Tuesday, October 3, 2017

अकेला

कोई लेना देना नहीं
जंगल के फूलों को
अर्थव्यवस्था से तुम्हारी

न कोई सरोकार
इन परिंदों को तुमसे
मुबारक तुम्हें व्यस्तता की ख़ुमारी,

हवायें ख़ुश हैं आसमानों में अपने
ततीमों में बटी
बस ज़मीनें तुम्हारी,

हैं सन्नाटे ये बधिर
शोर ओ गुल से तुम्हारे
कुछ और गुनगुनाने की है इनकी तैयारी,

अपने ही उजाले में रहकर सारा दिन गुम
अकेला है इस कदर शाम का सूरज
कि चाँद की गोद में है रोने की बारी

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