वो जो
एक शिकवा था हमें
आपकी
बेरुख़ी से,
आपके
ख़ुद ही पर
देखे जो
तसदीहे
तो पस-ए-मन्ज़र आया!
न जाने
क्या मिटाती है
फिर
पत्थरों से
बदलती हवा,
उन्हें ही
क्यों मिली है
हर बार
वक़्त बदलनें की
सज़ा।
मत सोच
बिन
मुझे बताये,
मैं
समझता हूँ तुम्हें
बिन सुने,
नहीं जानता
क्या हो
असल में
सोचते तुम,
बता दूँ
मगर
तुम्हें,
बहुत सोचता हूँ मैं।
अनगिनत
खिड़कियाँ थी
भीतर
जो खुलती थीं
किस किस
स्वर्ग में,
बस
उसी को थीं
मयस्सर
जिसने
उन तक का
खोला
वो दरवाज़ा
जो था बन्द
और माँगता था
इच्छा की कोशिश
का धक्का।
इक किचन
दो बेडरूम
इक हॉल तों इलावा
ज़रूर रखेओ
आपणे आसमानी फ़्लैट 'च
इक वेहड़ा
ते नीचे छुपा ओहदे
आपणे वेचे खेताँ दी
मटियाली
कुज याद निग्गी,
शायद
विक जावे
तोहाडे जाण तक
इस तरक्की याफ़्ता
शहर दे प्लाटाँ 'च
तोहानू
दब्बण दी मिट्टी!
बेऔलाद
समन्दर को
आज
अनायास
क़रार आया,
एक
काग़ज़ सी कश्ती
को देख
अपनी पीठ पर,
दूर किसी कूहल किनारे बैठे
अपने से नाती का
स्पर्श आया।
फूल ही फूल
बिखरे हैं
पगडंडियों में
क्यारियों की तरह,
स्कूल के
बागीचे में
हुई है
छुट्टी,
घर लौटते हैं
बच्चे।
किसी
कोण विशेष से
हर विषय को देखना
आरामदायक था
उनके लिए,
पतझड़ के अंधे
सम्मोहित भयभीत मन
की आँखों से
वही जड़ मन्ज़र
हर बार
देखते रहे।
इतना ही
बहुत है
कि मेरी कहानी
है अभी बाक़ी,
अंतहीन
अंत
आ चुके
शुरू से अब तक
कोई बीच की
कुछ बात है
बाक़ी।
काश
डले होते
मृत देह पर
अंतिम पथ में,
सादर विसर्जित तो होते,
यूँ
चाटुकारिता के हाथों
दम्भ के गले
पड़,
बेरुख़ी से
यूँ उतार
कचरे संग
फेंके तो न जाते!
तलाश में हूँ
एक बहुत बड़ी
भारी
चट्टान सी
शान्ति की,
जो पड़े
मेरे
फड़फड़ाते
काग़ज़ के वजूद पर,
मेरी कहानी को
उड़ जाने से
बचाये।
जद
गुज़रे ज़माने दी
इक झलक वी ए
लक्खाँ दी,
कित्थे रोल तै
आपणा अज
तू बन्देया,
जेड़ी सुनहरी पन्न वी खोलाँ
ए कक्खाँ दी।
पारा चढ़ जाँदा
दुनिया दा
जदों वेखदी
प्रश्न या विस्मिक चिन,
हाओमें तिड़क जाँदी शायद,
पै जाँदा
जिवें
सप्प दी पूँछ ते
किसे अनसुखावणे सवाल दा
पैर!
हुण ताँ
गल कह के
चुप्पी दा
पूर्ण विराम ही
चंगा,
असर ज़रूरत मुताबिक़,
न कोई टकराव,
न पंगा।
तेरे ये होंठ
जो होते
ज़हर के
प्याले,
क्यों न पीता मैं,
करते हैं
मगर
हर बार
वफ़ा का वादा,
डराते हैं
मुझे!
उस खिड़की से
मुझे
हमेशा
कुछ न कुछ
मिला है,
कभी आसमान
कभी वादी ओ पहाड़
कभी सुकून
तो कभी
रास्ता मिला है!
"तेरे साये में
रहती हूँ,
देख ले"
मौत से
ज़िन्दगी बोली,
मौत मुस्कुराई,
पास आ
ज़िन्दगी के कान में
फुसफुसाई,
"मैं तेरे
भीतर रहती हूँ,
झाँक ले!"
हर फ़ैसला
आख़िर में
सही
निकलेगा,
रात की
नई लम्बाई
'गर मंज़ूर हो
तुम्हें,
सूरज
किसी दिशा से तो
कभी
ज़रूर निकलेगा।
सुबह सुबह
आज फिर
वही जंग
जीती मैंने,
सूती कमीज़ पर
बरसा बरसा
फुहारें
बाहुबली बन
इस्त्री की
मैंने।
हाँ
तू यक़ीनन
हो सकता था
पैदा
यूरोप
या अमरीका में,
जैसे कि
उतर सकता था
इथियोपिया
नॉर्थ कोरिया
अफ़ग़ानिस्तान
या ग्रीस के तट पर
डूबने समन्दर में
करते पलायन
सपरिवार
अँधेरे अँधेरे,
पर
पंजाब के खेत भी
कहाँ
जन्नत से कम हैं,
पीरों की रहमत है
जब
तेरे सर पे
किस बात का फिर
तुझे
ग़म है!
कर्ण
जानता था
कि यकीनी है मौत
आज
कल
या कभी,
कवच कुण्डल हों
तो भी,
असहज दान का
मौका
मिलता है
क़िस्मत से,
सो उतारे,
दे दिए।
केस नें
ए पेड़
धरती दे वजूद दे सिर,
सभाल लवो,
किवें
बन्नणगे
शिव
प्राण गंगा
जीवन दी
जटावाँ 'च,
बचा लवो।
जैसे
मूक
बोलते नहीं यद्यपि,
तथापि गूँजते हैं
भीतर,
चीखती हैं
तुम्हारी
बेतरतीब
गूँगी ईमारतें,
करते
तुम्हारी पीड़ा बयान ।
ताबूत सी
पेटी में
लेटे थे आम,
बिछड़े बाग़ के,
पैग़ाम ए ज़मीं
ज़ुबाँ ए खाक़ तक
पहुँचाने,
क़ुर्बान ओ फ़र्ज़ थे
जाए मिट्टी के।
समझती बोलती नहीं
कायनात,
मूक है,
कहते हैं कैसे
कहने वाले?
कैसे फिर
कह गई सब
बाँसुरी
मेरे मन की
कानों में मेरे।
अजे वी ए
किसे कोने जिऊँदा
गुज़रेया बुढ़ापा
वक़्त दा,
रोंदा
कदे
अरदासाँ करदा,
सोच हशर
जवान पुत्त जहे
अज्ज दे
हालाताँ दा।
अजे वी ए
किसे कोने जिऊँदा
गुज़रेया बुढ़ापा
वक़्त दा,
रोंदा
कदे
अरदासाँ करदा,
सोच हशर
जवान पुत्त जहे
अज्ज दे
हालाताँ दा।
कित्थे रहिआँ
हुण
ओ डेओड़ियाँ
ओ मेहराबदार पुलियाँ
ओ बा अदब दरवाज़े
जेड़े आप अग्गे आ के
कहंदे सी
जी आयाँ नूँ,
हुण ताँ
रह गए बस
लोहे दे गेट
बन्द रहण नूँ।
कौन कहता है
कि हाथ पकड़
हर्फ़ ही बोलते हैं
लफ़्ज़ बनकर,
ईंट और पत्थर भी
जुड़ जुड़ कर
ज़माने लिखते हैं।
तू रह अपनी मौज में
मुझे अपनी में रहने दे,
रख बा हक़, माज़ी, तू अपने पास
मेरे हिस्से सुकून ए मुस्तक़बिल रहने दे
किस रात की
गहरी वादी में गुम है
ऐ ज़माने तू,
क्या वाक़ई
किसी सुबह के
इंतज़ार में है,
दिल से पूछ!
उसकी ख़ुशबू से है
सरोकार
इन साँसों को,
मिल्कीयत किस नाम में
बाग़ ए फ़िरदौस की,
मुझे क्या
किसी और से पूछ।
समझाते हैं मुझे
कि दर्द ए साहिल है
मेरे मर्ज़ की रवानी,
कोई मेरे
दिल ए बेताब
की तो सुने,
तू तो पूछ!