सूख सूख के मेवे हो गए हैं भीतर ही भीतर साल दर साल परतों में दबते वो सारे अधूरे अरमान भावनायें अनकहे विचार आत्म मन्थन के विष अमृत...
जब भी लगती है प्रेरणा की भूख बीनता हूँ बिसरा कुछ, खा लेता हूँ!
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