Tuesday, October 3, 2017

ख़ाली हाथ

होटल के रेस्टोरेंट की दीवार पर लगी तस्वीर को दिखा हाथ में ट्रे उठाये उठाये शर्माजी बोले

"ये विख्यात प्राचीन देव कामरुनाग मंदिर है...और ये उस मंदिर की झील

बहुत ऊँचाई पर स्थित हैं ये..."

फिर खिड़की की तरफ़ इशारा कर बोले...."वो, वहाँ उस पहाड़ की चोटी पर हैं ये मंदिर और झील.

कुछ नज़दीक तक सड़क है जहाँ तक गाड़ी जाती है...फिर कुछ मील पैदल चलना पड़ता है...

यहाँ तक आए हैं तो वहाँ भी हो कर आयें!

बड़ी महानता है इस मंदिर की

और इस झील के बारे में एक बड़ी अविश्वसनीय किंवदंती है..."

हमारे खुले मुँह और प्रश्नों से उमड़ती आँखों को देख शर्मा जी ने बताना जारी रखा...

"कहते हैं इस झील में टनों सोना चाँदी पड़ी है!"

"दर असल मन्नत माँगते समय श्रद्धालु जो भी क़ीमती आभूषण सोना चाँदी अर्पण करने का प्रण करता है, मन्नत पूरी होने पर वो वही वही आकर उस झील में धन्यवाद सरीखे झील में भेंट चढ़ा देता है।"

"सैंकड़ों वर्षों से सोना चाँदी आभूषण सब इसके अंदर ही पड़े हैं। कभी निकाले नहीं गए!"

शर्मा जी चुप हो गए और गूँजता सन्नाटा छा गया।

फिर अनायास मेरे मुँह से निकल गया

"आप तो, शर्माजी, कई बार गए होंगे वहाँ!"

शर्माजी मुस्कुराए और धीरे से बोले

"नहीं!"

सभी सम्मोहित मानसों के सन्नाटे एक ही स्वर में हैरानगी में अनायास टूट पड़े

"क्यों!!!"

शर्माजी कुछ क्षण मौन रहे, फिर मंद मंद मुस्काये और दबी आवाज़ में जाने किस से बोले

"भीतर ही देख लिया था जब मंदिर देव कामरूनाग का तो एक रोज़ स्थिर चित्त वाली समर्पण की झील में पदार्थवाद का हर आभूषण मैंने बहुत पहले ही था भेंट कर दिया। फिर ख़ाली हाथ कैसे जाता!"

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