देश की मिट्टी में
जहाँ जहाँ
जितनी भी
सूखी
छिपी
बेहिसाब
दरारें हैं,
रहते हैं
उनमें
सबसे ओझल
कितने देशवासी
जो किसी राशन कार्ड
आधार
पैन
फ़ैरिस्त
गिनती न आते हैं,
हैं वो
अगरचे
यहीं के बाशिंदे,
मगर
साँझे आसमाँ से बाहर
बिन पंखों के परिंदे...
No comments:
Post a Comment