लो यहाँ अपने सफ़र को
देता हूँ विराम,
थक कर चूर मगर बेहद ख़ुश
रूह को आराम देता हूँ,
कह देना ज़माने को
बड़ा शुक्रगुज़ार था मैं,
उसके हर मन्ज़र को
तहे दिल से सलाम करता हूँ,
था मैं अलबत्ता
किसी और मिट्टी का,
सो इस मिट्टी को वापस बा अदब
साज़ ओ सामान करता हूँ!
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