Thursday, August 31, 2017

पूरा दरिया

करवाओ जो
पूरा दरिया पार,
तो कहे पर आपके
उतरें हम,

यूँ
किनारे किनारे
बातों में
न डुबाओ हमें!

त्रासदी

हम बनाम वो
की बनिस्बत
हम बनाम हम की
निगाह से देखा
तो त्रासदी
कुछ और दिखी,

नरसंहार समझते रहे
जिसको,
जमात की
आत्महत्या निकली।

Wednesday, August 30, 2017

सोच समझकर

बहुत
सोच समझकर
किया है
उन्होंने
इक़बाल ए जुर्म,

एक और जुर्म
चुपके से
लगता है
हो चुका!

निगाह

देख अपने ज़ख़्मों को
कभी अलग निगाह से,
तेरे गुनाह भी छिपे हैं
तेरी कहानी की पनाह में!

हैं अगरचे मुख़्तलिफ़
ज़मीनों के आसमान,
आसमानों की हक़ीक़त
उनकी हवाओं में है!

अभी वक़्त है

अभी वक़्त है
बीते कल के
बीत जाने में,

गुज़र जायेगा
ज़हन से
कल परसों तक,
जब आयेंगे।

जजमेंटल

दुनिया को
समझने के बजाय
जजमेंटल हो गया,
भय
नफ़रतों की रहनुमाई में
ये तू क्या को गया!

Tuesday, August 29, 2017

दीवार

हाथ में
उठाता हूँ
पढ़ने को अख़बार
तो लगता है
जैसे
कंधे से पकड़ा है मैंने
सामने खड़ी
हर ख़बर को मैंने,

टैब में
पढ़ता हूँ
तो लगता है
बीच
बुल्लेट प्रूफ़
काँच की दीवार है कोई।

छोर

बहुत मुश्किल
नहीं था
उसके चरित्र को
नापना,

ख़ुद ही
उचक उचक कर
दिखा रहा था
छोर अपने...

ਜਗਹ

ਭਰੇ ਘੜੇ ਨੂੰ
ਹੁਣ
ਕੌਣ
ਹੋਰ ਭਰੇ,

ਉਡੇ
ਵਕ਼ਤ ਦੀ ਤਾਪ 'ਚ
ਕੁਛ
ਸਮਝ ਦਾ ਪਾਣੀ
ਤਾਂ ਜਗਹ ਬਣੇ।

Sunday, August 27, 2017

वजूद

तेरा वजूद
जब
अभी
आते आते
आने को था,

दुनिया
तब भी थी
जब तू
ख़्यालों के ख़्याल में
आने को था!

Friday, August 25, 2017

बुरा

बुरा माना
उन्होंने,
तो मुझे
बुरा न लगा,

सच
बुरा मान जाता
तो साँस घुटती।

ज़रूरी बात

कर रहा था मैं
कोई बहुत ही
ज़रूरी बात
पाँच सात
लोगों से
आज सुबह
जब
जगा दिया किसी ने
गहरी नींद से,

लौटा
जो सोने फिर से
उन्हें
वहीं पाया
पर पहचान
न सका।

ਕੱਸੀ

ਖੇਤ ਦੀ ਬੱਟ
ਤੋੜ ਕੇ
ਸੜਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ
ਨਿੱਕਾ ਜੇਹਾ
ਦਰਿਆ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ,

ਸੋਚ ਦੀ ਮੁੱਠ ਵਾਲੀ
ਹਿੱਮਤ ਦੀ
ਤੇਰੀ ਕੱਸੀ ਨੇ
ਕੀ ਕਮਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ!

बड़ी मुश्किल से

कह लेने दे
हक़ीक़त है जो,

बड़ी मुश्किल से
हुआ हूँ
उदासीन
झूठ से मैं!

निगहबान

बनाकर ग़ज़ल को ही
शम्माओं का निगहबान
हवाओं ने परवानों पर
बड़ा करम किया है,

आख़िरी साँसों में थी जो
आतिश ए तिश्नगी
आलम ए बेरुख़ी में,
फिर भभक उठी!

रोज़ रोज़

कहाँ
मानते हैं
अख़बार नवीस
मिले न जब तक
दिल भाती
सुर्ख़ी कोई,

कहाँ से लाये
रोज़ रोज़
ये शहर
वारदात नई।

Thursday, August 24, 2017

पैराशूट

दुनिया के हालातों
की चिंता किये बग़ैर
एक के बाद एक
उतरती रहीं
रात भर
धरती पर
बेपरवाह रूहें
पकड़ पकड़
चुनी देहों के पैराशूट,

रात भर
सरकारी
अस्पताल में
प्रसूतियाँ
होती रहीं!

Monday, August 21, 2017

बिल्ली

काट गया
अनजाने में
जो रास्ता
बेक़सूर चाँद,

धरती नें देख
काली बिल्ली
दी गाली,

सूरज नें
चमकता फरिश्ता समझ
बलायें ली।

अलग आसमाँ

एक अलग
आसमाँ
माँगना पड़ा
चाँद को
आने जाने के लिए,

बूढ़ी धरती ने
ग्रहण कह कह
आते जाते
जब न छोड़ा
लताड़ना उसे!

ਔਰਕੇਸਟਰਾ

ਮੈਨੂੰ
ਕਦੋਂ
ਮਿਲੇਗਾ ਮੌਕਾ,
ਮੇਰੀ ਬਾਰੀ
ਕਦੋਂ ਆਵੇਗੀ?
- ਕਿੱਥੇ ਸੋਚਦਾ ਹੈ
ਕੋਈ ਸਾਜ਼
ਜਦੋਂ
ਔਰਕੇਸਟਰਾ ਵਜਦਾ ਹੈ,

ਹਉਮੈ ਮੁਕਤ ਹਵਾ 'ਚ
ਖਲੇਰ ਸੁਰਤੀ ਤੇ ਵਾਲ,
ਆਨੰਦ ਦੇ
ਉਤਸਵ 'ਚ
ਝੂਮਦੇ ਨੇਂ
ਸਬ
ਰੱਬੀ ਤਰਤੀਬ ਨਾਲ,

ਹੁੰਦੀ ਹੈ
ਸੰਗੀਤ ਦੀ ਬਰਖਾ,
ਸਬ ਕੁਛ
ਜਿਵੇਂ
ਆਪ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ!

Sunday, August 20, 2017

ਅਖ਼ਬਾਰ

ਅਖ਼ਬਾਰ ਵਿਛਾ ਕੇ
ਰੱਖ ਓਸਤੇ
ਰੋਟੀ ਖਾਣ ਦੀ
ਓਹਦੀ ਆਦਤ
ਬੜੀ ਕਮਾਲ ਸੀ,

ਕਰ ਕਰ ਸ਼ੁਕਰ
ਪਾਉਂਦਾ ਸੀ
ਇਕ ਇਕ ਬੁਰਕੀ
ਆਸਵੰਦ ਮੂੰਹ ਚ ਆਪਣੇ,

'ਲੱਖਾਂ ਨਾਲੋਂ ਸੁਖੀ ਸੀ'
ਆਪਣੇ ਰੋਮ ਰੋਮ ਨੂੰ
ਸਮਝ ਕੇ
ਸਮਝਾਉਂਦਾ ਸੀ।

ਫੁਲਕਾ

ਪੰਜ ਦਾ
ਅਖ਼ਬਾਰ,
ਅੱਠ ਦਾ
ਫੁਲਕਾ,

ਜੇ ਇਕ ਨਾ
ਖਾਂਵਾਂ
ਤਾਂ ਕਿੰਨਾ
ਪਾਵਾਂ।

ਹੋਆਂ

ਇਕ ਲੱਤ ਵਿੱਚ
ਹੈ ਲੰਗ
ਤਾਂ ਕੀ ਮੈਂ
ਲੱਤ ਵਾਲੇਆਂ ਵਿੱਚ
ਤੁਰਾਂ ਵੀ ਨਾ?

ਜੇ ਦੁਨਿਆ ਵਿੱਚ
ਹਰ ਕੋਈ ਏ
ਮਾਹਰ
ਕੀ ਮੈਂ
ਹੋਆਂ ਵੀ ਨਾ?

तन्त्र

जैसी प्रजा
वैसा ही
राजा,

राज तंत्र
इह
कैसा साजा!

Saturday, August 19, 2017

ਭੁੱਖ

ਪੰਜ ਦਾ
ਅਖ਼ਬਾਰ,
ਅੱਠ ਦਾ
ਫੁਲਕਾ,

ਅੱਜ ਫੇਰ ਨਾਂ
ਰੱਜ ਜਾਣ
ਭੁੱਖੀ ਅੱਖਾਂ,
ਢਿੱਡ ਦੀ
ਕੀਮਤੇ!

ਚੂਹੇ

ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤ ਹਾਂ
ਅਸੀਂ
ਕਿੰਨੇ
ਹੈਮਲਿਨ ਦੇ ਚੂਹੇ,

ਲੱਭ ਹੀ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ
ਹਰ ਕੁਜ ਚਿਰ ਨੂੰ
ਆਪਣਾ
ਪਾਇਡ ਪਾਈਪਰ
ਬਰਗਲਾ ਕੇ ਲੈ ਜਾਣ ਲਈ
ਸਾਨੂੰ
ਸੁੱਟਣ
ਵਿਚ
ਨਿਰਵਾਣ ਦੇ ਖੂ।




ख़ुशक़िस्मत हैं
हम
कितने
हैमलिन के चूहे,

ढूँढ ही लेते हैं
हर कुछ समय में
अपना
पाइड पाइपर
बरगला कर ले जाने हमें
फेंकने
बीच
निर्वाण के कूएं

क्रान्ति

बामुश्किल
की थी
जान मानस ने
जनतंत्र की क्रान्ति
छोड़
खेत खलिहान
घर परिवार,

ये कहाँ से
आ गया
फिर
कोई
"मसीहा" बनने!

ਫ਼ਕੀਰ

ਅੱਖਰਾਂ ਨਾਲ
ਪੇਟ ਨਹੀਂ ਭਰਦਾ
ਚੰਦਰੀ ਭੁੱਖ
ਭੁੱਲ ਜਾਂਦੀ,

ਰੋਟੀ ਨਾਲ
ਪੇਟ ਭਰ ਜਾਂਦਾ,
ਰੂਹ
ਭੁੱਖੀ ਸੌਂ ਜਾਂਦੀ,

ਦੋ
ਫੱਕੇ ਕਣਕ ਦੇ,
ਚਾਰ ਲਫ਼ਜ਼ ਦੇ
ਬੰਦ,
ਹੋਰ ਕੀ ਚਾਹੀਦਾ
ਫ਼ਕੀਰ ਨੂੰ,
ਨਾ ਤਾਰੇ
ਨਾ ਚੰਦ!

ਦੇਸ਼ਭਕਤ

ਦੇਸ਼ਭਕਤ ਵੀ
ਦੇਸ਼ਭਕਤਾਂ ਨੂੰ
ਹੁਣ
ਆਪਣੀ ਜਮਾਤ ਦਾ
ਚਾਹਿਦੈ!

ਕਿਥੇ ਜਾਣ

ਭਗਤ ਸਿੰਘ
ਇਨਕਲਾਬ ਵਾਸਤੇ
ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ
ਹਰ ਮੈਦਾਨ
ਇਕ ਰਾਜ ਗੁਰੂ
ਸੁਖ ਦੇਵ
ਅਸ਼ਫਾਕਉੱਲਾਹ ਚਾਹਿਦੈ...




देशभक्त भी
"देशभक्तों" को
अब
अपनी जमात का
चाहिए!

कहाँ जायें
वो
भगत सिंह,
इंकलाब के लिए
जिन को
हर मैदान
एक राजगुरु
सुखदेव
अशफ़ाक़ उल्लाह चाहिए।

अकेला

सरकाओ उन पेड़ों को ज़रा
कुछ बायें
नज़र तो आयें,

उतारो चाँद को
एक हाथ नीचे
और न शरमाये,

बिखेरो ज़रा
बादलों के बाल
लगें कुछ और नशीले,

पर्बतों से कहो
बढ़ा कदम
मेरे क़रीब आयें,

खड़ा हूँ
कब से
अकेला
अपने फ़्रेम में,
तक़दीर से कहो
भरे रंग
बहार लाये।

Friday, August 18, 2017

यक़ीन

यही सोच कर
मेरी ज़ुबान नें
मेरे मुआफ़ीनामे
के अहद पर
दस्तख़त न किये,

मेरी फ़ितरत पर
मेरी ही रूह को
यक़ीन न था...

Thursday, August 17, 2017

भरा

पछतावे
धोखे
डर
मजबूरियाँ
ग़लतफ़हमियाँ
अरमान
संगीत
निर्वाण,

ज़रा
हिला के तो देख
वो शक़्स
किस शै से
भरा है।

ਕਵੀ

ਸੀਨੇ ਵਿਚ ਸਾਹ
ਧਮਨਿਆਂ ਵਿਚ ਖੂਨ
ਬਿਰਤੀ ਵਿਚ ਖ਼ਯਾਲ
ਹੁਣ
ਕਿੱਥੇ ਹੋਵੇਗਾ,

ਕਿੱਥੇ ਰੇਹਾ ਹੋਵੇਗਾ

ਕਵੀ,
ਆਪ ਹੀ
ਹੁਣ ਤਾਂ
ਕਵਿਤਾ
ਹੋਵੇਗਾ!

ਤਰਲੇ

ਕੀਤੇ ਸੀ
ਤਰਲੇ
ਬਥੇਰੇ
ਕਿ ਲੈ ਜਾਵੀਂ
ਘੁਮਾਣ
ਵਿਦੇਸ਼
ਜਾਵੇਂਗਾ ਜਦੋਂ ਵੀ,

ਛੱਡ ਜ਼ਮੀਨ ਤੇ
ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਬੁੱਤ
ਉਡ ਗਯਾ
ਨਿਰਮੋਹੀ
ਕੱਲਾ
ਤਾਰੇਆਂ ਦੇ ਦੇਸ਼
ਤਾਪ ਦੇ ਓਹਲੇ ਓਹਲੇ...

ਚੋਰੀ

ਪਾਣੀ
ਅਜੇ ਵੀ ਏ
ਲੋੜ ਨਾਲੋਂ ਵੱਧ
ਗਲੇਸ਼ਿਅਰਾਂ
ਪਰਬਤਾਂ
ਝਰਨੇਆਂ
ਨਦਿਆਂ
ਤਲਾਬਾਂ
ਬੌਡਿਆਂ
ਟੈਂਕਾਂ
ਅਤੇ ਬਰਕਤਾਂ ਦੀ
ਪਾਇਪਾਂ ਵਿਚ,

ਲਾਲਚ ਦੇ ਹੱਥੋਂ
ਹੋ ਗਇਆਂ ਨੇਂ
ਚੋਰੀ
ਸੋਨੇ ਦੀ ਟੂਟਿਆਂ,

ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਸੰਗੇ
ਰੇਗਿਸਤਾਨ ਨੇਂ।

सच्चाई

शायद
इसी सबब से
उठता है
आये दिन
शहर में
कोई न कोई,

जायें
बीस पचास
साथ
देखने
अंतिम सच्चाई,
याद रहे।

Monday, August 14, 2017

पहचान पत्र

गौ सी
बच्चियों
के भी रक्षकों के
बनें बॉयोमीट्रिक्स पहचान पत्र
माँग है मेरी,
झाँक
पुतलियों में
सब की,
पढ़ी जाये मस्तिष्कों में
मानसिकता,
अँगूठों उंगलियों की
ले छाप
एहतियातन रखी जाये।

जश्न

आपके
जश्न
के ताप में
ठंडक
क्यों नहीं,

सुनिश्चित
कर लीजिए
आज़ाद हैं आप,
भूरे अंग्रेज़ के
ग़ुलाम तो नहीं!

तीर

कहाँ से निकला तीर
कहाँ कहाँ से हो
कहाँ जा लगा,

करे कौन
घबराई रूह से न्याय
न हुई
जिसे पुष्टि
एक युग तक,
कि उसकी सोच की देह को
कहाँ और कितना
लगा, न लगा।

दबे पाँव

यही सोचकर
निकलते हैं
दबे पाँव
उतार मन्शा की जूती
ओढ़ गुमशूदगी का कम्बल,
गली से आपकी
बेक़सूर
बूढ़े
मजबूर
लफ़्ज़
रात के पिछले पहर,

कहीं पड़ गई जो
आपकी
निरुक्ति भरी नज़र
तो पूरी
कहानी जायेगी।

एहसान

इतना न ले
दिल पर
अंधेरी रात का
एहसान
ऐ चाँद,
कि दब कर
फीका तारा हो जाये,
इसी गर्ज़ से
फैली थी
स्याही
कि तेरे पैग़ाम में
कुछ चमक आये!

Saturday, August 12, 2017

कोहिनूर

चूमने को मिट्टी
बेताब था
कोहिनूर,

ज़िद पर अड़ा था
फिर किसी दौर का शाहजहाँ
उठाए सर पर
ताज महल सा मक़बरा!

द्वारपाल

नतमस्तक है
शस्त्र
मिला जिसे अवसर
होने को द्वारपाल
व्यवस्था के
उस महल का
जिसमें
बसता था
धर्म का
आश्वासन,
प्रेम का
ब्रह्माण्ड।

Friday, August 11, 2017

रंगमंच

छोटू,
सीधा हो कर बैठ
वो सामने
उस कैमरे के पीछे
भगवान है,

ला मुस्कुराहट
चेहरे पर अपने,
न लगे उसे
कि हम
उससे
नाराज़ हैं...

पूछे,
तो कहना
हम
उसके रंगमंच के हैं
बाल कलाकार,
उसकी
सलाम बॉम्बे
स्लमडॉग का
इंतज़ार है!

बस

मस्तिष्क
अभी भी था
हवाई जहाज़ों
रॉकेटों
की होड़ में,

एक देह थी
जिसकी
बस थी
हो चुकी...

रोटियाँ

कुत्तों की क़िस्मत को
सलामत हैं
न जाने कितने
मालिक,
उनकी रोज़ी
रोटी
रोटियों को पकाने और खाने वाले परिवार,
बची रोटियों की बरकतें
बची रोटियाँ रखने को डयोढियाँ,
डयोढियों को छाँव देती छतें,
छतों को सलामत रखती
कुत्तों की आस की
दीवारें!

Tuesday, August 8, 2017

आज सुबह

बजा
आज
कुछ इंस्ट्रुमेंटल
शब्दों को
रहने दे,

ऊँघने दे
रूह को,
आज
सुबह
रहने दे...

दर्द

धोबी की तरह न यूँ सिल पर पटक मुझे,
धो बेशक मल मल कर जितना तू चाहे,
यूँ न कर तार तार मुझे!

यूँ ही सुन ले जो गीत सुनने की चाह है तेरी,
दर्द पहले से है सराबोर तबीयत में मेरी,
और न दे!

दिखा दिखा कर उठाई है ज़िंदगी दस्तरख़ान से मेरे,
कर बे आबरू चाहे जितना
मगर दाम तो दे,

है तू शाहों का शाह जानते हैं सब,
मैं भी तो हूँ मस्ताना,
दाद तो दे,

हुआ होगा तुझे इस सब से जाने क्या हासिल,
मेरा क्या क्या खोया,
हिसाब तो दे,

किस क़याम^ से निकला था किस क़यास^^ को,        
इस अंजाम से मुख़ातिब हूँ मैं   
किस हिसाब से?

^कल्पना    ^^ठहराव

Monday, August 7, 2017

मोटिवेशन

मेरी मोटिवेशन
आप हैं
मेरे ईश्वर,

आपकी
मोटिवेशन
कहीं
मैं तो नहीं?

Friday, August 4, 2017

मुसाफ़िर

रात काटने के लिए
पूछते हैं
मुसाफ़िर
गुरुद्वारा साहिब की राह
तो बताता हूँ
इस मलाल से
कि काश
पूछता
कोई
किसी रोज़
उम्र गुज़ारने
के लिए!

Wednesday, August 2, 2017

बन्दा

दोनों थे मज़दूर
पर एक नहीं था,
मुश्किलों में था दोनों का जीवन
दुःखी मगर एक नहीं था,

थे दोनों वक़्त के मारे
मुरझाया एक था
दूसरा नहीं था,

था एक
बस
झुझारू इंसान,
दूसरा
केवल इतना नहीं था,

मुस्कुराता था दिन भर
देख इलाही की मर्ज़ी,
"ख़ुदा का बन्दा"
ख़िताब कम तो नहीं था!

बधाई

"बधाई हो,
राम खिलावन!
मज़दूर हुआ है!"

Tuesday, August 1, 2017

दरारें

देश की मिट्टी में
जहाँ जहाँ
जितनी भी
सूखी
छिपी
बेहिसाब
दरारें हैं,
रहते हैं
उनमें
सबसे ओझल
कितने देशवासी
जो किसी राशन कार्ड
आधार
पैन
फ़ैरिस्त
गिनती न आते हैं,

हैं वो
अगरचे
यहीं के बाशिंदे,
मगर
साँझे आसमाँ से बाहर
बिन पंखों के परिंदे...

रिश्ते

कितने
गहरे थे
हमारे रिश्ते
इस बात से वाज़े,

याद भी आती है
तो भूलने की...

जी डी पी

बहुत मुमकिन था
देश की
जी डी पी
आज
कुछ
कम हो जाती,

काम आ जाते
देश के
चंद
आर्थिक
जंगजू,

जब चढ़ा दी
मैंने
अपनी कार
इमारत की बेसमेंट में
उन्हीं ईंटों पर
जिन पर बैठ
खेल थे रहे वो सब
जुआ,

बस शुक्र है
उनके
हार जीत कर
जा चुकने के बाद!