Tuesday, May 9, 2017

दुनिया

आती रहे
मुझ तक
उसकी आवाज़,
शक़्ल ओ सूरत
दरीचों से
गैर इरादतन
दिखती रहे,

रहे मगर
एक बाज़ू के फ़ासले पर
ये दुनिया
और बसती रहे।

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