आज भी हैं
कुछ जगहें
जहाँ
जन परिंदों से कम हैं,
लोहे के परों पर
उन्मुक्त हो
उड़ते हैं
नाभकीय सड़कों पर
कुछ लोग वहाँ,
बस नज़ारे चुगते हैं,
गुम जाते हैं
जादुई वादियों में
कुछ दिनों के लिए,
पर्बतों की ओट में
बिन अहम
बस आत्मा बन रहते हैं!
on
Just concluded ride to Spiti by
By dear friends
Ashish Dewett and Kanwar Aulakh
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