सोचा था सुकून से होंगे पृथ्वीराज चौहान इस इत्मिनान में कि रह सकेंगे वो दिल्ली में हमेशा अपने नाम की सड़क पर, औरंगज़ेब की तरह बेघर न होंगे,
मगर नहीं।
हैं वो बेचैन उस सोच से जो बह सकती है अन बीते इतिहास में कभी फिर उलट!
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