,

बस
उसी को थीं
मयस्सर
जिसने
उन तक का
खोला
वो दरवाज़ा
जो था बन्द
और माँगता था
इच्छा की कोशिश
का धक्का।

Saturday, May 28, 2016

फ़्लैट

इक किचन
दो बेडरूम
इक हॉल तों इलावा
ज़रूर रखेओ
आपणे आसमानी फ़्लैट 'च
इक वेहड़ा
ते नीचे छुपा ओहदे
आपणे वेचे खेताँ दी
मटियाली
कुज याद निग्गी,

शायद
विक जावे
तोहाडे जाण तक
इस तरक्की याफ़्ता
शहर दे प्लाटाँ 'च
तोहानू
दब्बण दी मिट्टी!

स्पर्श

बेऔलाद
समन्दर को
आज
अनायास
क़रार आया,

एक
काग़ज़ सी कश्ती
को देख
अपनी पीठ पर,
दूर किसी कूहल किनारे बैठे
अपने से नाती का
स्पर्श आया।

Wednesday, May 25, 2016

कौन सा

कौन सा
बच्चा है
उस भटकते
बूढ़े में?

शायद
मिल जाये
आज
गुमशुदा कोई!

जब

बख़्श दिया
ज़िन्दगी नें
जब
सुकून तुझे,

और
कौन सा
ख़ज़ाना
कुबेर का
अब
दरकार है तुझे?

जल्दी

न जाने
किस जल्दी में है
मुसाफ़िर,

है तो
ग़लत रस्ते पर
ग़लत मन्ज़िल की!

अब भी

क्या अब भी
तू
जीने को
तैयार है?

खुशनसीबी को
आज भी
तेरी हाँ का
इंतज़ार है!

फूल

फूल ही फूल
बिखरे हैं
पगडंडियों में
क्यारियों की तरह,

स्कूल के
बागीचे में
हुई है
छुट्टी,
घर लौटते हैं
बच्चे।

Tuesday, May 24, 2016

ज़ुबान

सोचता हूँ
किस ज़ुबान में सोचते हैं
बेज़ुबान जीव!

कैसे
पहचानते हैं
भावनायें
अक्षरों के बिना!

Friday, May 20, 2016

दुआ

वसेया रवे

महकमा
एहो दुआ
मेरी,

ख़ौरे
किन्ने
परिवार नें
वसदे
ओहदे सिर ते,
दलालाँ दे।

इच्छा

बता
क्या
सुनने की
इच्छा है
तेरी,

यूँ ही
कहते रहने से
अब तौबा है
मेरी।

अच्छा

निःवस्त्र
कैसा है तू?

धर्म
अर्थ
समाज के
चोगों में तो
अच्छा है।

Thursday, May 19, 2016

कोण

किसी
कोण विशेष से
हर विषय को देखना
आरामदायक था
उनके लिए,

पतझड़ के अंधे
सम्मोहित भयभीत मन
की आँखों से
वही जड़ मन्ज़र
हर बार
देखते रहे।

Tuesday, May 17, 2016

ज़रूरी

तू बता
तेरे बन्दे के लिए
क्या ज़रूरी है,

मेरे रहबर
मेरी आरज़ू न पूछ
फ़क़त तेरी रहमत
ज़रूरी है।

Monday, May 16, 2016

कहानी

इतना ही
बहुत है
कि मेरी कहानी
है अभी बाक़ी,

अंतहीन
अंत
आ चुके
शुरू से अब तक
कोई बीच की
कुछ बात है
बाक़ी।

Sunday, May 15, 2016

वक़्त

ऐ वक़्त
तू मेरे आसपास
कितना
बह गया!

तू हो गया
समन्दर,
मैं जज़ीरा
रह गया।

Saturday, May 14, 2016

फिर

लो
मैं फिर
आ गया,

अपना
बच्चा बनके।

जादू

लो
जाल का जादू
फिर शुरू है,

वहीं है
जहाँ
नहीं है।

ख़बर

यूँ
सुनाना
बुरी ख़बर,
कभी हो तो,
कि बुरी न लगे,

शाँत रहे चित्त,
बस समझे,
हैरान न लगे।

काश

काश
डले होते
मृत देह पर
अंतिम पथ में,
सादर विसर्जित तो होते,

यूँ
चाटुकारिता के हाथों
दम्भ के गले
पड़,
बेरुख़ी से
यूँ उतार
कचरे संग
फेंके तो न जाते!

ज़िक्र

उनकी
गुफ़्तगू में
मेरा ज़िक्र
है कि नहीं?

मैं नहीं
न सही,
मेरा वजूद
है कि नहीं?

Friday, May 13, 2016

बेशक़

छाती पे ले
वक़्त की मार
सह जा,

चाहे टपक
चाहे रिस,
थोड़ा रुक भी बेशक़,
पर बह जा।

Thursday, May 12, 2016

शहर

कितना शालीन है
आपका
ये शानदार शहर,
गगनचुम्बी
अट्टालिकाओं से भरा,

दूर ही से
ईशारों में
देता है
बता,
कि कहाँ कहाँ है
जन साधारण का
बिना कारोबार के
प्रवेश
निषेध।

कर्ज़

रहा
कर्ज़
तेरा
ये दावतनामा
मुझ पर,

कुछ इम्तिहानों से
गुज़र लूँ
तेरी पनाहगाह
से पहले।

Tuesday, May 10, 2016

मुंडेर

कोयल हूँ
तेरे आमों पर
बैठ कुछ देर,
गा,
उड़ जाऊँगी,

याद करना
इनकी
मिठास में
मुझको,
मैं
तेरी ज़ुबाँ की मुंडेर
फिर आऊँगी।

तरस

न खा
मुझपे तरस
अपनी खुशनसीबी का,
ख़ुदा को
सलाम दे,
कर दुआ
दे मुझे
रही ख़ुमारी से निजाद,
तुझे होश दे।

Sunday, May 8, 2016

चट्टान

तलाश में हूँ
एक बहुत बड़ी
भारी
चट्टान सी
शान्ति की,
जो पड़े
मेरे
फड़फड़ाते
काग़ज़ के वजूद पर,
मेरी कहानी को
उड़ जाने से
बचाये।

Saturday, May 7, 2016

सुनहरी

जद
गुज़रे ज़माने दी
इक झलक वी ए
लक्खाँ दी,

कित्थे रोल तै
आपणा अज
तू बन्देया,
जेड़ी सुनहरी पन्न वी खोलाँ
ए कक्खाँ दी।

Friday, May 6, 2016

विराम

पारा चढ़ जाँदा
दुनिया दा
जदों वेखदी
प्रश्न या विस्मिक चिन,

हाओमें तिड़क जाँदी शायद,

पै जाँदा
जिवें
सप्प दी पूँछ ते
किसे अनसुखावणे सवाल दा
पैर!

हुण ताँ
गल कह के
चुप्पी दा
पूर्ण विराम ही
चंगा,
असर ज़रूरत मुताबिक़,
न कोई टकराव,
न पंगा।

महफ़िल

न मिसरा उठाना
न दाद देना आया,

तेरी सोहबत को
महफ़िल
कहूँ कैसे,
न दर्द मिला
न सुकून आया।

Thursday, May 5, 2016

होंठ

तेरे ये होंठ
जो होते
ज़हर के
प्याले,
क्यों न पीता मैं,

करते हैं
मगर
हर बार
वफ़ा का वादा,
डराते हैं
मुझे!

बूँद

कहीं
ऐसा न हो
कि लौटा दूँ
जीती हुई
दुनिया,

मेरे
समन्दर ओ ख़्याल की
एक बूँद
तो हो!

पछतावा

अपने
हर फैसले पर
ये पछतावा
कैसा?

ख़ुद ही भेज कर
किसी को,
उसके जाने की
दर्द का
छलावा कैसा?

खिड़की

उस खिड़की से
मुझे
हमेशा
कुछ न कुछ
मिला है,

कभी आसमान
कभी वादी ओ पहाड़
कभी सुकून
तो कभी
रास्ता मिला है!

किस लिए?

इन्सां
तू यहाँ
जीने आया है
या मरने?
जीने के लिए
मरने?
या
मरने के लिए
जीने?

मौत और ज़िन्दगी

"तेरे साये में
रहती हूँ,
देख ले"
मौत से
ज़िन्दगी बोली,

मौत मुस्कुराई,
पास आ
ज़िन्दगी के कान में
फुसफुसाई,
"मैं तेरे
भीतर रहती हूँ,
झाँक ले!"

Wednesday, May 4, 2016

दम

बजती है
भर दम
चूम होंठ,

बाँसुरी
वो थी
या
देह मेरी!

पाक

दूध के
धुले थे वो,
कीचड़ से दूर थे,

हर बात पर
देते थे
पाकीज़गी की
नसीहतें,
क्रान्ति से दूर थे।

सही

हर फ़ैसला
आख़िर में
सही
निकलेगा,

रात की
नई लम्बाई
'गर मंज़ूर हो
तुम्हें,

सूरज
किसी दिशा से तो
कभी
ज़रूर निकलेगा।

जंग

सुबह सुबह
आज फिर
वही जंग
जीती मैंने,

सूती कमीज़ पर
बरसा बरसा
फुहारें
बाहुबली बन
इस्त्री की
मैंने।

ग़म

हाँ
तू यक़ीनन
हो सकता था
पैदा
यूरोप
या अमरीका में,

जैसे कि
उतर सकता था
इथियोपिया
नॉर्थ कोरिया
अफ़ग़ानिस्तान
या ग्रीस के तट पर
डूबने समन्दर में
करते पलायन
सपरिवार
अँधेरे अँधेरे,

पर
पंजाब के खेत भी
कहाँ
जन्नत से कम हैं,
पीरों की रहमत है
जब
तेरे सर पे
किस बात का फिर
तुझे
ग़म है!

सेवा

किसने
किया राज,
किसने
सेवा,

खूब मिला
बादल ढकी
समझ को
हेर फेर का
मेवा।

वो लोग

पाई से धेला,
धेले से दमड़ी
दमड़ी से कौड़ी
हो गए,

वो लोग
जो पैदा हुए थे
इन्सां,
पैसा हो गए।

तो

इन्सां
तेरी
दी
मुश्किलों
चोटों
दर्दों से
मुझे क्या?

ख़ुदा
देगा
तो दिल पर
लूँगा।

Monday, May 2, 2016

सितम

कब तक
याद रखूँ
मैं
तेरे सितम,

क्यों न
ख़ुद पर
रहम करूँ,
तुझे
मुकम्मल
जाने दूँ।

कतार

किस किस को
सुधारेगा
ऐ दिल ए नादाँ,

यहाँ
बिगड़ने को
दुनिया
कतार में है!

छलावा

क़िस्मत से जो
मिलता रहा,
हम लेते रहे,

बिना छलावे के
मिल रहा है
इस इत्मिनान से...

कर्ण

कर्ण
जानता था
कि यकीनी है मौत
आज
कल
या कभी,
कवच कुण्डल हों
तो भी,

असहज दान का
मौका
मिलता है
क़िस्मत से,

सो उतारे,
दे दिए।

बहरहाल

हार कर
तुजुर्बे
से काम
चलाना पड़ा,

बहरहाल,
खुशामदीद खुशनसीबी,
देर आयद
दुरुस्त आयद।

Sunday, May 1, 2016

गंगा

केस नें
ए पेड़
धरती दे वजूद दे सिर,
सभाल लवो,

किवें
बन्नणगे
शिव
प्राण गंगा
जीवन दी
जटावाँ 'च,
बचा लवो।

गूँज

जैसे
मूक
बोलते नहीं यद्यपि,
तथापि गूँजते हैं
भीतर,

चीखती हैं
तुम्हारी
बेतरतीब
गूँगी ईमारतें,
करते
तुम्हारी पीड़ा बयान ।

सच्ची

अपने
दिल की
सुन,

बड़ी
सच्ची है
ये धुन।

ताबूत

ताबूत सी
पेटी में
लेटे थे आम,
बिछड़े बाग़ के,

पैग़ाम ए ज़मीं
ज़ुबाँ ए खाक़ तक
पहुँचाने,
क़ुर्बान ओ फ़र्ज़ थे
जाए मिट्टी के।

मजबूरी

हाँ
ठीक है
तू खाता पीता है
इसी से,
मजबूरी है
तेरी,

कभी बजाया भी कर
इसे
बाँसुरी की तरह!

होश

इन्सां को
अभी
वक़्त है
एहसास ए
मर्ज़ ओ मर्ग का,

होश
आने की
देर है,
दौड़ा
चला आएगा।

संजो

पशु पक्षियों नें
संजो कर
रखी है
पुरानी
दुनिया,

इन्सां गर
पछतायेगा
तो लौटा
देंगे।

दाद

हर किसी ने
बाद मुद्दत
ख़ुद से बात की,

बाँसुरी नें
क्या क्या बुलवाया
हर आह नें
दाद दी।

जलधारा

धुन
की जलधारा
भीतर
झरने सा
धो गई,

मैं
धुल गई,
मैं संवर गई।

मूक

समझती बोलती नहीं
कायनात,
मूक है,
कहते हैं कैसे
कहने वाले?

कैसे फिर
कह गई सब
बाँसुरी
मेरे मन की
कानों में मेरे।

आज

निकाल लेने दो
सीने में दबी
हर आवाज़ आज,

लोग समझेंगे
बाँसुरी है,
रो लेने दो मुझे
जी भर के आज।

राज़

कोई रोको
बाँसुरी को,
अब और
न बोले,

सखियाँ
समझ जायेंगी
मेरे दिल की बात,
राज़ न खोले।

आँसू

आँसू
सूख जाने के
बाद भी
घण्टों वो रोती रही,
बाँसुरी होगी
दम भरती रही।

आवाज़

तुमने
सूनेपन की
आवाज़
सुनी है कभी?

जंगल से
बिछुड़ी
बाँसुरी
फूँकी है कभी?

कोने

शुक्र है
सुकून के
कुछ कोने हैं
अभी
बाक़ी,

ज़माने के
दरो दीवार तो
कब के
ढह चुके।

पुत्त

अजे वी ए
किसे कोने जिऊँदा
गुज़रेया बुढ़ापा
वक़्त दा,

रोंदा
कदे
अरदासाँ करदा,
सोच हशर
जवान पुत्त जहे
अज्ज दे
हालाताँ दा।

पुत्त

अजे वी ए
किसे कोने जिऊँदा
गुज़रेया बुढ़ापा
वक़्त दा,

रोंदा
कदे
अरदासाँ करदा,
सोच हशर
जवान पुत्त जहे
अज्ज दे
हालाताँ दा।

जी

कित्थे रहिआँ
हुण
ओ डेओड़ियाँ
ओ मेहराबदार पुलियाँ
ओ बा अदब दरवाज़े
जेड़े आप अग्गे आ के
कहंदे सी
जी आयाँ नूँ,

हुण ताँ
रह गए बस
लोहे दे गेट
बन्द रहण नूँ।

बोलते पत्थर

कौन कहता है
कि हाथ पकड़
हर्फ़ ही बोलते हैं
लफ़्ज़ बनकर,

ईंट और पत्थर भी
जुड़ जुड़ कर
ज़माने लिखते हैं।

बोझ

किसने
कैसे उठाया
खुदाई का बोझ,
हुआ इसी से फैसला
की किस मज़हब का था।

हिस्से

तू रह अपनी मौज में
मुझे अपनी में रहने दे,

रख बा हक़, माज़ी, तू अपने पास
मेरे हिस्से सुकून ए मुस्तक़बिल रहने दे

रात

दीये
अपनी अपनी लौ में
जलते रहे,

कैसे कटी रात
सहमे जज़्बातों की
ये न पूछ।

इंतज़ार

किस रात की
गहरी वादी में गुम है
ऐ ज़माने तू,

क्या वाक़ई
किसी सुबह के
इंतज़ार में है,
दिल से पूछ!

ग़ुलाम

प्यार से कहेगी
तो चल दूँगा
साथ तेरे,

वरना कौन है
तेरे हुस्न का ग़ुलाम,
ऐ बेख़ुदी,
ख़ुद से पूछ।

सरोकार

उसकी ख़ुशबू से है
सरोकार
इन साँसों को,

मिल्कीयत किस नाम में
बाग़ ए फ़िरदौस की,
मुझे क्या
किसी और से पूछ।

साहिल

समझाते हैं मुझे
कि दर्द ए साहिल है
मेरे मर्ज़ की रवानी,

कोई मेरे
दिल ए बेताब
की तो सुने,
तू तो पूछ!

क़रार

है तमन्ना
हर रूह को
देखूँ सुकून में,

उस नज़ारे के
इंतज़ार ओ क़रार की
बेक़रारी तो पूछ।

लुत्फ़

कहाँ बताती है
होनी
होने से पहले,

जो हुआ
वो छोड़,
लुत्फ़ ए इंतज़ार ओ
अनहोनी तो पूछ

आरज़ू

किस देश से हूँ
क्या है
वेश मेरा,

मेरी हक़ीक़त
को छोड़,
रूह ए आज़ाद की
आरज़ू तो पूछ।

पूछ

मैं
किस सफ़र ए मौज में हूँ
ज़रा बूझ,

मेरा हाल न देख,
पते को छोड़
मन्ज़िल तो पूछ!