दिया था जन्म जिस तितली को आपने,
सूख गए हैं अब उसके रंग,
फड़फड़ा अपने पंख चाहती है अब उड़ जाना बन्द क़िताब से उस,
आ ढूँढ खोलो माज़ी का वही वर्क़, कर जाओ आज़ाद...
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