बाज़ार स्कूल इबादतगाहों रंगमंचों के करीब देख लेते कोई खाली जगह,
पास होते अपनों के तो उन्हें देखते रोज़ मन की आखों से,
रण्दोल के डरावने पीरुनाले में शमशान बनाने के ख़िलाफ़ थीं रूहें भी!
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