रात के समन्दर में विचारों की लहरों पर सोच की नाव जब घिर गई बेचैनी के तूफ़ान में,
रौशनी की प्रार्थना में डाला जो क़िताब का लंगर लगा जैसे पालने में हूँ मैं, लगा जैसे सुक़ून की नींद है आती!
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