Sunday, May 28, 2017

बुलबुले

नभ विचरण को
गये हैं
बेक़ाबू अरमानों के बुलबुले,
होश की हक़ीक़त को
वक़्त है अभी,

लहर की झाग
बैठने में
समझता हूँ, सागर!
वक़्त है अभी!

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