दोनों थे मज़दूर
पर एक नहीं था,
मुश्किलों में था दोनों का जीवन
दुःखी मगर एक नहीं था,
थे दोनों वक़्त के मारे
मुरझाया एक था
दूसरा नहीं था,
था एक
बस
झुझारू इंसान,
दूसरा
केवल इतना नहीं था,
मुस्कुराता था दिन भर
देख इलाही की मर्ज़ी,
"ख़ुदा का बन्दा"
ख़िताब कम तो नहीं था!
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