Friday, April 21, 2017

दस्वन्ध

दस्वन्ध
हराम दी कमाई 'चों नहीं
हलाल दी कमाई विचों,
पैट्रोनाइज़्ड डेरेयाँ नूँ नहीं
ज़रूरत मन्दाँ नूँ,
मार्केटिंग वाँग नहीं
गिण के नहीं...

जन्नत

मोटर से ही उठा कर
ज़रा गिरा दो
ऊपर से
झरने की तरह पानी,

किसी तरह तो
उजड़ी जन्नत का
ये एहसास मिटे।

सेल्फ़ी

सेल्फ़ी ने सेल्फ़ कॉन्फ़िडेंस को
सूली पर टाँग दिया,
सही सही न हो शूट
तो जान निकल जाये।

ख़ुश

साधनों की तरह
खुशी की शर्तें भी
बड़ी कम थीं
ग़रीब के पास,

कम कोशिशों के बावजूद
वो कैसे ज़्यादा खुश था?

एमरजेंसी

भगदड़ मच जाती
फैल जाती
अफ़रा तफ़री,
भागते इधर उधर
सब लोग
बचाने जान,

निकल आते
तुरत रक्षा बल के
सशस्त्र जवान
संभालने मोर्चा
मर मिटने को तैयार,
गर न होता
ये सायरन
सरकारी कर्मचारियों की
छुट्टी का
पाँच बजे वाला हूटर,
एमरजेंसी का होता...

Wednesday, April 19, 2017

महफ़ूज़

मेरी सूरत पर थी
ज़माने की नज़र,
सीरत महफ़ूज़ थी,

तेरी खुदाई से ढकीं मैंने
बेशक़ीमती
परतें तेरे मानूस की...

आँख मिचौनी

सपनों की दुनिया
कहीं यही तो नहीं?

आँख मिचौनी खेलती
मुखौटे के पीछे तो नहीं!

भोजन

टी वी की प्लेट में
मस्तिष्क के डाइनिंग टेबल पर
आखों के हाथ
झट परोस देता है
सोशल मीडिया का
नौकर
कलेजा मूँह को लाती ख़बरें
ठीक भोजन के वक़्त...

स्वर्ग के आधे रास्ते

ज़मीन से
उसने
कोई सरोकार न रखा,
सिवाय
उस मोटे पेड़ की जड़ों का
जिसके तने पर
बनाया उसने
वो ट्री हाउस
स्वर्ग के आधे रास्ते,
लिए साथ
यक्ष के अंतिम सवाल वाला
साथी।

Saturday, April 15, 2017

तितली

दिया था
जन्म
जिस तितली को
आपने,

सूख गए हैं
अब
उसके
रंग,

फड़फड़ा अपने पंख
चाहती है
अब उड़ जाना
बन्द क़िताब से उस,


ढूँढ
खोलो
माज़ी का वही वर्क़,
कर जाओ आज़ाद...

ज़िंदा

कुछ दिन तो
रहें
पिता
ज़िंदा,
कि बच्चे के ज़हन में
ता-उम्र रहें।

गुब्बारे

उड़ने दूँ
आसमान में,
मैं चलूँ,

कब तक
बच्चों के गुब्बारों को
पेड़ का तना बन
पकड़े रखूँ!

Friday, April 7, 2017

शेल्फ़

मेरी  ग़ैर मौजूदगी में भी
मिल लेते हैं
मुझसे
घर आने वाले,

क्या क्या बता देती हैं उन्हें
मेरे बारे
मेरे कन्धों की शेल्फ़ पर पड़ी
किताबें मेरी...

टंकियाँ

उड़ती
पानी की टंकियाँ
ये रहमतों के बादल,

औंधी पड़ी
बिना पैंदे की
ये इन्सां की बाल्टियाँ...

Tuesday, April 4, 2017

ख़्याल

मत पूछ
अपने बारे में
मेरे ख़्याल,

ख़ुद की बाबत भी
बेबाक़ ओ
आला नक़ीद हूँ मैं।

Sunday, April 2, 2017

पति

उप
कुल
पतियों
की सति प्रथा पर
हतप्रभ
क्षुब्ध है
आज के हर राममोहन की रूह,
एक महाराजा की ताजपोशी
के घटनाक्रम पर
शर्मसार है
लोकतन्त्र के मत का
हर राजा।