Tuesday, June 27, 2017

मेवे

सूख सूख के
मेवे हो गए हैं
भीतर ही भीतर
साल दर साल
परतों में दबते
वो सारे अधूरे अरमान
भावनायें
अनकहे विचार
आत्म मन्थन के विष अमृत...

जब भी लगती है
प्रेरणा की भूख
बीनता हूँ
बिसरा कुछ,
खा लेता हूँ!

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