Sunday, June 18, 2017

कालचक्कर

जदों वी जाइदै
कलकत्ता
मद्रास
बम्बे
थोड़ा पंजाब
नाल लै जाइदै,

खाईदै कड कड
अचार दे डब्बे चों
सुक्की रोटी दे नाल
वेले कवेले,
कुज पैन ड्राइव च पा के
उदास दिल नूँ
कर कोशिशाँ परचाइदै,

रख लइदै नाल
इक पुराणी अख़बार पंजाबी
चन्गियाँ मन्दियाँ ओही
रोज पढ़ पढ़
भटके दिल नूँ आरे लाइदै,

नितनेम दा
रखीदै गुटका कोने च ट्रंक दे
बन्न सिर ते परना
सवेरे शाम
पढ़ दिल च वसाईदै,

चलाईदै ट्रक
अमानताँ पुचाईदै,
रिज्ज्क नूँ ला सिर मत्थे
अकाल पुरख दा शुकर मनाईदै...

"मुडाँगा कदे मैं वी
आपणे कलकत्ते आपणे बम्बे तों,
मिलेगा कदे मैनूं वी
आराम मेरे कालचक्कर तों,
मेरी अमानताँ वी मेरी झोली पैणगियाँ"
की की दब्बियाँ अरदासाँ
मन्ना! सीने च रखी दै...

No comments:

Post a Comment