कौओं से पुकारते तो हैं हर गली रास्ते की ईमारत खम्बे दीवार से,
आगन्तुकों अतिथियों के मगर सादर सूचक नहीं, बाज़ारों के बन्धुआ हैं ये इश्तहार छोटे बड़े...
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