Tuesday, May 30, 2017

छुट्टी

कुछ दिन
छुट्टी पर चलें?

निकलें
मस्तिष्क से
फ़िज़ाओं में रहें!

बुत

देखे हैं
तुमसे बुत
अब तो
इतने,

ख़ुदा भी
मिलता है
तो काफ़िर सा
लगता है!

इंतज़ार

हूँ इंतज़ार में
उस दिन के,
(काश! कभी आये)
जब
होकर मायूस
क्रिया कलापों से अपने,
कर बन्द मारना हाथ पाँव,
बैठी देखूँगा
लगभग सारी मानवता,
अपनी अपनी छत
अपने अपने आँगन,
उठाये कौतुहल से रिस्ते सर
देखते काले टिमटिमाते आसमान की ओर
सारी सारी रात
चुपचाप
एकटक
सोचते
कि आख़िर
कौन!
क्या!
क्यों!

Monday, May 29, 2017

सबब

आई है
उन्हें
हमारी याद,

आइये
सबब ढूंढें,

करें
कुछ
जतन
उन्हें
फिर भूलें।

Sunday, May 28, 2017

बुलबुले

नभ विचरण को
गये हैं
बेक़ाबू अरमानों के बुलबुले,
होश की हक़ीक़त को
वक़्त है अभी,

लहर की झाग
बैठने में
समझता हूँ, सागर!
वक़्त है अभी!

पीछा

करते हैं जैसे
चक्रवात का पीछा
अमेरिका में
दीवाने कुछ,

वैसे ही,
यहाँ भी,
देख लेना,
भागेंगे पीछे
खोये तूफ़ानों के,
ज़ख़्मी परवाने,
उम्मीद से पुकारती शम्मायें
नासमझी की फुंकारों से
जब जायेंगी बुझ।

इंतज़ार

आदि मानव
इंतज़ार में है
कि परिष्कृत मानव
आपस में लड़ मरे
और उसे
वापस मिले
उसकी धरती,
सुख की साँस ले
कायनात,
हो इक
भयावह ख़्वाब की
इति।

Friday, May 12, 2017

बात

बनने के लिए बने
तो क्या बने,
बनते बनते बनो
तो कोई बात बने!

Tuesday, May 9, 2017

दुनिया

आती रहे
मुझ तक
उसकी आवाज़,
शक़्ल ओ सूरत
दरीचों से
गैर इरादतन
दिखती रहे,

रहे मगर
एक बाज़ू के फ़ासले पर
ये दुनिया
और बसती रहे।

पैकेज

पूछते हैं वो
कि कितने लाख का
है पैकेज,

अभी अभी
जलते देखा
एक ख़ामोश पैकेज,
सड़क किनारे
चन्दन पर,
मुफ्त का था!