हाटों से उठ गलियों से चल दरवाज़ों को खोल डयोढ़ियों को लाँघ आँखों कानों मस्तिष्क की खिड़कियों से वजूद के कमरों में आ, समा गया है बाज़ार इन्सां की रूह में,
कोई बिकना न चाहे तो क्या करे!
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