कहीं
अभी भी होंगे
मुझमें
ज़रूर
कुछ हरे ज़ख़्म
जो मेरी निगाह में नहीं,
बहती है जो
बात बात पर
मेरी सोच में
इतनी मवाद
जो नीयत ए ख़ैर ख़्वाह
में नहीं...
अभी भी होंगे
मुझमें
ज़रूर
कुछ हरे ज़ख़्म
जो मेरी निगाह में नहीं,
बहती है जो
बात बात पर
मेरी सोच में
इतनी मवाद
जो नीयत ए ख़ैर ख़्वाह
में नहीं...
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