बहुत मुमकिन था देश की जी डी पी आज कुछ कम हो जाती,
काम आ जाते देश के चंद आर्थिक जंगजू,
जब चढ़ा दी मैंने अपनी कार इमारत की बेसमेंट में उन्हीं ईंटों पर जिन पर बैठ खेल थे रहे वो सब जुआ,
बस शुक्र है उनके हार जीत कर जा चुकने के बाद!
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